“अंकित यहाँ कैसे उदास बैठे हो? आज स्कूल क्यों नहीं गए?”
“चाचू मेरा स्कूल जाने का मन नहीं करता.” .
“ऐसा क्यों?”
“वहाँ सब मुझे ठाकुर-ठाकुर कहके चिढ़ाते हैं.”
“तो तुम ठाकुर कहे जाने पर चिढ़ते क्यों हो? यह तो गर्व की बात है कि तुम ठाकुर अर्थात क्षत्रिय जाति में पैदा हुए. इसमें तो जन्म लेने को लोग तरसते हैं.”
“गर्व नहीं मुझे तो शर्म आती है कि मैं ठाकुर जाति में पैदा क्यों हुआ?”
“कैसी मूर्खतापूर्ण बातें कर रहे हो? ऐसा कहके तुम अपने वीर पूर्वजों का अपमान कर रहे हो.”
“इसमें मैंने गलत क्या कहा? ठाकुर जैसी अत्याचारी जाति में पैदा होना शर्म की बात नही है तो क्या गौरव की बात है?”
“तुमसे किसने कह दिया कि ठाकुर जाति अत्याचारी है?”
“किसी भी चैनल को खोलकर देख लें. उसमें आने वाले सीरियल और फिल्मों में ठाकुरों को बलात्कारी, अत्याचारी और कुकर्मी के रूप में ही दिखाया जाता है. कहते हैं सिनेमा तो समाज का आइना होता है उसमें वही दर्शाया जाता है जो समाज में घटित हो रहा होता है.”
“बेटा अंकित जैसे हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती वैसे ही सीरियल और फिल्मों में दिखलाई जाने वाली हर बात सत्य नहीं होती.”
“ये आप कैसे कह सकते हैं?”
“ठाकुर वह जाति है जिसने समाज की रक्षा के लिए समय-समय अपने प्राणों की आहुति दी है? कई बार तो पूरा का पूरा कुल ही समाज और अपनी माटी की रक्षा करते हुए खत्म हो गया. जो समाज और धरती के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दे वह जाति भला अत्याचारी अथवा कुकर्मी कैसे हो सकती है?”
“तो चाचू हम लोगों को सिनेमा में ऐसा क्यों दिखाया जाता है?”
“हमें ऐसा दिखाने वाले सड़ी मानसिकता के वो लोग हैं जिन्होनें मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों के तलवे चाटे और अपना स्वार्थ सिद्ध किया. चूँकि हमारी जाति विदेशियों को मिटाने की भावना से निरंतर प्रयास करती रही इसलिए हमारे साथ बैर भावना से कार्य किया गया. आजादी के बाद हमारी जमीनें हड़प ली गईं अथवा किसी न किसी बहाने से हमारी आर्थिक रूप से कमर तोड़ दी गई. कारण था कि कहीं हम एकजुट होकर देश को एक सुदृण शासन न दे दें. इसी साजिश के तहत हमारी नकारात्मक भूमिकाओं को फिल्मों व धारावाहिकों से वृहत रूप देकर हमें निरंतर लज्जित किया जाता है. ताकि हम गौरवहीन व तेजहीन होकर इतिहास के पन्नों में खोकर रह जाएँ.”
“चाचू यानि कि जो कुछ हमारे बारे में दिखाया जाता है वह सब झूठ है.”
“हाँ बिल्कुल सफेद झूठ है. ठाकुर कभी भी जातिवादी या अत्याचारी नहीं रहा है. इतिहास गवाह है. रघुकुल के श्री राम का दलित महिला शबरी के झूठे बेर खाने का उदाहरण ले लो या फिर महाराणा प्रताप का भीलों के साथ मिलकर मुगलों से मोर्चा लेने का उदाहरण. ऐसे न जाने कितने उदाहरण यही दर्शाते हैं कि ठाकुर लोग सभी जातियों से बंधुत्व भाव रखते थे. एक बात और समय-समय पर इस धरा से पापियों और उनके अत्याचारों अथवा समाज से बुराइयों को समाप्त करने के लिए ईश्वर ने क्षत्रिय कुल में राम, कृष्ण, महावीर व बुद्ध जैसे देव पुरुषों के रूप में अवतार लिए. इसलिए याद रखना कि हम ठाकुर प्रत्येक जाति व संप्रदाय के साथ सदैव मिलजुल कर रहे हैं तथा हमारे मन में किसी जाति के प्रति भेदभाव नहीं रहा है. यदि ठाकुर जाति अत्याचारी होती तो भारत में ठाकुर के अलावा किसी और जाति का अवशेष बाकी न बचता. यदि ठाकुरों में जाति की भावना इतनी प्रबल होती तो मृगनयनी का मान सिंह तोमर से मिलन न होता और न ही गुर्जरी महल के रूप में उन दोनों का प्रेम स्मारक अस्तित्व में आता. हमें तो ईश्वर ने देश और समाज की रक्षा करते हुये प्राण न्यौछावर करने के लिए उत्पन्न किया है न कि दूसरों पर अत्याचार करने के लिए. समझे भतीजे.
“हाँ चाचू समझ गया.”
“एक बात और याद रखना कि हमारी शिराओं में उन पूर्वजों का रक्त बह रहा है जिन्होंने अपना सिर झुकाने की बजाय कटाना स्वीकार किया. इसलिए जब कोई तुम्हें ठाकुर होने पर अपमानित करने का प्रयास करे तो उससे अपना मस्तक ऊँचा करके कहना कि तुम्हें गर्व है कि तुम उस वीर जाति में पैदा हुए जिसमें जन्म लेने के लिए मनुष्य ईश्वर से सदैव कामना करता है.”
“जी अवश्य चाचू! अब यह सिर किसी के आगे झुककर अपने वीर पूर्वजों को अपमानित नहीं होने देगा.”
“जीते रहो!”
सुमित प्रताप सिंह