नफे कहीं जाने के लिए निकल रहा था, कि तभी अचानक जिले का आना हुआ। जिले नफे को टोकते हुए बोला।
जिले : भाई नफे!
नफे : हाँ बोल भाई जिले!
जिले : इतनी तेजी में कहाँ को भागा जा रहा है?
नफे : भाई थोड़ा जल्दी में हूँ। कल फुर्सत में बताऊँगा।
जिले : इतनी भी जल्दी क्या है, जो अपने खास दोस्त के लिए दो मिनट भी नहीं निकाल सकता।
नफे : अरे नहीं भाई, ऐसी कोई बात नहीं है।
जिले : तो फिर जो बात है उसे बता डाल।
नफे : असल में मैं ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई करवाने जा रहा हूँ।
जिले : ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई? ये कब से होने लगी? मैंने तो सुना है कि उसका उत्पादन ऑक्सीजन के प्लांट में होता है।
नफे : भाई, हैरान मत हो ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई भी होती है।
जिले : भाई, या तो तूने सुबह-सवेरे चढ़ा ली है या फिर तू ये समझ रहा है कि मैं नशे में हूँ।
नफे : भाई, तू गलत क्यों सोच रहा है?
जिले : गलत नहीं बल्कि सही सोच रहा हूँ। सुबह-सुबह उल्टी-सीधी बातें बनाकर तू मेरा दिमाग खराब कर रहा है।
नफे : अगर तुझे मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा है तो तू मेरे साथ चल कर देख ले, कि ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई होती है या नहीं।
जिले : तो फिर चल, आज दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
जिले नफे के साथ चल पड़ता है। वहाँ नफे उसकी मुलाक़ात पर्यावरण रक्षा दल के साथ करवाता है। कुछ देर बाद नफे पर्यावरण रक्षा दल के साथ मिलकर पौधरोपण करते हुए जिले से कहता है।
नफे : ये देख, ये हो रही है ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई।
नफे की बात को सुन कर जिले को गुस्सा आ जाता है।
जिले : नफे, ये हद हो गयी। पौधारोपण को तू ऑक्सीजन सिलेंडरों की रोपाई बता रहा है। इसका मतलब है कि तू मुझे बिलकुल बेवकूफ ही समझता है।
नफे : अरे नहीं भाई, ऐसा कुछ नहीं है।
जिले : तो फिर तूने मुझसे झूठ क्यों बोला?
नफे : मैंने झूठ कहाँ बोला? ये पौधे ही एक दिन बड़े होकर वृक्ष बनेंगे, जो वातावरण में नियमित रूप से ऑक्सीजन की सप्लाई किया करेंगे। दूसरी भाषा मे कहें तो ये पौधे भविष्य के ऑक्सीजन सिलेंडर ही तो हैं।
जिले : ओह, इस बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।
नफे : इसमें तेरी सोच का दोष नहीं बल्कि दोष मानवीय प्रवृत्ति का है।
जिले : वो कैसे भला?
नफे : हम मानव प्रगति की अंधी दौड़ में कथित सफलता पाने की आस पाले हुए निरंतर दौड़े जा रहे हैं।
जिले : हम मानव आखिर किस तरह की सफलता को पाने के लिए इस अंधी दौड़ में भागीदारी कर रहे हैं?
नफे : ये कथित सफलता येन केन प्रकारेण अधिक से अधिक धन कमाने की है।
जिले : ओह, मतलब कि प्रकृति के नाश की जड़ कथित सफलता पाने के लिए दौड़ी जा रही प्रगति की ये अंधी दौड़ ही है।
नफे : हाँ जिले, हम स्वार्थी मानवों ने अपने स्वार्थ से वशीभूत होकर अपनी जेबें भरने के लिए हरे-भरे पेड़ों का सफाया कर वहाँ फ्लैटों, मॉलों और मल्टीप्लेक्स बिल्डिंगों को खड़ा कर दिया है।
जिले : हाँ, ये बात तो है।
नफे - और ये सब करते हुए हम मानवों ने प्रकृति द्वारा प्रदत्त इन प्राकृतिक ऑक्सीजन सिलिंडरों की न तो कभी परवाह की और न ही इनका संरक्षण किया। हम मानव प्रकृति के इन अनमोल उपहारों का विनाश कर कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं। पर हम ये नहीं समझ पा रहे हैं, कि एक दिन ये कंक्रीट के जंगल ही मानव सभ्यता को लील जाएंगे।
जिले - सही कहा भाई, मुझसे भी ये भूल हुई है। मैंने अपनी खेती की जमीन बढ़ाने के लालच में एक बीघा जमीन में लगा आम का बगीचा सिर्फ इसलिए कटवा दिया, क्योंकि उसमें आम की पैदावार कम होने लगी थी।
नफे : इसका मतलब है कि तू भी प्रगति की अंधी दौड़ में कथित सफलता पाने के लिए प्रतिभागी रह चुका है।
जिले : हाँ भाई, मैं भी प्रगति की इस अंधी दौड़ के चक्कर में एक बार फंस चुका हूँ।
नफे : और इस चक्कर में घनचक्कर बन तूने आम के बगीचे के रूप में ऑक्सीजन सिलिंडर के एक अच्छे-खासे प्लांट का सत्यानाश कर दिया।
जिले : हाँ भाई, हो गयी थी गलती। पर अब मैं अपने उस पाप का प्रायश्चित करूँगा।
नफे : वैसे तूने अपने उस पाप का प्रायश्चित करने का क्या उपाय सोचा है?
जिले : मैं अपनी खेती की जमीन में से एक के बजाय दो बीघा जमीन में पौधों की रोपाई करूँगा।
नफे : तेरा मतलब है कि तू ऑक्सीजन सिलेंडरों की रोपाई करेगा।
जिले : हाँ भाई, मेरे द्वारा रोपे गए पौधे जब वृक्ष बनकर लोगों के फेफड़ों मे शुद्ध ऑक्सीजन की सप्लाई करेंगे, तब कहीं जाकर मेरा प्रायश्चित पूरा हो पाएगा।
नफे : काश, तेरी तरह बाकी लोग भी अपने पापों का प्रायश्चित करने लगें, तो फिर इस संसार में किसी भी इंसान की ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु नहीं होगी।
जिले : बाकी लोग भी कभी न कभी मेरी तरह पश्चाताप करते हुए इस नेक काम को अंजाम देंगे।
नफे : यदि सच में ऐसा हुआ तो मानवीय फेफड़ों और ऑक्सीजन में कभी भी संधिविच्छेद नहीं हो पाएगा।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
कार्टून गूगल से साभार