बुधवार, 22 दिसंबर 2021

कविता : ऊहापोह

कभी-कभी सोचता हूँ कि 

यदि पुस्तकें होती रहीं 

यूँ ही प्रकाशित तो

ये दृश्य कहीं 

विलुप्तप्राय न हो जाएं

फिर सोचता हूँ कि  

पुस्तकें प्रकाशित होनी

हो गयी जो बंद तो

इस जग में विचार 

मूर्तरूप  कैसे ले पायेंगे

और वे विचार भी तो 

पुस्तकों के बिना

बेमौत मर जायेंगे

जिनमें ये सीख होगी कि

हरे-भरे वृक्ष काटने से 

हो सकता है

पर्यावरण का विनाश

और यूँ ही वृक्ष

जो कटते रहे तो फिर

ऐसे दृश्य देखने को

कहीं ये नैन न तरस जायें।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

(चित्र में हमारे लाडले पार्थ भविष्य में झाँकने का प्रयत्न कर रहे हैं।)

शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

कविता : बोनस की आस


स-नस पूछ रही खुश हो

बोनस किस दिन आएगा

खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

कुछ पल फिर मुस्काएगा


जाने कितने सपने पाले

वेतन के संग हम सबने 

पर वो आया और उड़ा

कुछ दिन के ही छल में

अब आगे की नैया को

बोनस ही पार लगाएगा

खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

कुछ पल फिर मुस्काएगा


इस दीवाली दीप जलेंगे

बोनस के घी के बल पर

और कितनी बोनस से दूरी

दफ्तर बाबू जल्दी हल कर 

इस दिवाली कहीं दिवाला

नच के तो न ढोल बजाएगा

खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

कुछ पल को तो मुस्काएगा


पत्नी को धनतेरस की रट है

बच्चे माँगें फुलझड़ी-पटाखे

लक्ष्मी पूजा की खातिर 

लाने हैं घर पे खील-बताशे

इन सभी योजनाओं को पूरा

बस बोनस ही कर पाएगा

और खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

भर के फिर खाली हो जाएगा।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

व्यंग्य : स्मार्ट फोन वाले जीव


    ब-जब भी मेट्रो ट्रेन में यात्रा करने का सुअवसर प्राप्त होता है, तो  मेट्रो में अपने-अपने स्मार्ट फोन में खोए हुए जीवों को देखकर इस भोले से मन-मस्तिष्क में एक स्मार्ट सा विचार आता है, कि ये संसार जाति, धर्म, पंथ, अमीर-गरीब व अच्छे-बुरों के अतिरिक्त दो और वर्गों क्रमशः स्मार्ट फोन वाले जीवों व बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के बीच में भी बंटा हुआ है। 

स्मार्ट फोन वाले जीवों के बारे में बात करें तो उनका संसार स्मार्ट फोन से आरंभ होकर अंततः उसी में समाप्त हो जाता है। आधुनिक समय में स्मार्ट फोन में डाऊनलोड किए गए एप्प्स ने ऐसे चक्रव्यूह का निर्माण किया है, कि उसमें घुसने के बाद फँसकर जाने कितने अभिमन्यु बेमौत दम तोड़ देते हैं। स्मार्ट फोन वाले जीवों का संसार ऐसा है, कि वहाँ हर काम स्मार्ट फोन द्वारा ही सम्पन्न होता है। किसी पर कोई मुसीबत आ जाए, किसी का एक्सीडेंट हो जाए या फिर किसी के साथ कोई और अनहोनी घट जाए, तो सबसे पहले उस स्थान पर स्मार्ट फोन धारी जीव प्रकट होता है और अपने स्मार्ट फोन से उस घटना-दुर्घटना को बड़े ही स्मार्ट तरीके से फिल्मा कर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर वायरल कर देता है तथा पीड़ित व्यक्ति को बिना स्मार्ट फोन वालों के हवाले कर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाता है। स्मार्ट फोन वाले जीवों की स्मार्ट फोन में दिन-रात डूबी हुईं आँखें, उनमें हमेशा खोया रहने वाला मन-मस्तिष्क व उसमें सदैव झुकी रहने वाली गर्दनें भविष्य में कमजोर आँखों की समस्या, मानसिक विक्षिप्तता व  स्पॉन्डिलाइटिस इत्यादि रोगों को लघु उद्योग से बड़ी छलाँग मारकर बृहत उद्योग की श्रेणी की सूची में सम्मिलित होने को संघर्षरत हैं।

स्मार्ट फोन वाले जीवों से इतर बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों की बात करें तो कितने सौभाग्यशाली हैं वे जीव जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है। बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों की श्रेणी में अप्रत्यक्ष रूप से वे जीव भी आ जाते हैं, जो स्मार्ट फोन तो रखते हैं लेकिन उसका प्रयोग संयमित रूप से ही करते हैं। ऐसे जीव ही इस संसार में रहकर इसका समुचित रूप से आनंद ले पाते हैं। उनका जीवन वास्तविकता की पटरी पर दौड़ लगाते हुए बीतता है। एक-दूसरे के सुख-दुःख को जानना, समझना व समय आने पर एक-दूसरे के काम आना अब इस जग में बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के जिम्मे ही है। 

अब गोरी भी बिना स्मार्ट फोन वाले जीव को देखकर लजाती, इठलाती व मुस्कुराती है और स्मार्ट फोन में व्यस्त जीव को देखकर सिर पर अपने कोमल पाँव रखकर भाग जाती है। प्रकृति के रंग, मौसम की उमंग, जीवन की तरंग अब बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के सहारे ही टिकी है, वरना स्मार्ट फोन वाले जीवों के मस्तिष्क में तो डेटा खपत होने की चिंता ही बाकी बची है। स्मार्ट फोन वाले जीवों और बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों में एक अंतिम फर्क है ये है, कि बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों का सारा जीवन चैन से कट जाता है और स्मार्ट फोन वाले जीवों के बगल में चार्ज हो रहा उनका स्मार्ट फोन एक दिन चार्ज होते समय ही भारी विस्फोट के साथ फट जाता है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

बुधवार, 4 अगस्त 2021

कविता : मैं बहुत बहादुर हूँ

(ये कविता उन दिनों की है, जब मैं हॉस्पिटल में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा था।)

मुझे मरने से 

डर नहीं लगता

क्योंकि मैं बहुत बहादुर हूँ

पर जब भी लगता है कि

मैं मर भी सकता हूँ तो 

मुझे अपने जाने के

मतलब मरने के 

बाद की परिस्थितियां 

अचानक से ही 

दिखाई देने लगती हैं

जिसमें मैं अपने

बिलखते माँ-बाप को

बार-बार देखता हूँ

जिनके बुढ़ापे का 

मैं ही हूँ सहारा

जिनके सपनों और 

ढेर सारी आशाओं को

पूरा करने का किया है

मैंने उनसे वायदा

मेरे जाने के बाद

क्या होगा उन आशाओं

और सपनों का 

और क्या होगा

उनसे बार-बार किए

मेरे उन वायदों का 

कैसे जिएंगे 

मेरे बिना 

मेरी ऊँगली पकड़कर 

मुझे चलना सिखानेवाले 

सच कहूँ

यही सोचकर 

मैं अचानक डर जाता हूँ

और अगले ही पल

मैं जीवन के रण को 

जीतने के लिए

उठ खड़ा होता हूँ

क्योंकि मैं बहुत बहादुर हूँ

हूँ न?

