मध्यप्रदेश के भोपाल के हर्षवर्धन नगर क्षेत्र की रुपाली सक्सेना की हिंदी साहित्य से भेंट एक पाठक के रूप में हुई थी। पेशे से वस्त्र सज्जाकार रूपाली सक्सेना का साहित्य से इतना लगाव हो गया, कि एक दिन इन्होंने लिखना भी आरंभ कर दिया। इनकी लेखन यात्रा का शुभारंभ इतना धुंआधार हुआ, कि इनकी रचनाएं देश भर के समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं की शोभा बढ़ाने लगीं। इनके द्वारा किए गए साहित्यिक परिश्रम के फलस्वरूप इनकी पहली पुस्तक 'स्नेह की संदूकची' प्रकाशित हुई व कुछ साझा संकलनों में भी इनकी रचनाओं ने अपनी दमदार भागीदारी सुनिश्चित की। अब तक रुपाली सक्सेना अपने लेखन के लिए कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुकीं हैं तथा अपनी साहित्य की संदूकची में नित प्रतिदिन नई-नई रचनाओं एवं सम्मान व पुरस्कारों को भरने में रत हैं। हमने इनसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
रुपाली सक्सेना - मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक है अतः साहित्य से मेरा जुड़ाव बचपन से ही था। स्कूल-कॉलेज के दिनों में भी मैं साहित्यिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया करती थी। मैं लिखती तो थी, लेकिन अपने मन के उद्गारों को लिखकर मैं अपनी डायरी में छिपा दिया करती थी। विवाह होने के कई वर्षों के बाद अपनी बड़ी बहनों के प्रोत्साहन के बाद मैंने फिर से लिखना आरंभ कर दिया।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
रुपाली सक्सेना - लेखन से मुझ पर बुरा नहीं बल्कि हमेशा की तरह सकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है। जिंदगी जीने का और उसे समझने का एक नया दृष्टिकोण मुझे लेखन से ही मिलता है।
क्या आपको लगता है कि लेखन से समाज में कुछ बदलाव लाया जा सकता है?
रुपाली सक्सेना - जी बिल्कुल, मेरा विश्वास है कि लेखनी में जो शक्ति होती है वो किसी और में नहीं होती है।
आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?
रुपाली सक्सेना - 'आसान नहीं है औरतों के लिए कविता ग़ज़ल या गीत लिखना' मेरी सबसे प्रिय रचना है। मेरी यह रचना उन सभी गृहणियों को समर्पित है, जो अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर सृजन कार्य कर रहीं हैं।
आप अपने लेखन से पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगीं?
रुपाली सक्सेना - मेरी कोशिश रहती है कि मैं अपने लेखन से समाज में व्याप्त कुरीतियों और नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मकता का संचार करूँ।