जब-जब भी मेट्रो ट्रेन में यात्रा करने का सुअवसर प्राप्त होता है, तो मेट्रो में अपने-अपने स्मार्ट फोन में खोए हुए जीवों को देखकर इस भोले से मन-मस्तिष्क में एक स्मार्ट सा विचार आता है, कि ये संसार जाति, धर्म, पंथ, अमीर-गरीब व अच्छे-बुरों के अतिरिक्त दो और वर्गों क्रमशः स्मार्ट फोन वाले जीवों व बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के बीच में भी बंटा हुआ है।
स्मार्ट फोन वाले जीवों के बारे में बात करें तो उनका संसार स्मार्ट फोन से आरंभ होकर अंततः उसी में समाप्त हो जाता है। आधुनिक समय में स्मार्ट फोन में डाऊनलोड किए गए एप्प्स ने ऐसे चक्रव्यूह का निर्माण किया है, कि उसमें घुसने के बाद फँसकर जाने कितने अभिमन्यु बेमौत दम तोड़ देते हैं। स्मार्ट फोन वाले जीवों का संसार ऐसा है, कि वहाँ हर काम स्मार्ट फोन द्वारा ही सम्पन्न होता है। किसी पर कोई मुसीबत आ जाए, किसी का एक्सीडेंट हो जाए या फिर किसी के साथ कोई और अनहोनी घट जाए, तो सबसे पहले उस स्थान पर स्मार्ट फोन धारी जीव प्रकट होता है और अपने स्मार्ट फोन से उस घटना-दुर्घटना को बड़े ही स्मार्ट तरीके से फिल्मा कर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर वायरल कर देता है तथा पीड़ित व्यक्ति को बिना स्मार्ट फोन वालों के हवाले कर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाता है। स्मार्ट फोन वाले जीवों की स्मार्ट फोन में दिन-रात डूबी हुईं आँखें, उनमें हमेशा खोया रहने वाला मन-मस्तिष्क व उसमें सदैव झुकी रहने वाली गर्दनें भविष्य में कमजोर आँखों की समस्या, मानसिक विक्षिप्तता व स्पॉन्डिलाइटिस इत्यादि रोगों को लघु उद्योग से बड़ी छलाँग मारकर बृहत उद्योग की श्रेणी की सूची में सम्मिलित होने को संघर्षरत हैं।
स्मार्ट फोन वाले जीवों से इतर बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों की बात करें तो कितने सौभाग्यशाली हैं वे जीव जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है। बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों की श्रेणी में अप्रत्यक्ष रूप से वे जीव भी आ जाते हैं, जो स्मार्ट फोन तो रखते हैं लेकिन उसका प्रयोग संयमित रूप से ही करते हैं। ऐसे जीव ही इस संसार में रहकर इसका समुचित रूप से आनंद ले पाते हैं। उनका जीवन वास्तविकता की पटरी पर दौड़ लगाते हुए बीतता है। एक-दूसरे के सुख-दुःख को जानना, समझना व समय आने पर एक-दूसरे के काम आना अब इस जग में बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के जिम्मे ही है।
अब गोरी भी बिना स्मार्ट फोन वाले जीव को देखकर लजाती, इठलाती व मुस्कुराती है और स्मार्ट फोन में व्यस्त जीव को देखकर सिर पर अपने कोमल पाँव रखकर भाग जाती है। प्रकृति के रंग, मौसम की उमंग, जीवन की तरंग अब बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के सहारे ही टिकी है, वरना स्मार्ट फोन वाले जीवों के मस्तिष्क में तो डेटा खपत होने की चिंता ही बाकी बची है। स्मार्ट फोन वाले जीवों और बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों में एक अंतिम फर्क है ये है, कि बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों का सारा जीवन चैन से कट जाता है और स्मार्ट फोन वाले जीवों के बगल में चार्ज हो रहा उनका स्मार्ट फोन एक दिन चार्ज होते समय ही भारी विस्फोट के साथ फट जाता है।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छा लेख सुमीत जी। आपने मेट्रो के सफ़र का वास्तविक चित्रण किया है। अक्सर सभी यात्री अपने स्मार्ट फोन में खोये नज़र आते हैं। उन्हें आस पास के परिवेश/परिस्थियों से कोई वास्ता नहीं होता या शायद रखना ही नहीं चाहते हैं। जाने वो स्मार्ट फोन से क्या और कितना सीखते हैं और अगर कोई अच्छी बात सीख भी जायें तो जीवन में अमल करने का कितना साहस करते हैं। अच्छी बात से मेरा तात्पर्य मानवीय संवेदना से है जो मानव को जीवन में परिवार/समाज से जोड़े रखने के लिये प्रेरित करता है अन्यथा हम भी एक मशीन की तरह संवेदना विहीन /निर्जीव ही हैं । जो भी हो आपका लेख इस बात की ओर अवश्य इशारा करता है कि आज के मशीनी युग में भी हमें अपने अंदर मानवता के सहज भाव को जीवित रखने का सतत प्रयास करना होगा । धन्यवाद व नमस्कार ।
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