रचना तिथि : 11 अगस्त, 2016

शनिवार, 24 जुलाई 2021

गुरु पूर्णिमा पर मन की बात


      मुझे अब तक जीवन में ऐसा कोई गुरु नहीं मिला, जो मुझे जीवन की राह में चलने सही सलीका सिखाता। मैं सदैव एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में रहा, जिसके मार्गदर्शन में चल कर मैं इस जीवन के रण को जीतकर सफलता के शिखर को चूम सकूँ। मेरी खोज अब तक पूरी नहीं हुई, तो इस बात से मैं निराश नहीं हूँ। मैंने अपने जीवन में आयी हर कठिनाई, परिस्थिति व उलझन से उलझते हुए उससे कुछ न कुछ सीखने की कोशिश की है। अब तक मिले हर अच्छे-बुरे, टुच्चे-लुच्चे इंसान ने मुझे कोई न कोई सीख दी है। बेशक मैं जीवन की राह में दौड़ नहीं पा रहा हूँ, पर घिसट भी तो नहीं रहा हूँ। मैं जीवन के पथ पर निरंतर चलता हुआ आगे बढ़ता जा रहा हूँ, इस यकीन के साथ कि एक न एक दिन तो मुझे मेरी मंज़िल जरूर मिलेगी।

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

व्यंग्य : अंतिम इच्छा का दुष्प्रभाव

     सूबे को फफककर रोते हुए देखकर जिले ने नफे से पूछा।

जिले : भाई नफे, अपने सूबे को कौन सा दुःख है जो इतना रो रहा है।

नफे : उसका दुःख उसके लिए बहुत दुखदायी है इसलिए उसे रोना पड़ रहा है।

जिले : उस दुखदायी दुःख से हमारा भी परिचय करवा।

नफे : सूबे उस घड़ी को कोसते हुए रो रहा है, जब उसने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के विषय में सोचा।

जिले : अरे, सूबे के पिता की मौत कब हो गयी?

नफे : दो दिन पहले ही उनकी मृत्यु हुई थी।

जिले : वो तो भले चंगे थे, फिर भला ऐसा क्या हुआ जो वो अचानक मर गए।

नफे : सूबे के पिता प्राण चंद मंच के अति सक्रिय कवि रहे हैं। अपने माँ-बाप को दर-दर भटकने पर विवश करने वाले प्राण चंद जब मंच पर खड़े हो माता-पिता पर केंद्रित भावुक तुकबंदियों को कविता के वेश में काव्यप्रेमी श्रोताओं के सम्मुख बड़ी चतुराई से परोसते थे, तो श्रोतागण भावुक हो उन्हें प्राण, ऊर्जा, शक्ति और जाने क्या-क्या प्रदान कर देते थे।

जिले : अच्छा तो उनकी चुस्ती-फुर्ती का ये राज था।

नफे : हाँ, उनकी इसी अदा पर मंच की कई कवयित्रियाँ भी उनकी प्राण प्यारी बन गयी थीं।

जिले : भाई, प्राण के साथ-साथ धन प्यारी भी बोल।

नफे : बिलकुल सही समझा। सब ठीक चल रहा था कि अचानक कोरोना महामारी का आगमन हुआ और कवि सम्मेलनों पर विराम लग गया।

जिले : फिर आगे क्या हुआ?

नफे : कवि सम्मेलनों में श्रोताओं द्वारा मिलने वाले प्राण, ऊर्जा और शक्ति इत्यादि का स्टॉक कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन ने बिलकुल समाप्त कर दिया।

जिले : ओह, ये तो कवि प्राण चंद के लिए प्राण हरने वाली बात हो गयी।

नफे : हाँ भाई, जैसे ही कवि प्राण चंद के पास प्राण, ऊर्जा और शक्ति इत्यादि का स्टॉक समाप्त हुआ यमदूत उनके निकट आए और उनके शरीर से प्राण खींचकर यमलोक की ओर निकल लिए।

जिले : अपने पिता की अकाल मौत होने पर सूबे तो बहुत उदास हुआ होगा।

नफे : उदास ही नहीं हुआ बल्कि फूट-फूट कर रोया पर सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए।

जिले : लोगों को दिखाने के लिए? तो क्या उसे अपने बाप की मौत का दुःख नहीं हुआ?

नफे : दुःख होता तो चुपचाप 101 रुपए का हनुमानजी का प्रसाद न बाँटता। अपने पिता के मरने पर उसके मन में तो मोतीचूर के लड्डू फूट रहे थे।

जिले : लड्डू तो फूटने ही थे। आखिर बाप की मौत के बाद उनकी ढेर सारी जायदाद जो उसे मिलने वाली थी।

नफे : हाँ, पर सूबे  की किस्मत इतनी अच्छी नहीं है।

जिले : वो कैसे?

नफे : सूबे ने पितृ भक्ति का ड्रामा करते हुए अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरी करने की तैयारी की।

जिले : कौन सी अंतिम इच्छा?

नफे : सूबे के पिता कवि प्राण चंद की अंतिम इच्छा थी, कि उनकी चिता को जलाने से पहले उनकी चिता के बगल में एक भव्य मंच स्थापित कर उस पर एक भव्य कवि सम्मेलन आयोजित करवाया जाए।

जिले : तो क्या फिर सूबे ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी की?

नफे : हाँ की और अब उसी अंतिम इच्छा के बाद हुए दुष्प्रभाव के लिए पछता रहा है।

जिले : कैसा दुष्प्रभाव?

नफे : सूबे ने अपने पिता की चिता के बगल में एक भव्य मंच को स्थापित कर एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया। उस कवि सम्मेलन में देश के जाने-माने कवियों एवं कवयित्रियों को बुलाया गया। ज्यों ही कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ कवि प्राण चंद के हाथ-पैर हिलने-डुलने लगे और कवि सम्मेलन ज्यों ही उफान पर पहुँचा वो माँ शारदे को नमन करते हुए उठ खड़े हुए।

जिले : अरे, ये तो बहुत बढ़िया हुआ। सूबे के प्रयास से उसके पिता को एक नया जीवन मिल गया।

नफे : हाँ, पर सूबे का जीवन बर्बाद हो गया।

जिले : वो कैसे?

नफे : सूबे के पिता ने अपनी जायजाद को उनकी चिता के पास कवि सम्मेलन में कविता पाठ करने वाली अपनी प्राण प्यारी कवयित्रियों के नाम करने की घोषणा कर डाली और सूबे के हिस्से में सिर्फ रहने के लिए पुराना घर बाकी बचाया।

जिले : ओहो, ये तो अंतिम इच्छा पूरी करने का वाकई में तगड़ा दुष्प्रभाव हो गया। भाई, एक बात तो बता।

नफे : पूछ!

जिले : ये सूबे रोते-रोते अचानक मुस्कुराने क्यों लगता है? कहीं वसीयत की घोषणा का दुष्प्रभाव इसके दिमाग पर तो नहीं पड़ गया है?

नफे : सूबे का रोते-रोते अचानक मुस्कुराने का कारण है कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट का आगमन।

जिले : तो उसके आने से सूबे को क्या फायदा होगा?

नफे : डेल्टा प्लस वैरिएंट से लोगों को बचाने के लिए सरकार द्वारा फिर से लॉकडाउन लगाया जाएगा और प्राण चंद के पास जमा प्राण, ऊर्जा और शक्ति इत्यादि के स्टॉक की फिर से समाप्ति होगी।

जिले : और फिर सूबे को अपने बाप की अंतिम इच्छा को पूरा करने के बाद उसके जीवन पर पड़े दुष्प्रभाव को ठीक करने का एक शानदार मौका मिल जाएगा। धन्य हैं प्राण चंद जो उन्हें ऐसा पूत मिला।

नफे : यथा पिता तथा पुत्र।

जिले : बिलकुल सही कहा भाई।

कार्टून गूगल से साभार

सोमवार, 19 जुलाई 2021

बाल कविता : बारिश क्यों होती


छुटकी ने पूछा दादी से 

अम्मा एक बात बताओ

बारिश होती है क्यों

मुझको ये समझाओ

दादी बोलीं - सुन छुटकी

धरती माँ जब गुस्से से

बुरी तरह तपने लगतीं

और धरती माँ की संतानें 

उस ताप से जलने लगतीं

तब सभी जीव मिलकर 

प्रभु से गुहार लगाते

और प्रभु की आज्ञा पा

बादल जल संग आते

बादलों के शीतल जल से

धरती माँ शांत होती

तो समझ गयी न छुटकी 

बारिश क्यों है होती।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

बाल कविता : दादी का चश्मा

दादी ने अपनी खातिर

नया एक चश्मा बनवाया 

दादी की प्यारी पोती को

वो चश्मा बहुत ही भाया

दादी ने ज्यों ही रखा चश्मा

पोती ने झट से उसे उठाया

दादी जैसी ही बनने को 

फट से उसे आँखों पे लगाया।

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

बेचारे ठाकुर साहब


     रात को ठाकुर साहब के खेत पर माँस और दारू की पार्टी जोरों से चल रही थी। गाँव के सारे पियक्कड़ ठाकुर साहब के सामने जमीन पर बैठकर दारू के पैग लगा रहे थे और ठाकुर साहब सीना चौड़ा किए हुए कुर्सी को सिंहासन समझकर अपने पुरखों के सम्मान में पलीता लगा उस पर बैठे हुए दारू के पैग लेते हुए घमंड में चूर-चूर हो मुस्कुरा रहे थे। 

