बुधवार, 11 जनवरी 2012

ब्लॉग शास्त्र पढ़ते संतोष त्रिवेदी




प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

           प यह भली-भाँति जानते होंगे कि हिन्दू धर्म में कितने वेद हैं. क्या नहीं जानते? चलिए हम बता देते हैं. वेदों की संख्या कुल चार है. ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद. ऋगवेद, यजुर्वेद व सामवेद को वेदत्रयी के नाम से संबोधित किया जाता था. इतिहास को हिन्दू धर्म में पंचम वेद की संज्ञा दी गई है. प्राचीन काल में जो ब्राम्हण जितने वेदों का ज्ञान प्राप्त करता था उसके नाम के पीछे उसी आधार पर चतुर्वेदी, त्रिवेदी व द्विवेदी आदि उपनाम लगाए जाते थे. आज हम जिन ब्लॉगर महोदय से मुलाक़ात करने जा रहे हैं वह भी त्रिवेदी उपनाम को धारण किये हुए हैं. अब यह तो ज्ञात नहीं कि उन्हें तीन वेदों का ज्ञान है अथवा नहीं, किन्तु ब्लॉग शास्त्र को वह भली-भाँति पढ़ रहे हैं. पहली बार इस तरह औपचारिक रूप से इनका साक्षात्कार हो रहा है, इसकी वज़ह सिर्फ और सिर्फ ब्लॉगिंग है.

           संतोष त्रिवेदी जी मूलतः रायबरेली (उत्तर प्रदेश) से हैं. इनकी पढ़ाई-लिखाई वहीँ के ग्रामीण परिवेश में हुई है. इनका क्षेत्र बैसवारा के अंतर्गत आता है, जिस धरती पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, निराला, डॉ. राम बिलास शर्माजी ,चन्द्र शेखर आजाद,राणा बेनी माधव,राव राम बक्स सिंह,हसरत मोहानी, शिव मंगल सिंह 'सुमन' और मुनव्वर राणा ने जन्म लिया ! पवित्र गंगा नदी का भी सानिद्ध्य इन्हें प्राप्त है. अब करीब अठारह सालों से दिल्ली में हैं और यहीं पर अध्यापन कार्य कर रहे हैं.

सुमित प्रताप सिंह- संतोष त्रिवेदी जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

संतोष त्रिवेदी- जी नमस्कार सुमित प्रताप सिंह जी! मैं बिलकुल ठीक हूँ बस ब्लॉग शास्त्र के अध्ययन में मस्त था.

सुमित प्रताप सिंह- संतोष जी आपके ब्लॉग शास्त्र अध्ययन में बाधा पहुँचाने के क्षमा कीजियेगा. आपके लिए कुछ प्रश्न लाया हूँ.

संतोष त्रिवेदी- अपने प्रश्नरुपी बाण तरकश से निकाल लीजिये. हम झेलने को तैयार बैठे हैं.

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा. संतोष जी ब्लॉग लेखन का भूत आप पर कब और कैसे सवार हुआ?

संतोष त्रिवेदी- लिखने के बारे में पहले से ही मुझे शौक़ था.शेर-ओ-शायरी और राजनैतिक टिका-टिप्पणी करता रहता था.शुरू में 'जनसत्ता' में बहुत अधिक पत्र लिखे और वे प्रमुखता से छपे भी.बाद में सन २००७ से ब्लॉगर पर हूँ.पर कुछ सक्रिय हुआ २००९ से जो २०११ में जाकर चरम पर पहुँच गया.पहले राजनैतिक व शैक्षिक लेख लिखता रहा,बाद में साहित्यिक और व्यंग्यात्मक रुझान भी काफ़ी हो गया !

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई? 


संतोष त्रिवेदी- पहली रचना तो शायद एक शेर के रूप में थी.बचपन में एक सांवली लड़की को याद करके लिखा था,आप भी देख लें;"जब भी देखता हूँ कोई सांवली-सी सूरत,तुम्हारा ही अक्स  उसमें नज़र आता है."

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

संतोष त्रिवेदी- मैं पहले केवल शौकिया लिखता था पर अब शौक और संवाद (जो ब्लॉगिंग की ख़ास पहचान है)  के लिए लिखता हूँ.

सुमित प्रताप सिंह-  लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है? 

संतोष त्रिवेदी- लिखने में मेरी प्रिय विधा ग़ज़ल या व्यंग्य है !

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

संतोष त्रिवेदी- मैं अपने लिखने से समाज को सन्देश देने की बात नहीं समझता हूँ,हाँ ज़रूर अपने विचार इस समाज कें रखना चाहता हूँ,भले ही वह सबको सन्देश देते हों या नहीं.जो मुझे ठीक लगता है,बस लिख मारता हूँ,खरी-खरी !

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी साहित्य"  इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

संतोष त्रिवेदी- मूलतः ब्लॉगिंग पूर्णकालिक लेखन (प्रिंट) या साहित्य से अलग विधा है.लोग निरा साहित्य पढ़ने के लिए यहाँ नहीं आते. हल्का-फुल्का लेखन व आपसी विमर्श मुख्य यू एस पी हैं ब्लॉगिंग की. अगर आप अच्छा लिखते हैं,कहीं पढ़ते नहीं, टीपते नहीं तो यह दुनिया आपके लिए नहीं है. यह बात और है कि अब यहाँ पर भी अच्छे दर्जे का साहित्य लिखा जा रहा है ! इसलिए आने वाले दिनों में इसका भविष्य उज्जवल है.

