सूबे को फफककर रोते हुए देखकर जिले ने नफे से पूछा।
जिले : भाई नफे, अपने सूबे को कौन सा दुःख है जो इतना रो रहा है।
नफे : उसका दुःख उसके लिए बहुत दुखदायी है इसलिए उसे रोना पड़ रहा है।
जिले : उस दुखदायी दुःख से हमारा भी परिचय करवा।
नफे : सूबे उस घड़ी को कोसते हुए रो रहा है, जब उसने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के विषय में सोचा।
जिले : अरे, सूबे के पिता की मौत कब हो गयी?
नफे : दो दिन पहले ही उनकी मृत्यु हुई थी।
जिले : वो तो भले चंगे थे, फिर भला ऐसा क्या हुआ जो वो अचानक मर गए।
नफे : सूबे के पिता प्राण चंद मंच के अति सक्रिय कवि रहे हैं। अपने माँ-बाप को दर-दर भटकने पर विवश करने वाले प्राण चंद जब मंच पर खड़े हो माता-पिता पर केंद्रित भावुक तुकबंदियों को कविता के वेश में काव्यप्रेमी श्रोताओं के सम्मुख बड़ी चतुराई से परोसते थे, तो श्रोतागण भावुक हो उन्हें प्राण, ऊर्जा, शक्ति और जाने क्या-क्या प्रदान कर देते थे।
जिले : अच्छा तो उनकी चुस्ती-फुर्ती का ये राज था।
नफे : हाँ, उनकी इसी अदा पर मंच की कई कवयित्रियाँ भी उनकी प्राण प्यारी बन गयी थीं।
जिले : भाई, प्राण के साथ-साथ धन प्यारी भी बोल।
नफे : बिलकुल सही समझा। सब ठीक चल रहा था कि अचानक कोरोना महामारी का आगमन हुआ और कवि सम्मेलनों पर विराम लग गया।
जिले : फिर आगे क्या हुआ?
नफे : कवि सम्मेलनों में श्रोताओं द्वारा मिलने वाले प्राण, ऊर्जा और शक्ति इत्यादि का स्टॉक कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन ने बिलकुल समाप्त कर दिया।
जिले : ओह, ये तो कवि प्राण चंद के लिए प्राण हरने वाली बात हो गयी।
नफे : हाँ भाई, जैसे ही कवि प्राण चंद के पास प्राण, ऊर्जा और शक्ति इत्यादि का स्टॉक समाप्त हुआ यमदूत उनके निकट आए और उनके शरीर से प्राण खींचकर यमलोक की ओर निकल लिए।
जिले : अपने पिता की अकाल मौत होने पर सूबे तो बहुत उदास हुआ होगा।
नफे : उदास ही नहीं हुआ बल्कि फूट-फूट कर रोया पर सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए।
जिले : लोगों को दिखाने के लिए? तो क्या उसे अपने बाप की मौत का दुःख नहीं हुआ?
नफे : दुःख होता तो चुपचाप 101 रुपए का हनुमानजी का प्रसाद न बाँटता। अपने पिता के मरने पर उसके मन में तो मोतीचूर के लड्डू फूट रहे थे।
जिले : लड्डू तो फूटने ही थे। आखिर बाप की मौत के बाद उनकी ढेर सारी जायदाद जो उसे मिलने वाली थी।
नफे : हाँ, पर सूबे की किस्मत इतनी अच्छी नहीं है।
जिले : वो कैसे?
नफे : सूबे ने पितृ भक्ति का ड्रामा करते हुए अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरी करने की तैयारी की।
जिले : कौन सी अंतिम इच्छा?
नफे : सूबे के पिता कवि प्राण चंद की अंतिम इच्छा थी, कि उनकी चिता को जलाने से पहले उनकी चिता के बगल में एक भव्य मंच स्थापित कर उस पर एक भव्य कवि सम्मेलन आयोजित करवाया जाए।
जिले : तो क्या फिर सूबे ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी की?
नफे : हाँ की और अब उसी अंतिम इच्छा के बाद हुए दुष्प्रभाव के लिए पछता रहा है।
जिले : कैसा दुष्प्रभाव?
नफे : सूबे ने अपने पिता की चिता के बगल में एक भव्य मंच को स्थापित कर एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया। उस कवि सम्मेलन में देश के जाने-माने कवियों एवं कवयित्रियों को बुलाया गया। ज्यों ही कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ कवि प्राण चंद के हाथ-पैर हिलने-डुलने लगे और कवि सम्मेलन ज्यों ही उफान पर पहुँचा वो माँ शारदे को नमन करते हुए उठ खड़े हुए।
जिले : अरे, ये तो बहुत बढ़िया हुआ। सूबे के प्रयास से उसके पिता को एक नया जीवन मिल गया।
नफे : हाँ, पर सूबे का जीवन बर्बाद हो गया।
जिले : वो कैसे?
नफे : सूबे के पिता ने अपनी जायजाद को उनकी चिता के पास कवि सम्मेलन में कविता पाठ करने वाली अपनी प्राण प्यारी कवयित्रियों के नाम करने की घोषणा कर डाली और सूबे के हिस्से में सिर्फ रहने के लिए पुराना घर बाकी बचाया।
जिले : ओहो, ये तो अंतिम इच्छा पूरी करने का वाकई में तगड़ा दुष्प्रभाव हो गया। भाई, एक बात तो बता।
नफे : पूछ!
जिले : ये सूबे रोते-रोते अचानक मुस्कुराने क्यों लगता है? कहीं वसीयत की घोषणा का दुष्प्रभाव इसके दिमाग पर तो नहीं पड़ गया है?
नफे : सूबे का रोते-रोते अचानक मुस्कुराने का कारण है कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट का आगमन।
जिले : तो उसके आने से सूबे को क्या फायदा होगा?
नफे : डेल्टा प्लस वैरिएंट से लोगों को बचाने के लिए सरकार द्वारा फिर से लॉकडाउन लगाया जाएगा और प्राण चंद के पास जमा प्राण, ऊर्जा और शक्ति इत्यादि के स्टॉक की फिर से समाप्ति होगी।
जिले : और फिर सूबे को अपने बाप की अंतिम इच्छा को पूरा करने के बाद उसके जीवन पर पड़े दुष्प्रभाव को ठीक करने का एक शानदार मौका मिल जाएगा। धन्य हैं प्राण चंद जो उन्हें ऐसा पूत मिला।
नफे : यथा पिता तथा पुत्र।
जिले : बिलकुल सही कहा भाई।
कार्टून गूगल से साभार