पार्टी खत्म हुई और सारे पियक्कड़ों ने वहाँ से अपने-अपने घरों को रवाना होते हुए कहा, "ठाकुर साहब के राज में हम सबकी मौज ही मौज है।"

ठाकुर साहब ने अपनी एक आँख खोल अपने सीने को थोड़ा अकड़ा कर  घमंड से चूर होते हुए उन्हें देखा और फिर कुर्सी पर ही नशे से मूर्छित हो गए।

ऐसे ही कुछ दिनों तक पार्टियों का व ठाकुर साहब की जयकारों का दौर चलता रहा और बेचारे ठाकुर साहब के खेत-खलिहान और घर बिक गए। 

अब ठाकुर साहब के जयकारे लगाने वालों ने एक दूसरे ठाकुर साहब खोज लिए हैं। अब उन ठाकुर साहब के खेत-खलिहान और घर अपने बिकने के उचित समय का इंतज़ार कर रहे हैं।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

व्यंग्य : ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई


    फे कहीं जाने के लिए निकल रहा थाकि तभी अचानक जिले का आना हुआ। जिले नफे को टोकते हुए बोला।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : इतनी तेजी में कहाँ को भागा जा रहा है?

नफे : भाई थोड़ा जल्दी में हूँ। कल फुर्सत में बताऊँगा।

जिले : इतनी भी जल्दी क्या हैजो अपने खास दोस्त के लिए दो मिनट भी नहीं निकाल सकता।

नफे : अरे नहीं भाईऐसी कोई बात नहीं है।

जिले : तो फिर जो बात है उसे बता डाल।

नफे : असल में मैं ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई करवाने जा रहा हूँ।

जिले : ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाईये कब से होने लगीमैंने तो सुना है कि उसका उत्पादन ऑक्सीजन के प्लांट में होता है।

नफे : भाईहैरान मत हो ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई भी होती है।

जिले : भाईया तो तूने सुबह-सवेरे चढ़ा ली है या फिर तू ये समझ रहा है कि मैं नशे में हूँ।

नफे : भाईतू गलत क्यों सोच रहा है?

जिले : गलत नहीं बल्कि सही सोच रहा हूँ। सुबह-सुबह उल्टी-सीधी बातें बनाकर तू मेरा दिमाग खराब कर रहा है।

नफे : अगर तुझे मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा है तो तू मेरे साथ चल कर देख ले, कि ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई होती है या नहीं।

जिले : तो फिर चलआज दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

जिले नफे के साथ चल पड़ता है। वहाँ नफे उसकी मुलाक़ात पर्यावरण रक्षा दल के साथ करवाता है। कुछ देर बाद नफे पर्यावरण रक्षा दल के साथ मिलकर पौधरोपण करते हुए जिले से कहता है।

नफे : ये देख, ये हो रही है ऑक्सीजन सिलेंडर की रोपाई। 

नफे की बात को सुन कर जिले को गुस्सा आ जाता है।

जिले : नफे,  ये हद हो गयी।  पौधारोपण को तू ऑक्सीजन सिलेंडरों की रोपाई बता रहा है। इसका मतलब है कि तू मुझे बिलकुल बेवकूफ ही समझता है।

नफे : अरे नहीं भाईऐसा कुछ नहीं है।

जिले : तो फिर तूने मुझसे झूठ क्यों बोला?

नफे : मैंने झूठ कहाँ बोलाये पौधे ही एक दिन बड़े होकर वृक्ष बनेंगेजो वातावरण में नियमित रूप से ऑक्सीजन की सप्लाई किया करेंगे। दूसरी भाषा मे कहें तो ये पौधे भविष्य के ऑक्सीजन सिलेंडर ही तो हैं। 

जिले : ओहइस बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।

नफे : इसमें तेरी सोच का दोष नहीं बल्कि दोष मानवीय प्रवृत्ति का है।

जिले : वो कैसे भला?

नफे : हम मानव प्रगति की अंधी दौड़ में कथित सफलता पाने की आस पाले हुए निरंतर दौड़े जा रहे हैं।

जिले : हम मानव आखिर किस तरह की सफलता को पाने के लिए इस अंधी दौड़ में भागीदारी कर रहे हैं?

नफे : ये कथित सफलता येन केन प्रकारेण अधिक से अधिक धन कमाने की है।

जिले : ओहमतलब कि प्रकृति के नाश की जड़ कथित सफलता पाने के लिए दौड़ी जा रही प्रगति की ये अंधी दौड़ ही है।

नफे : हाँ जिलेहम स्वार्थी मानवों ने अपने स्वार्थ से वशीभूत होकर अपनी जेबें भरने के लिए हरे-भरे पेड़ों का सफाया कर वहाँ फ्लैटोंमॉलों और मल्टीप्लेक्स बिल्डिंगों को खड़ा कर दिया है।

जिले : हाँये बात तो है।

नफे - और ये सब करते हुए हम मानवों ने प्रकृति द्वारा प्रदत्त इन प्राकृतिक ऑक्सीजन सिलिंडरों की न तो कभी परवाह की और न ही इनका संरक्षण किया। हम मानव प्रकृति के इन अनमोल उपहारों का विनाश कर कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं। पर हम ये नहीं समझ पा रहे हैं, कि एक दिन ये कंक्रीट के जंगल ही मानव सभ्यता को लील जाएंगे। 

जिले - सही कहा भाईमुझसे भी ये भूल हुई है। मैंने अपनी खेती की जमीन बढ़ाने के लालच में एक बीघा जमीन में लगा आम का बगीचा सिर्फ इसलिए कटवा दियाक्योंकि उसमें आम की पैदावार कम होने लगी थी।

नफे : इसका मतलब है कि तू भी प्रगति की अंधी दौड़ में कथित सफलता पाने के लिए प्रतिभागी रह चुका है। 

जिले : हाँ भाईमैं भी प्रगति की इस अंधी दौड़ के चक्कर में एक बार फंस चुका हूँ।

नफे : और इस चक्कर में घनचक्कर बन तूने आम के बगीचे के रूप में ऑक्सीजन सिलिंडर के एक अच्छे-खासे प्लांट का सत्यानाश कर दिया।

जिले : हाँ भाईहो गयी थी गलती। पर अब मैं अपने उस पाप का प्रायश्चित करूँगा।

नफे : वैसे तूने अपने उस पाप का प्रायश्चित करने का क्या उपाय सोचा है?