(मुझे लगा कि मैंने उन पर बहुत अधिक प्रश्न बाण चला लिए थे अब उन्हें ब्लॉग शास्त्र के अध्ययन हेतु अकेला छोड़ ही दिया जाए)

संतोष त्रिवेदी जी के साथ ब्लॉग शास्त्र का अध्ययन करना हो तो पधारें www.santoshtrivedi.com पर... 


27 टिप्‍पणियां:

MOHAN KUMAR ने कहा…

glad to know about santosh trivedi.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

संतोष जी की खरी खरी बातें अच्छी लगीं ...

JOURNALIST SUNIL ने कहा…

ब्लॉग शास्त्र का अध्ययन संतोष त्रिवेदी जी ऐसे ही करते रहें. हम भी आते हैं कभी समय निकालकर.

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया |

Kailash Sharma ने कहा…

संतोष जी का परिचय जानकर बहुत अच्छा लगा..

Bibhesh Trivedi ने कहा…

Es T shirt me to jawani lot aayi hai !!

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

सुमित जी ,
आपका बहुत आभार. इस पोस्ट के माध्यम से आपने कुछ नए लोगों को मुझसे परिचित कराया !
कोशिश करूँगा कि सार्थक लिखता रहूँ !

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कैसे व्‍यंग्‍यकार हैं संतोष जी
एक भी व्‍यंग्‍यबाण नहीं चलाया
पूरा मौका व्‍यर्थ गंवाया
त्रिवेदी हैं, तीन बाण तो बनते हैं
पर शायद वे उनके विद्यालय में
छात्रों पर चलते हैं।

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

सतोष जी का आमना सामना कब शुरू हुआ ...और कब खत्म हुआ समझ ही ना आया .....शायद थोडा ज्यादा जानता हूँ इन त्रिवेदी जी को .....?

हालाँकि जीवन के कुछ और पहलू भी साझा किया जाना चाहिए था !

जय जय !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

संतोष जी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा.

संध्या शर्मा ने कहा…

संतोष जी का परिचय जानकर बहुत अच्छा लगा...

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

संतोष नाम में सदा रहता है भ्रम
हम समझ रहे हैं गलत या है भ्रम
पता नहीं चलता है कि नर हैं या नारी
संतोष कर लेते हैं चित्र सामने आने तक

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

@ अविनाश जी
जय हो अन्ना स्वामी की !

आजकल आपकी आत्मा में कोई बाबा घुस गया है !

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

संतोष जी की बातें अच्छी लगीं ..बहुत बढ़िया |

Dharmendra Kumar ने कहा…

Sir,very nice.

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

देवांशु निगम ने कहा…

संतोष जी को पढ़ते रहते हैं , उनके बारे में जानना दोनों बढ़िया लगा, शुक्रिया!!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी नज़र से संतोष जी को जाना अच्छा लगा ...

Abdheshkumarlaldas Kumar ने कहा…

RIGHT .

Vijay Naik ने कहा…

ok

पद्म सिंह ने कहा…

संतोष जी की जितनी गहराई है तीर उतने ही कम दागे गए हैं... कुछ ज़्यादा की उम्मीद करते हैं हम

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

संतोष अंकल युहीं ही संतोषी बन कर कलम घिसते रहें.

सुंदर साक्षात्कार.

आपकी कलम घिस्सी.

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

सभी का आभार स्नेह के लिए !

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रहा यह भी - संतोष भाई से बातचीत!

इन्दु पुरी ने कहा…

बहुत समय नही हुआ संतोष जी से मिले. मेरी छोटी सी दुनिया मे जिन्होंने घुसपैठ की है उनमे आप साहब का नाम भी आता है. स्पीड से बोलने वाले संतोष जी मेरे 'सन्तु दा' बन गये. हा हा हा कांच की तरह पारदर्शी यह बन्दा,कोई भी भीतर तक झाँक ले.दोरूप नही इनके.जो है जैसा है. प्यार, ईमानदारी(दोस्ती रिश्तों को निभाने के मामले मे) ,चरित्र,निर्मल मन जैसे वेदों को लोग भूल गये. इनके साथ सन्तु डा को अलग ना करो तो.....वो सप्तवेदी हैं. सन्तु दा! अगले जन्म मे जब हमारी नई दुनिया होगी तब............ मुझे भी अपने महफूज़ के आस पास एक छोटा सा टुकड़ा जमीन का और मुट्ठी पर आसमान दे देना.अब.....उसी दुनिया मे जीना चाहती हूँ जहां तुझ जैसे लोग बसते हो. जी ..और यूँ ही मुस्कराता रह.बस बात धीमे स्पीड मे किया कर.आधे शब्द तो खा जाता है (देख तू तदाक करने के लिए माफ कर दे.अब कोई अपने बच्चे,दोस्त,हमउम्र भाई को 'आप' बोलता हैं?? नही ना. हा हा हा जी

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

@इंदु जी
क्या कहूँ? इंदु माँ ,इंदु बहन,इंदू या इससे भी बढ़कर कुछ...! आप हमारी अभिभावक भी हैं,साथी भी हैं और प्रेरणास्रोत भी !
.....कभी लगता है ,आप जैसे लोग इसी दुनिया से हैं क्या ?

सादर,आपका वही शरारती...!

Sumit Pratap Singh ने कहा…

आभार संतोष त्रिवेदी जी का जिन्होंने दिया साक्षात्कार और आभार आप सभी का जिन्होंने दिया उन्हें इतना प्यार

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