क्षीर सागर में ध्यानमग्न विष्णु जी ने नारद मुनि के 'नारायण-नारायण' जाप को सुनकर अपनी आँखें खोलीं।
- नारद, कहो कैसे पधारे?
- प्रभु, बस आपके दर्शन की इच्छा हुई तो आ गया।
- इस इच्छा के साथ कुछ न कुछ तो और भी बात है।
- प्रभु, आप तो अंतर्यामी हैं। मेरे बिना कुछ कहे ही सब जान गए होंगे।
- पर तुम अपने श्रीमुख से बताओगे तो पाठकों का भी कुछ ज्ञानवर्धन होगा।
- प्रभु, पृथ्वी पर मायानगरी में एक नए दानव ने उत्पात मचा रखा है।
- कौन है वह दानव?
- उसका नाम नेपोटिज्म है।
- नेपोटिज्म?
- हाँ प्रभु, नेपोटिज्म दानव बहुत शक्तिशाली और बड़ा ही निर्दयी है। नई-नई प्रतिभाओं को हजम करके डकार भी नहीं लेता है।
- नेपोटिज्म दानव को इतना शक्तिशाली होने का वरदान ब्रम्हा जी से प्राप्त हुआ है अथवा महादेव से।
- प्रभु, दोनों में से किसी ने उसे कोई भी वरदान नहीं दिया है।
- फिर उस पर किसकी कृपा है?
- उस पर माफिया नामक महादानव की कृपादृष्टि है।
- अच्छा, नेपोटिज्म की सेना भी है अथवा नहीं?
- मायानगरी में वास करने वाले महादानव माफिया के भक्त नेपोटिज्म की सेना के अभिन्न अंग हैं।
- तो फिर नेपोटिज्म अपनी सेना का तो ध्यान रखता होगा।
- हाँ प्रभु, नेपोटिज्म की कृपा से ही उसके सैनिक और उनके परिवार मायानगरी पर कब्जा जमाए हुए हैं। ये सब मिलकर नेपोटिज्म की थाली में नई-नई प्रतिभाओं को नियमित रूप से परोसकर उनका सफाया करने के अभियान में सक्रिय हैं।
- इसका अर्थ है कि मायानगरी विकट समस्या से जूझ रही है।
- हाँ प्रभु, अब आप ही इस संकट से मुक्ति दिला सकते हैं।
- इस संकट से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मानवों को स्वयं प्रयास करना पड़ेगा।
- प्रभु, वैसे इस संकट से मुक्ति का उपाय क्या है?
- डिसलाइक नामक दिव्यास्त्र!
- डिसलाइक दिव्यास्त्र?
- हाँ नारद, ये ऐसा अचूक दिव्यास्त्र है जो नेपोटिज्म दानव और उसकी सेना का पूर्ण रूप से नाश कर देगा।
- प्रभु, इस दिव्यास्त्र को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
- स्मार्ट फोन पर सोशल मीडिया यज्ञ करके डेटा की आहुति देने के उपरांत इस दिव्यास्त्र की प्राप्ति होगी। सजग रहते हुए जब भी मानवों को इस बात का भान हो कि नेपोटिज्म और उसकी सेना मोह का कोई नया जाल फैंकने वाली है उसी समय उन पर डिसलाइक दिव्यास्त्र चला दिया जाए। फिर देखो नेपोटिज्म अपनी सेना के साथ समाप्त होता है कि नहीं।
- नारायण-नारायण, प्रभु मैं अभी पृथ्वी पर जाकर नेपोटिज्म से भयभीत मानवों को ये उपाय बताता हूँ।
इतना कहकर नारद मुनि पृथ्वी की ओर दौड़ लिए और विष्णु जी फिर से ध्यानमग्न हो गए।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह
चित्र गूगल से साभार