जिले : मैं अपनी खेती की जमीन में से एक के बजाय दो बीघा जमीन में पौधों की रोपाई करूँगा। 

नफे : तेरा मतलब है कि तू ऑक्सीजन सिलेंडरों की रोपाई करेगा।

जिले : हाँ भाईमेरे द्वारा रोपे गए पौधे जब वृक्ष बनकर लोगों के फेफड़ों मे शुद्ध ऑक्सीजन की सप्लाई करेंगेतब कहीं जाकर मेरा प्रायश्चित पूरा हो पाएगा।

नफे : काशतेरी तरह बाकी लोग भी अपने पापों का प्रायश्चित करने लगेंतो फिर इस संसार में किसी भी इंसान की ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु नहीं होगी।

जिले : बाकी लोग भी कभी न कभी मेरी तरह पश्चाताप करते हुए इस नेक काम को अंजाम देंगे।

नफे : यदि सच में ऐसा हुआ तो मानवीय फेफड़ों और ऑक्सीजन में कभी भी संधिविच्छेद नहीं हो पाएगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

कार्टून गूगल से साभार

बुधवार, 14 जुलाई 2021

बाल कविता : छुटकी की उलझन



छुटकी बोली भैया से

भैया एक बात बताओ 

दिन में गर्मी रात में ठंडक 

होती क्यों समझाओ

भैया ने उसको समझाया

सूरज चाचा दिन भर

गुस्से से तपते रहते

उनके गुस्से से ही हम

दिन भर गर्मी सहते

रात को चंदा मामा आ

चांदनी मामी संग इठलाते

फिर दोनों प्रेम भाव से

 जग में ठंडक फैलाते।

रविवार, 11 जुलाई 2021

ज़हरीली मानसिकता

(एक पुलिस कर्मी साथी के संग घटी घटना पर आधारित)

क दिन मैं सम्मन तामील करवाने पुरानी दिल्ली में एक मुस्लिम के घर गया। वहां सम्मन लेने के बाद घर के मुखिया ने चाय पीकर जाने की जिद की, तो मैं उनकी जिद को टाल न सका और वहाँ कुछ देर के लिए रुक गया। कुछ देर बाद चाय आ गई। चाय के घूंट लेते हुए मैंने घर के मुखिया से पूछा, "मुल्ला जी, आपके कितने बालक हैं?" 

मुल्ला जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " कुल मिलाके आठ हैं। पाँच लड़के और तीन लड़कियां।" 

मैं उनसे बोला, "मुल्ला जी, आपकी माली हालत तो ठीक नहीं लगती। आपका मकान भी छोटा सा है। अभी तो काम चल जाएगा, लेकिन एक दिन आपके बच्चे बड़े होंगे। उनकी शादी भी होगी। तब इतने छोटे घर में आपका और आपके इतने बड़े परिवार का गुजारा कैसे हो पाएगा?"

मुल्ला जी मुस्काए और हंसते हुए बोले, "हमारे मकान के बगल वाली शानदार कोठी देख रहें हैं। ये जैन साहब की है। उनका एक ही लड़का है। किसी दिन हमारा कोई एक लड़का उनके इकलौते लड़के को गोली मार कर जेल चला जायेगा। फिर तो वो कोठी भी हमारी ही हो जायेगी। इसलिए हम फालतू में फिक्र नहीं करते।"

मैं उनकी ऐसी ज़हरीली मानसिकता को जान कर दंग रह गया और चाय पीकर वहाँ से चुपचाप निकल लिया।

शनिवार, 10 जुलाई 2021

Chilren Story : Thick Glasses


  Seeing Parth sitting sad on the stairs, Hemu uncle went to him and asked him the reason for his sadness.

Hemu uncle - Parth son, why are you so sad today?

Parth - Uncle, no one in the house loves me.

Hemu uncle - What happened after all, why are you talking like this?

Parth - Everyone in the house keeps scolding me

Hemu uncle - Son, there must be some reason to scold.

Parth - Uncle, I love watching cartoons.

Hemu Uncle - All children watch cartoons. What's wrong with that?

Parth - Nothing, but who should explain it to my mom? She always keeps me away from watching cartoons. If I do not listen her, she scolds me.

Hemu uncle - Well, how long do you watch cartoons in a day?

Parth - Uncle, I watch cartoons all day.

Hemu Uncle - All day?

Parth - Yes uncle, on this matter first mom scolds and then dad gets me beaten.

Hemu Uncle - Your scolding and beating is absolutely right.

Parth - Uncle, you too turned out like mom and dad.

Hemu uncle - You will realize your mistake when you will grow up.

Parth - What a mistake uncle?

Hemu Uncle - When I was in your age, I used to use mobile and watch TV a lot. Grandparents, parents and elders interrupted me a lot, but I did not listen to anyone, for which I got a lot of punishment.

Parth - What kind of punishment did you get?

Hemu uncle - My eyes became very weak, due to which I got such thick glasses on my eyes. Now I can neither study nor do any other work without glasses.

Saying this Hemu uncle became very sad.

Parth - Uncle, is it so dangerous to operate the mobile phone?

Hemu uncle - Yes Parth, if you still don't improve then be ready to wear thick glasses like me.

Parth gets nervous hearing this.

Parth - Uncle, I do not want to wear such thick glasses. From today mobile phone is completely stopped.

Hemu Unlce - Well done son.

Writer : Sangeeta Singh Tomar

Translated by : Sumit Pratap Singh

शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

कविता : उपक्रम


प्रिये, इन दिनों मैं

शब्दों को बचाने के 

उपक्रम में लगा हूँ

इसलिए यदि मैं 

मितभाषी रहूँ 

अथवा मौन का 

अनुसरण करता मिलूँ

तो तुम चिंतित मत होना 

क्योंकि मेरा ये उपक्रम 

भविष्य में हम दोनों के लिए 

सुखकारी साबित होगा

जब सबकी तिजोरियों में 

शब्दों का अकाल पड़ जाएगा

तब हमारी तिजोरी 

शब्दों के खजाने से 

भरी पड़ी होगी 

और फिर हम उस खजाने से

समय-समय पर शब्दों को 

निकाल कर खर्च करते हुए 

अपने प्रेम की कथा को 

संपूर्णता प्रदान कर रहे होंगे।

गुरुवार, 8 जुलाई 2021

व्यंग्य : समझदारी की वैक्सीन

 

    जिले का साथी नफे अपनी बाँह को काफी देर से सहला रहा होता है, जिसे देखकर जिले उससे इस बारे में पूछताछ शुरू करता है।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : आज बाँह में भाभी ने ज्यादा जोर से बेलन जड़ दिया जो इसे इतनी देर से सहलाने में लगा हुआ है।

नफे : तेरी भाभी जब बेलन मारेगी तो सिर में ही मारेगी। फिलहाल उसकी इस विशेष कृपा से दूर ही हूँ।

जिले : हा हा हा, ऐसी विशेष कृपा कहीं पर अटकी रहे तो ही ठीक है। वैसे तेरी बाँह में हुआ क्या है?

नफे : दरअसल परसों मैंने कोरोना की वैक्सीन लगवायी थी, उसी से शरीर में दो दिनों तक हरारत सी रही और जिस जगह वैक्सीन लगवाई थी, वहाँ थोड़ी सूजन आ गयी है और उसमें दर्द भी हो रहा है।

जिले : शुक्र है कि मैं इस पचड़े में नहीं पड़ा।

नफे : तेरा मतलब है कि कोरोना की वैक्सीन लगवाना पचड़े में पड़ना है।

जिले : और नहीं तो क्या? सूबे ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि कोरोना की वैक्सीन न लगवाऊँ। वरना मैं तो अब तक उसे लगवा भी चुका होता।

नफे : इसमें तेरा कोई दोष नहीं है। अगर समय से तुझे समझदारी की वैक्सीन लग जाती तो तू ऐसी हरकतें न करता।

जिले : समझदारी की वैक्सीन? भाई, इस नाम की वैक्सीन कबसे लगनी लगी?

नफे : ये वैक्सीन हर माँ-बाप द्वारा अपने बालक को बचपन में लगायी जाती है। अच्छे संस्कारों के संग अच्छे-बुरे की समझ की सीख को मिक्स करके समझदारी की वैक्सीन का निर्माण किया जाता है और फिर उसे नैतिकता की सिरिंज में भरकर माता-पिता द्वारा अपने नौनिहालों को लगा दिया जाता है।

जिले : भाई, मेरे अम्मा-बापू ने समझदारी की वैक्सीन तो पक्का मुझे भी लगवाई होगी।

नफे : तो फिर समझदारी की वैक्सीन लगवा कर भी तू ऐसी नासमझी क्यों कर रहा है? तुझे पता भी है कि जिस सूबे की बातों में आकर तू कोरोना की वैक्सीन लगवाने को पचड़े में पड़ना मान रहा है वो और उसका परिवार महीने भर पहले ही इसकी पहली डोज ले चुके हैं।

जिले : अरे, सूबे ने अपने परिवार संग कोरोना की वैक्सीन लगवा ली और हम सबको वैक्सीन न लगवाने के लिए बहका रहा है। 

नफे : और तुम सब बिना सोचे-समझे उसकी बातों में आकर बहक भी रहे हो।

जिले : भाई, बहुत बड़ी गलती हो गयी। मैं सूबे की बातों में आकर नासमझी कर बैठा।

नफे : नासमझी सिर्फ तूने ही नहीं की है, बल्कि सूबे जैसों के चक्कर में पड़कर जाने कितने समझदार नासमझ हो रखे हैं।

जिले : भाई, ये सूबे और उस जैसे लोग इस नासमझी के वायरस को क्यों फैला रहे हैं? क्या उन्होंने भी बचपन में समझदारी की वैक्सीन नहीं लगवाई थी?

