- भाई जिले!
- हाँ बोल भाई नफे!
- आज कैसे उदास हो बैठा है?
- कुछ नहीं भाई बस इस जीवन से निराश हो गया हूँ।
- वो क्यों भला?
- भाई सारी जमा पूंजी लगाकर एक धंधा शुरू किया था पर वो जमा नहीं। सारा पैसा डूब गया। अब समझ में नहीं आता कि क्या करूँ।
- तो इसमें इतना निराश क्यों होता है? थोड़ी कोशिश और मेहनत कर सब ठीक हो जाएगा।
- भाई अगर तू मेरी जगह होता तो अब तक किसी पेड़ पर लटक चुका होता।
- भाई इतना भी सिरफिरा नहीं हूँ, जो पेड़ पर लटककर अपनी कीमती जान दे दूँ और न ही मैं उन लोगों जितना महान नहीं हूँ, जो आए दिन जरा सी परेशानी या मुसीबत आनेपर इस अनमोल जीवन का राम नाम सत्य कर डालते हैं। मेरा मानना है कि कई योनियों के बाद नसीब हुआ ये मानव जीवन यूँ एक पल में गँवाने के लिए नहीं है जब तक कि इसके पीछे कोई नेक उद्देश्य न हो।
- नफे तू भी कहाँ मेरे और मेरे जैसे लोगों के दुखों को सुन भावुक हो उठा। खैर तू मेरी छोड़ अपनी सुना। आज तेरे चेहरे पर बड़ी रौनक लग रही है। कहाँ से आ रहा है?
- भाई आज इंडिया गेट की सैर करके आ रहा हूँ।
- अरे वाह तो क्या-क्या देखा वहाँ?
- वहाँ अंग्रेजों की सेवा करते हुए प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्धों में मारे गए 90,000 अंग्रेज भक्त भारतीय सैनिकों की याद में अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया युद्ध स्मारक रुपी इंडिया गेट देखा, इसकी मेहराब के नीचे स्थित आजादी के बाद स्थापित की गई अमर जवान ज्योति को सादर नमन किया, इंडिया गेट के इर्द-गिर्द घूमते हुए पानी पूरी खायी और जिले सिंह से मुलाकात की।
- अरे भाई मैं वहाँ कहाँ मिल गया जबकि मैं तो कल दुखी हो अपना सिर पकड़े हुए घर पर ही पड़ा रहा।
- भाई वो जिले सिंह कोई और था। हमें देखते ही पुकारकर अपने पास बुला लिया। गुब्बारे बेच रहा था। अब से कुछ साल पहले नाई का काम करता था। दिल्ली के एंड्रूज गंज इलाके में मालिक सनी की दुकान में जिले सिंह नौकर नहीं बल्कि मालिक की तरह काम करता था। बहुत ही हाजिर जवाब था। अपने ग्राहक के बालों को काटते हुए उनका खूब मनोरंजन करता रहता था और साथ ही साथ अपने मालिक सनी की खिंचाई भी करता रहता था।
- फिर वो गुब्बारे क्यों बेचने लगा?
- उसके मालिक को रोज शराब पीने की बुरी आदत थी। जिले ने उसे बहुत समझाया पर वो नहीं माना। सनी भी उन भले लोगों में से एक था जो नेक सलाह को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकालना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। और एक दिन वो भी आया जब शराबखोरी ने सनी का एक्सीडेंट करवा दिया और सनी अपने परिवार, अपनी दुकान और जिले सिंह को छोड़कर हमेशा के लिए चला गया।
- ओहो ये तो बहुत दुखद हुआ। अच्छा फिर जिले का क्या हुआ?
- जिले अच्छा कारीगर था पर उसे कहीं काम नहीं मिला।
- क्यों भई अच्छे कारीगर को तो काम मिलने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी।
- भाई जिले सिंह खरी बात कहनेवाला खरा इंसान ठहरा और आज के जमाने में खरी-खरी कहनेवालों को बिलकुल भी पसंद नहीं किया जाता। और फिर उसकी उम्र और बालों में आ रही सफेदी भी उसके काम मिलने के आड़े आ गयी।
- और वो बेचारा इंडिया गेट पर गुब्बारे बेचने लगा।
- हाँ पर वो निराश नहीं था। उसके भीतर जिंदगी को जीने का जज्बा दिखाई दे रहा था। वो और लोगों की तरह निराशा से अपना जीवन बर्बाद करने की बजाय मेहनत करके अपने और अपने परिवार की गुजर-बसर करने के लिए प्रयासरत है और कुला मिलाकर खुश है। वैसे दोस्त एक बात कहूँ जीना इसी को कहते हैं।
- बात तो तू ठीक कह रहा है भाई। उस जिले सिंह ने इस जिले सिंह को सबक दिया है। जिले सिंह को ये तेरा दोस्त अपनी प्रेरणा बनाएगा और जिंदगी को पूरी हिम्मत से लड़ते हुए जिएगा।
- अब आया न लाइन पर।
- हाँ भाई बेशक देर से आया पर दुरुस्त आया। है कि नहीं?
- बिलकुल भाई!
लेखक : सुमित प्रताप सिंह