नफे : उन्होंने तो समझदारी की वैक्सीन का डबल डोज लिया होगा। 

जिले : तो फिर वे सब ऐसी नासमझी क्यों कर रहे हैं?

नफे : वे सब ऐसी नामसमझी जानबूझकर कर रहे हैं।

जिले : जानबूझकर? वो क्यों भला?

नफे : दरअसल उनसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि अपना देश कोरोना से डटकर मुकाबला कैसे कर पा रहा है। 

जिले : तो उनके अनुसार कोरोना से मुकाबला करने के बजाय उसके आगे घुटने टेक दिए जाने चाहिए।

नफे : सूबे और सूबे जैसों के आका यही तो चाहते हैं। यदि देश कोरोना के आगे आत्मसमर्पण कर देगा तो ये महामारी अपना विकराल रूप ले मौत का तांडव दिखाएगी। फिर लाशों के ढेर लगेंगे और उन लाशों के ढेरों पर ही सूबे और सूबे जैसों के आकाओं की धराशायी हो चुकी इमारतें फिर से खड़ी हो पाएंगीं।

जिले : बात तो तूने पते की कही। चल अब मैं भी पता ढूँढने की तैयारी करता हूँ।

नफे : किसका पता?

जिले : कोरोना वैक्सीन लगा रहे सेंटर का पता। मैं कल ही अपने पूरे परिवार के साथ कोरोना वैक्सीन लगवाता हूँ।

नफे : लगता है कि समझदारी की वैक्सीन का खत्म हुआ असर फिर से असरदार हो रहा है।

जिले : हाँ भाई, लगता है कि ये समझदारी की वैक्सीन भी हनुमान जी की शक्ति के जैसी है। जब तक याद नहीं दिलावाओगे, बेअसर ही रहेगी।

नफे : जिले, अब तू सही लाइन पर आया है।

जिले : भाई, कल वैक्सीन लगवाने के बाद मैं भी नासमझ हो चुके लोगों को समझदारी की वैक्सीन का स्मरण करवाना शुरू करता हूँ। 

नफे : लगता है कि सूबे और सूबे जैसों के आकाओं की महत्वाकांक्षाओं की इमारत के थरथराने का समय आ गया है।

जिले : थरथराने का नहीं बल्कि भरभरा कर गिरने का समय आ गया है।

नफे : इस नेक कार्य के लिए मेरी ओर से तुझे अग्रिम शुभकामनाएं!

जिले : धन्यवाद भाई!

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

व्यंग्य : इंसानियत का पुराना वेरिएंट


     फे गंभीर सोच-विचार में डूबा हुआ था। जिले ने सोचा कि क्यों न वह भी उस सोच-विचार में भागीदारी कर ले। इसी प्रयास में वह नफे के पास जा पहुँचा।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : किस सोच-विचार में डूब रखा है?

नफे : भाई, अब तुझे क्या बताऊँ कि मैं किस गंभीर चिंतन में हूँ।

जिले : बता दे भाई, क्योंकि बताने से जी कुछ हल्का हो जाता है।

नफे : दरअसल मैं डेल्टा प्लस को लेकर चिंतित हूँ।

जिले : भाई, ये डेल्टा प्लस कौन है? कहीं इस नाम से पुलिस कंट्रोल रूम ने कोई नया कॉल साइन तो नहीं बना दिया?

नफे : ये पुलिस कंट्रोल रूम का नया कॉल साइन नहीं, बल्कि कोरोना का नया वेरिएंट है।

जिले : मैं कुछ समझा नहीं। जरा  खुल के बता।

नफे : कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ डेल्टा वेरिएंट का ही विकसित रूप है। इससे पहले डेल्टा वेरिएंट मिला था। कोरोना की दूसरी लहर में अधिकतर लोग इसी डेल्टा वेरिएंट का शिकार हुए थे। वैज्ञानिकों के मुताबिक, डेल्टा वेरिएंट ही विकसित होकर डेल्टा प्लस बन गया है।

जिले : पर इस डेल्टा प्लस की योजना क्या है?

नफे : इसकी योजना अधिक से अधिक लोगों को ऊपर पहुँचाने की है?

जिले : अरे बाप रे, भाई ये कोरोना के नए-नए वेरिएंट भला कहाँ से टपक रहे हैं?

नफे : इस देश में कुछ महान लोग हैं, जो ढीठता दिखाते हुए कोरोना गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाते फिरते हैं, उनके योगदान से ही कोरोना के नए-नए वेरिएंट देश में मौत की चहलकदमी करने में सफल हो रहे हैं।

जिले : भाई, लोग बाहर तो निकलेंगे ही। आखिर कब तक घर में घुसे रहेंगे?

नफे : जब तक कि इस कोरोना का सफाया न हो जाये।

जिले : इसके सफाए में न जाने कितने साल लगें। तब तक लोग निठल्ले तो नहीं बैठ सकते।  जब वो कमायेंगे तभी तो खा पायेंगे। 

नफे : तेरी बात ठीक है, लेकिन जब लोग रोजी-रोटी के लिए बाहर निकलें तो मास्क को सही तरीके से पहनें, समुचित दूरी का पालन करें और समय-समय पर हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं या फिर उन्हें सेनेटाइजर से सेनेटाइज करें।

जिले : और ऐसा अपने देश की कुछ महान आत्माओं को करना नहीं है। वैसे भाई इस नए वेरिएंट से बचने का कोई ठोस उपाय नहीं है?

नफे : है न।

जिले : तो जल्दी बता ना।

नफे : इसका उपाय इंसानियत का पुराना वेरिएंट है।

जिले : इंसानियत का पुराना वेरिएंट? 

नफे : हाँ, पुराने समय में इंसानियत एक-दूसरे के सुख-दुख की साथी थी। इंसान के प्रति वह जिम्मेदारी का भाव रखती थी। कोई जरूरमंद हो या कोई भूखा-प्यासा मिले तो उनकी मदद करते हुए वह उनके साथ फोटो नहीं खिंचवाती थी। वह संत कबीर के दोहे "साईं इतना दीजिये, जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥" को चरितार्थ कर भोगवादी चार्वाक दर्शन की उक्ति "जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज लेकर घी पियो।" को अपनाने के बजाय भविष्य के लिए बचत करने में विश्वास करती थी।

जिले : सही कहा भाई, आज के समय लोग रोज कमाने और रोज खाने के सिद्धांत को अपना कर भविष्य के लिए कुछ नहीं बचाते और झूठे दिखावे की खातिर हर चीज लोन पर ले रहे हैं। 

नफे : अगर ये खाने-पीने के साथ बचत पर भी ध्यान देते तो शायद हमें ये दिन न देखने पड़ते। इसके साथ लोग इस बात को भी समझें कि कोरोना पर सरकार की गाइडलाइंस का पालन करना उनकी नैतिक जिम्मेवारी है। जब इंसानियत का पुराना वेरिएंट फिर से शक्तिशाली होगा तो उसके आगे ये कोरोना और इसके नए-नए वेरिएंट नहीं ठहर पाएंगे।

जिले : भाई, हम सब मिलकर इंसानियत के पुराने वेरिएंट को फिर से लाने की कोशिश करेंगे।

नफे : बिलकुल करेंगे भाई, क्योंकि मैंने सुना है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

जिले : तू फिकर मत कर हमारी भी हार नहीं होगी।

नफे : अगर ऐसा हुआ तो इंसानियत फिर से मुस्कुराएगी।

गुरुवार, 24 जून 2021

व्यंग्य : ज़िंदगी का कोका कोला


    फे बहुत देर से उदास बैठा हुआ था। जिले से नफे की उदासी बर्दाश्त नहीं हुई और उस उदासी का कारण जानने के लिए उसने नफे से पूछताछ शुरू की।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : आज इतना उदास क्यों है?

नफे : उदास होने का कारण जिंदगी का कोका कोला होना है।

जिले : ज़िंदगी का कोका कोला? भाई मैं कुछ समझा नहीं।

नफे : मतलब कि ज़िंदगी की ऐसी-तैसी हो रखी है।

जिले : अब ये ज़िंदगी की ऐसी-तैसी की जगह ज़िंदगी का कोका-कोला होना कहावत कब ईजाद हो गयी?

नफे : इस कहावत का जन्म कुछ दिन पहले ही हुआ है।

जिले : किसने जन्म दिया इस कहावत को?

नफे : दरअसल बात ये है कि पुर्तगाली सुपरस्टार फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो के यूरोपीय चैम्पियनिशप में प्रेस कांफ्रेस के दौरान अपने सामने से कोका-कोला की बोतलों को एक तरफ खिसका कर पानी की बोतल को उठाया और पुर्तगाली भाषा में कहा 'अगुआ' मतलब पानी। ऐसा लग रहा था कि वह कोल्ड ड्रिंक्स के बजाय पानी को अपनाने की सलाह दे रहे थे।

जिले : रोनाल्डो ने सलाह तो अच्छी दी थी।

नफे : पर उस अच्छी सलाह का भुगतान कोका कोला कंपनी को भुगतना पड़ा।

जिले : वो कैसे?

नफे : वो ऐसे कि इस घटना कोका कोला कंपनी के शेयर इतनी तेजी से नीचे गिरे कि चार अरब डॉलरों का राम नाम सत्य हो गया।

जिले : एक ओर रोनाल्डो है जो कोका कोला के बजाय पानी पीने की सलाह देता है, दूसरी ओर हमारे देश के खिलाड़ी और एक्टर हैं जो कभी टीवी पर पान मसाला बेचते मिलेंगे तो कभी कोल्ड ड्रिंक या शराब के ब्रांड की वकालत करते मिलेंगे।

नफे : वो बेचारे भी करें तो क्या करें, उनकी ज़िंदगी का भी इन दिनों कोका कोला हो रखा है। इसलिए वे सब पान मसाले, कोल्ड ड्रिंक और शराब इत्यादि के विज्ञापनों के सहारे गुजर-बसर करने की कोशिश कर रहे हैं।

जिले - अरे, उन्हें कम से कम रोनाल्डो को देखकर कुछ सीख लेनी चाहिए। उसने पैसे का मोह न देखकर लोगों के स्वास्थ्य की परवाह कर कोका कोला के बजाय पानी पीने की सलाह दी। इसे उसकी महानता ही कहेंगे।

नफे : हम भारतीयों में ये ही तो कमी है कि हम किसी को भी एकदम से भगवान बना देते हैं।

जिले : भाई, आखिर तू कहना क्या चाहता है?

नफे : यही कि तू जिस रोनाल्डो की शान में कसीदे पढ़ रहा है, वही रोनाल्डो कभी कोका कोला का ब्रांड एम्बेसडर रह चुका है।

जिले : क्या बात कर रहा है?

नफे : हाँ भाई, बाद में कोका कोला की प्रतिस्पर्धी कंपनी पेप्सी के स्वामित्व वाली केएफसी का प्रचार भी किया और ब्राज़ील की एक बीयर कंपनी का भी ब्रांड एंबेसडर रहा है। इसके अलावा उसने एनर्जी ड्रिंक्स और हेल्थ ड्रिंक्स के नाम से बिकने वाले कई और उत्पादों के भी विज्ञापन किए हैं।

जिले : भाई, फिर ऐसी क्या वजह थी जो रोनाल्डो ने कोका कोला का ही कोका कोला कर डाला?

नफे : होगा कोई कारण जिनके कारण रोनाल्डो और कोका कोला कंपनी के आपसी संबंधों का कोका कोला हो गया हो।

जिले : हूँ, अच्छा अब तू ये बता कि तेरी ज़िंदगी का कैसे कोका कोला हो रखा है?

नफे : पिछले एक साल से सरकार ने इंक्रीमेंट दिया नहीं, बल्कि कोरोना रिलीफ के नाम पर कुछ न कुछ काट और लेती है। ऊपर से फ्रंटलाइन वर्कर बना रखा है वो अलग से। इसे ज़िंदगी का कोका कोला होना नहीं तो भला और क्या कहेंगे।

जिले : भाई, इस कोरोना काल में सिर्फ तेरा ही नहीं बल्कि पूरे संसार का कोका कोला हो रखा है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चीनी ड्रैगन के नाजायज बेटे ने बिलकुल चौपट कर दिया है।

नफे : सही कहा।

जिले : भाई, अब तू ये सब बातें छोड़ और पीने के लिए कोई ठंडी चीज मँगवा ले, क्योंकि ये भेजा बहुत गरम हो चुका है। 

नफे : कोका कोला मँगवाना है क्या?

नफे : अरे नहीं भाई, उसे पीकर अपनी आंतों का कोका कोला नहीं करवाना। 

नफे : हा हा हा तो फिर ठंडी लस्सी तो चलेगी न?

जिले : चलेगी नहीं भाई दौड़ेगी।

गुरुवार, 17 जून 2021

व्यंग्य : लहर चालू आहे


    नफे को विचारों में खोया हुआ देख कर जिले ने उससे पूछा।

जिले - भाई नफे!

नफे - हाँ बोल भाई जिले!

जिले - और आजकल क्या चल रहा है?

नफे - आजकल लहर चल रही है।

जिले - अब तक तो मैंने फॉग, स्वैग वगैरह के चलने के बारे में ही सुना था, पर तूने तो नई बात बता दी। वैसे इस लहर के चलने के बारे में कुछ बता।

नफे - भाई, लहर तो अपने देश में कई सालों से चल रही है। अब तूने देखी नहीं तो इसमें भला लहर का क्या दोष है।

जिले - भाई, भूल हो गयी जो देख नहीं पाया। अब तू अपनी आँखों से दिखा दे न।

नफे - आजादी से पहले अपने देश में देशभक्ति की लहर चलनी शुरू हुई थी। इस लहर में अंग्रेजी सत्ता उखड़कर उड़ते-उड़ते अपने मूल स्थान पर जा पहुँची और इस देश को लूट कर ले जाए गए माल के ब्याज पर अंग्रेजों की अय्याशी अब तक जारी है।

जिले - अंग्रेजी सत्ता के जाने के बाद अपने देश में कौन सी लहर चली थी?

नफे - उसके बाद देश को कथित स्वतंत्रता दिलवाने वालों के सत्ता सुख भोगने की लहर चली, जिसमें आजादी की खातिर मर-मिटने वालों और उनके परिवारों को विवशता के आँसू बहाते हुए देशवासियों ने देखा।

जिले - मतलब कि जिन्होंने देश के लिए अपना सबकुछ लुटा दिया, वे और उनका परिवार आजादी के बाद लुटी-पिटी हालत में ही रहे। अच्छा उसके बाद कौन सी लहर आयी?

नफे - उसके बाद भारत के बहादुर लाल की कुछ दिनों के लिए लहर चली, जिसने पापी पड़ोसी देश को कुछ पलों के लिए काल के साक्षात दर्शन करवा दिए। 

जिले - पर देश के उस बहादुर लाल को सत्ता पिपासुओं ने साजिश के तहत काल के गाल के हवाले कर दिया गया। खैर, उसके बाद कौन सी लहर आयी?

नफे - उसके बाद इमरजेंसी की लहर आयी, जिसमें अच्छे-अच्छे सूरमा उड़ कर जेल की सलाखों के पीछे जाकर गिरे।

जिले - बाद में उनमें से कई सूरमाओं ने सत्ता का सुरमा लगा कर देश को जमकर चूना लगाया। नेक्स्ट प्लीज!

नफे - उसके बात सत्ता बदलाव की लहर चली। फिर सत्ता वापसी की लहर चली। फिर बड़े पेड़ के गिरने के बाद विध्वंसक प्रतिक्रिया की लहर चली। उसके बाद छोटी-मोटी लहरों के चलने का सिलसिला चलता रहा। फिर एक लहर ऐसी आयी जिससे देश और दुनिया हिल गयी।

जिले - भाई, बोलते जा, इन लहरों के इतिहास को सुनकर मन लहरा रहा है।

नफे - इस मजबूत लहर ने जाने कितनों की राजनीति की दुकानों को उड़ा कर समुद्र में ले जाकर डुबो दिया और उन दुकानदारों को छाती पीटकर रोते रहने को छोड़ दिया।

जिले - अब उनके बाकी दिन यूँ ही छाती पीटते हुए ही बीतेंगे। अब तू आगे की बता।

नफे - इस मजबूत लहर के बाद चीनी ड्रैगन की अवैध संतान की विध्वंसक लहरों का आगमन हुआ।

जिले - चीनी ड्रैगन की अवैध संतान की लहरें? भाई, मैं कुछ समझा नहीं।

नफे - चीनी ड्रैगन की अवैध संतान यानि कि कोरोना। इसकी अब तक दो लहरें दुनिया में मौत का तांडव मचा चुकी हैं।

जिले - सही कहा भाई, चीनी ड्रैगन की इस अवैध संतान ने दुनिया की ऐसी-तैसी कर डाली। सुन रहे हैं कि कुल मिलाकर इस मुएँ कोरोना की पाँच लहरें आयेंगीं। अब न जाने ये तीसरी लहर कब आएगी।

नफे - संभावना तो ये है कि अपने देश में इसकी तीसरी लहर जल्द ही आएगी।

जिले - तू इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकता है?

नफे - तुझे हो न हो पर मुझे अपने देश के कुछ महान लोगों पर पूरा विश्वास है, कि वे सब मिलकर इस तीसरी लहर को जल्द ही ले आयेंगे।

जिले - वो भला कैसे?

नफे - इसके लिए उन्होंने तैयारी शुरु कर दी है। वे सब बिना मास्क के बिना बात के घर से बाहर घुमक्कड़ी का आनंद ले रहे हैं और सोशल डिस्टेन्सिंग की हत्या तो उन्होंने पहले ही उसका गला दबा कर दी है। 

जिले - भाई, मैं तो चला।

नफे - कहाँ को चला?

जिले - अगर ये महान लोग तीसरी लहर लाने की तैयारी शुरू कर चुके हैं, तो मैं भी जाकर इनसे बचने तैयारी आरंभ करता हूँ।

नफे - ईश्वर तेरी कोरोना से रक्षा करे।

जिले - भाई, ईश्वर सिर्फ मेरी ही नहीं बल्कि तेरी और सारी दुनिया की इस कोरोना से रक्षा करे।

नफे - एवमस्तु!

गुरुवार, 10 जून 2021

हास्य व्यंग्य : कोरोना काल की बहुएं

    पुलिस कर्मी जिले-नफे पुलिस पिकेट पर तैनात हो जनता को कोविड गाइडलाइन्स का पालन करवाने की ड्यूटी में व्यस्त हो रखे हैं।
जिले - भाई नफे!
नफे - हाँ बोल भाई जिले! 
जिले - आज सड़क पर ऐसा क्या देख लिया जो तेरी बाछें इतनी ज्यादा खिली हुई हैं?
नफे - भाई, कोरोना काल की बहुओं को देख कर ये बाछें खिली हुई हैं।
जिले - कोरोना काल की बहुएं? पर भाई मुझे तो कहीं कोई बहू-वहू दिखाई नहीं दे रही है।
नफे - ध्यान से देखेगा तो वो बहुएं तुझे दिख जायेंगीं।
जिले - भाई, तू पहेली मत बुझा। साफ-साफ बता कि कहाँ हैं कोरोना काल की बहुएं?
नफे - सामने देख, वो आ रहीं हैं कोरोना काल की बहुएं।
जिले - भाई, लगता है तुझ पर पुलिस की नौकरी की थकान का कुछ ज्यादा ही असर हो गया है, तभी तू सामने आ रहे आदमियों की जगह औरतों को देख रहा है।
नफे - जो मैं तुझे दिखाना चाह रहा हूँ, उसे तू देख कर भी नहीं देखना चाह रहा है। 
जिले - भाई, अब तू दिमाग का दही मत कर और जल्दी से कोरोना काल की बहुओं को दिखा।
नफे - सामने से आ रहे लोगों को और उनके घूँघट को ध्यान से देख।
जिले - हे भगवान, लगता है कि तू मुझे पागल करके ही छोड़ेगा। सामने से आदमी आ रहे हैं और उन्होंने कोई घूँघट-वूंघट नहीं ओढ़ रखा है। उन्होंने मुँह पर मास्क लगा रखा....लगा भी नहीं रखा बल्कि अपने-अपने गले में लटका रखा है।
नफे - वो ही तो कोरोना काल की बहुएं हैं और उन्होंने जो मास्क गले में लटका रखा है वो है उनका घूँघट।
जिले - मैं कुछ समझा नहीं।
नफे - भाई, ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। तू बस तैयार रह क्योंकि कोरोना काल की बहुएं अपने जेठ और ससुर को देख कर झट से घूँघट ओढ़ लेंगीं। इससे पहले कि बहुएं घूँघट ओढ़ें, हमें उनसे उनकी मुँह दिखाई का नेग ले लेना है।
जिले - एक मिनट, कोरोना काल की बहुओं के जेठ और ससुर हम हैं क्या? 
नफे - ठीक समझा!
जिले - देख भाई, बेशक तेरी और मेरी जन्मतिथि कागजों में समान हो पर मेरे बापू ने मेरे जन्म प्रमाणपत्र में मेरी उम्र ज्यादा लिखवा रखी है। सो कोरोना काल की बहुओं का तू ससुर है और मैं हूँ जेठ।
नफे - ठीक है बहुओं के जेठ जी!
जिले - और एक बात और सुन, बहुओं से मुँह दिखाई का नेग लिया नहीं जाता बल्कि दिया जाता है।
नफे - जेठ महाराज, कोरोना काल की बहुओं से मुँह दिखाई का नेग लिया ही जाता है, ताकि  वो यूँ सरेआम घूँघट उठाने से बाज आयें।
जिले - हूँ, वैसे इन बहुओं को घूँघट गिराने का इतना चाव क्यों रहता है?
नफे - दरअसल इनके दिलों में कोरोना सनम से गलबहियां करने की कुछ ज्यादा ही चाहत रहती है। पर इन्हें ये नहीं पता होता, कि इनकी चाहत के चक्कर में इनका कोरोना सनम इनके अगल-बगल के लोगों से भी गलबहियां कर डालेगा।
जिले - फिर तो इन्हें कोरोना सनम से दूर रखने के लिए दिलबर लट्ठ से मिलवाना पड़ेगा।
नफे - दिलबर लट्ठ से मिलवाने का कार्यक्रम इनसे नेग वसूलने के बाद ही रखेंगे। अगर सही मात्रा में नेग न मिला तो इनकी दादी सास बुरा मान जाएगी।
जिले - अब ये इनकी दादी सास कौन है?
नफे - दादी सास बोले तो सरकार।
जिले - भाई, दादी सास को बिलकुल भी बुरा नहीं मानने देंगे। तू बस नेग वसूलने की तैयारी रख मैं कुछ देर में ही इन कोरोना काल की बहुओं को पकड़ कर तेरे पास लाता हूँ।
इतना कह कर जिले ने दिलबर लट्ठ को उठाया और कोरोना काल की बहुओं की ओर तेजी से चल पड़ा।
चित्र गूगल से साभार

सोमवार, 7 जून 2021

दोषी नहीं थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान


     तिहास में चर्चित क्षत्रिय वंशों में एक चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय, जिनकी उपाधि रायपिथौरा थी तथा जिनका शासनकाल सन 1178 ईसवी से 1192 ईसवी था, हिंदुओं के सर्वाधिक चर्चित शासकों में से एक हैं। सम्राट पृथ्वीराज के पिता राजा सोमेश्वर चौहान थे। अपने पिता की मृत्यु के समय वह लगभग 11 वर्ष के थे तथा नाबालिग होने के कारण अपनी माँ के साथ राजगद्दी पर आसीन हुए थे। उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत पर शासन किया। उनका वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों पर भी नियंत्रण था। उनके राज्य की राजधानी अजयमेरु, जिसे आधुनिक समय में अजमेर कहा जाता है, में स्थित थी। हालाँकि मध्ययुगीन लोक किंवदंतियों ने उन्हें भारत के राजनीतिक केंद्र दिल्ली के राजा के रूप में वर्णित किया है, जो उन्हें पूर्व-इस्लामी भारतीय शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित करते हैं।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान को उनके पराक्रम एवं वीरता के लिए स्मरण किए जाने के साथ-साथ इस बात की भी चर्चा की जाती है, कि यदि उन्होंने अपने चिर-परिचित शत्रु शहाब-उद-दीन मुहम्मद गौरी को युद्ध में पराजित करने के पश्चात् क्षमादान नहीं दिया होता, तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता। रायपिथौरा के राजपूत समाज में भी उनके द्वारा मुहम्मद गौरी को दिए गए क्षमादान के लिए उनकी दबे मुँह आलोचना की जाती है। बेशक उनकी कितनी भी आलोचना की जाए अथवा उन्हें भारत में मुस्लिम साम्राज्य की  स्थापना का दोषी माना जाएलेकिन इसमें उनका कोई दोष नहीं था।

इस बात को समझने के लिए हमें मध्यकाल की वैश्विक परिस्थितयों का गंभीरता से अध्ययन करना पड़ेगा अरब की भूमि पर इस्लाम धर्म के उदय होने के पश्चात् पूरे विश्व में इस्लाम की पताका फहराने के लिए क्रूर अरबी-तुर्की मुस्लिम हमलावरों की रक्त की प्यासी तलवार विश्व के किसी न किसी राज्य पर आक्रमण कर वहाँ रक्तपात, लूटमार व बलात्कार जैसे कुकर्म करके अपना नाम इतिहास के काले अक्षरों में लिखवा रही थी विधर्मियों से युद्ध में जीतने के लिए विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी हर उल्टे से उल्टा व गलत से गलत तरीका अपनाने में कोई संकोच नहीं करते थे उनका उद्देश्य किसी भी तरह से युद्ध जीतकर विधर्मियों का नाश करना अथवा उन्हें उनके धर्म को तिलांजलि दिलवा कर इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित करना होता था जिस समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमा इस्लामी आक्रमण को झेल रही थी, उस समय भारत में राजपूत युग चल रहा था भारत के इतिहास में सन 648 ईसवी से सन 1206 ईसवी  तक के समय को 'राजपूत युगकी संज्ञा दी गयी है। इस युग का आरंभ 648 ईसवी में सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु से हुआ तथा इसकी समाप्ति 1206 ईसवी में भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना से हुई। राजपूत शासक मुस्लिम आक्रान्ताओं से चारित्रिक रूप में अतिश्रेष्ठ थे। राजपूत शासकों में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण थेजिनके कारण उनकी प्रजा उन्हें आदर की दृष्टि से देखा करती थी। एक राजपूत योद्धा अपने वचन का पक्का होता था और वह किसी के साथ विश्वाघात नहीं करता था। वह युद्ध क्षेत्र में अपने शत्रु को पीठ नहीं दिखाता था। वह रणभूमि में वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त करना पसंद करता था। राजपूत योद्धा निशस्त्र शत्रु पर प्रहार करना महापाप और शरणागत की रक्षा करना परम धर्म समझता था।

राजपूत योद्धाओं के गुणों की प्रशंसा करते हुए कर्नल टॉड ने लिखा है, "यह स्वीकार करना पड़ेगा, कि राजपूतों में साहसदेशभक्तिस्वामिभक्तिआत्म-सम्मानअतिथि संस्कार तथा सरलता के गुण विद्यमान थे।“ डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने राजपूतों के गुणों की प्रशंसा करते हुए लिखा है, "राजपूत में आत्म-सम्मान की भावना उच्च कोटि की होती थी। वह सत्य को बड़े आदर की दृष्टि से देखता था। वह  अपने शत्रुओं के प्रति भी उदार था और विजयी हो जाने पर उस प्रकार की बर्बरता नहीं करता थाजिसका किया जाना मुस्लिम विजय के फलस्वरूप अवश्यम्भावी था। वह युद्ध में कभी बेईमानी या विश्वाघात नहीं करता था और गरीब तथा निरपराध व्यक्तियों को कभी क्षति नहीं पहुंचाता था।“

इसके विपरीत विदेशी मुस्लिम आक्रांता बहुत ही क्रूर, बर्बर एवं अत्याचारी थे। वे युद्ध के दौरान व युद्ध के उपरांत निर्दयता व नीचता की सारी हदों को पार कर जाते थे। युद्ध के बाद पकड़े गए युद्धबंदियों को इस्लाम में धर्मांतरित होने के लिए विवश करना, इस्लाम को अपनाने से मना करने पर उनकी निर्दयतापूर्वक हत्या कर देना, उनके सिरों को काट कर उनकी मीनार बनवाना, स्त्रियों का सामूहिक बलात्कार करना, बच्चों व स्त्रियों को गुलाम बनाकर मुस्लिम सैनिकों को ईनाम स्वरुप बाँट देना अथवा विदेशी मंडियों में ले जाकर कौड़ी के भाव बेच देना उनके प्रिय कर्म थे। युद्ध के समय मुस्लिम शासक अपने सैनिकों में धार्मिक उत्साह भरते हुए युद्ध में उनके मारे जाने पर उन्हें इस्लाम के लिए शहीद होने का दर्जा दिए जाने व जन्नत मिलने तथा जन्नत में 72 हूरों के पाने का एवं युद्ध में जीते जाने पर ढेर सारा धन व अनेकों सुख-सुविधाओं के दिए जाने का लालच दिया करते थे, जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम सैनिक युद्ध में मर-मिटने के लिए तैयार हो जाते थे। एक प्रकार से हम कह सकते हैं, कि जिस समय अरबी-तुर्की मुस्लिम आक्रांता युद्ध जीतने के लिए हर प्रकार का निकृष्ट से निकृष्ट उपाय आजमा रहे थे, उस समय राजपूत शासक अपने आदर्शवादी नियमों के संग अपने शत्रुओं से युद्धभूमि में जूझ रहे थे।

अब सम्राट पृथ्वीराज चौहान के भारत में मुस्लिम सामाज्य की स्थापना के लिए दोषी मानने की बात की जाए,  तो इसमें उनका बिलकुल भी दोष नहीं था। अपनी शरण में आए शरणागत को शरण देना तथा युद्ध में हारे हुए शत्रु को क्षमा प्रदान करना राजपूतों की प्रवृत्ति में सम्मिलित है। सम्राट पृथ्वीराज ने तो केवल अपनी जातीय प्रवृत्ति के अनुसार कर्म करते हुए अपने पराजित शत्रु मुहम्मद गौरी को बार-बार क्षमा प्रदान की। इसी बात का लाभ उठाकर मुहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ हुए युद्धों में कई बार असफलता मिलने के बावजूद बार-बार उनके राज्य पर आक्रमण किए और अंततः 1192 ईसवी में हुए तराइन के निर्णायक युद्ध में उन्हें पराजित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत देश की पावन भूमि को बर्बर विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने अपने खूनी शिकंजे में कस कर अपवित्र करना आरंभ कर दिया।

चित्र गूगल से साभार

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