प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
पुराना साल रोते-हँसते, खोते-पाते बीतने वाला है और नया साल मुस्कुराते हुए आने वाला है। जहाँ पूरा जग नए साल के स्वागत में अपनी पलकें बिछा रहा है वहीं रवीन्द्र प्रभात जी हिंदी ब्लॉगरों को अगले साल होनेवाले
ब्लॉगोत्सव में खिलाने के लिए प्रेम का भात पका रहे हैं। भात पकाने के लिए चावल की बोरी अविनाश वाचस्पति जी ने नुक्कड़ नामक सुपर फास्ट ट्रेन से भेजी है। इस साल 51 लोगों को भात खिलाया गया था अबकी बार देखते हैं कि कितने लोग इस प्रेम भात को खाने का सौभाग्य पाते हैं। हालांकि रवीन्द्र प्रभात जी अभी हाल ही में थाईलैंड से थके-मांदे लौटे हैं और वहां चलते-फिरते उनकी थाई भी थक गयी हैं फिर भी उन्हें प्रेम भात पकाने का इतना चाव है कि आते ही लग गए अपने काम-काज में। तो मित्रो आप सब समझ ही गए होंगे कि आज मैं आपकी मुलाक़ात करवाने जा रहा हूँ परिकल्पना पर हम सबकी राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रगति
की कल्पना को साकार रूप देने में लगे हुए श्री रवीन्द्र प्रभात जी से.
आज से साढे चार दशक पूर्व इनका जन्म महींदवारा गाँव, सीतामढ़ी जनपद बिहार के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनका मूल नाम रवीन्द्र कुमार चौबे है । इनकी आरंभिक शिक्षा सीतामढ़ी में हुई। बाद में इन्होने बिहार विश्वविद्यालय से भूगोल विषय के साथ विश्वविद्यालयी शिक्षा ग्रहण की। जीविका और जीवन के साथ तारतम्य बिठाते हुए इन्होने अध्यापन का कार्य भी किया, स्वतंत्र लेखन भी और हिंदी पत्रकारिता के रास्ते विश्व के एक बड़े व्यावसायिक समूह में प्रशासनिक पद पर आ पहुंचे। पिछले एक दशक से लखनऊ में कार्यरत हैं। लखनऊ में ही इनका स्थायी निवास भी है। लखनऊ जो कि नज़ाकत, नफ़ासत, तहज़ीबी और तमद्दून का जीवंत शहर है, अच्छा लगता है इन्हें इस शहर के आगोश में शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहना, कविताएँ लिखना, नज़्म गुनगुनाना या फिर किसी उदास चेहरे को हँसाना।
सुमित प्रताप सिंह- रवीन्द्र प्रभात जी नमस्ते! कैसे हैं आप? थाईलैंड में कदम ताल करते हुए आपकी थाई तो काफी थक गयीं होगी?
रवीन्द्र प्रभात- नमस्ते सुमित प्रताप सिंह जी! मैं बिलकुल मजे में हूँ आप सुनायें। वैसे थाईलैंड में थाई की मसाज के लिए कई मसाज केंद्र खुले हुए हैं इसलिए वहां अपनी थाई में मसाज करवा ली थी सो थाई के थकने का कोई प्रश्न ही नहीं था। कहिये आज कैसे याद किया?
सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बिलकुल ठीक हूँ। बस आपको जानने की इच्छा हुई और उपस्थित हो गया कुछ प्रश्नों के संग।
रवीन्द्र प्रभात- तो बन्धु शीघ्र प्रश्न पूछ डालिए क्योंकि अगले
ब्लॉगोत्सव हेतु भात पका रहा हूँ ज़रा सी भी चूक हुई तो यह जल भी सकता है।
सुमित प्रताप सिंह- आपको ये ब्लॉग लेखन का चस्का कब, कैसे और क्यों लगा?
रवीन्द्र प्रभात- बात 2005 की है, कार्यालय में कार्य करते हुए मुझे जियोसिटीज डोट कॉम के बारे में जानकारी हुई । तब मैं कंप्यूटर और अंतरजाल से ज्यादा घुला-मिला नहीं था । दोस्तों के सहयोग से जियोसिटीज डोट कॉम पर सबसे पहले अपना ब्लॉग बनाया । हिंदी लिखने में मुझे थोड़ी असुविधा होती थी, इसलिए मैंने पीडीएफ फाईल संलग्न कर काम चला लिया करता था । वर्ष-2006 के पूर्वार्द्ध में मुम्बई के मेरे एक मित्र ने मुझे
ब्लॉगस्पाट पर ब्लॉग बनाने और यूनिकोड प्रणाली के बारे में अवगत कराया । ठहाका ब्लॉग वाले बसंत आर्य के सहयोग से मैंने परिकल्पना ब्लॉग की शुरुआत की । साहित्य लेखन हो अथवा ब्लॉग लेखन, हमेशा से मैं नए-नए प्रयोग का पक्षधर रहा हूँ । मुझे ऐसा लगा कि कि चूँकि यह अभिव्यक्ति का एक नया माध्यम है, इसलिए यहाँ कुछ नया करने का मेरा जूनून अवश्य काम आयेगा । यही कारण था कि वर्ष 2007 में मैंने ब्लॉगिंग में एक नया प्रयोग प्रारम्भ किया और ‘ब्लॉग विश्लेषण’ के द्वारा ब्लॉग जगत में बिखरे अनमोल मोतियों से पाठकों को परिचित करने का बीड़ा उठाया। 2007 में पद्यात्मक रूप में प्रारम्भ हुई यह कड़ी 2008 में गद्यात्मक हो चली और 11 खण्डों के रूप में सामने आई। वर्ष 2009 में मैंने इस विश्लेषण को और ज्यादा व्यापक रूप प्रदान किया और विभिन्न प्रकार के वर्गीकरणों के द्वारा 25 खण्डों में एक वर्ष के दौरान लिखे जाने वाले प्रमुख
ब्लॉगों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। इसी प्रकार वर्ष 2010 में भी यह अनुष्ठान मैंने पूरी निष्ठा के साथ सम्पन्न किया और 21 कडियों में ब्लॉग जगत की वार्षिक रिपोर्ट को प्रस्तुत करके एक तरह से ब्लॉग इतिहास लेखन का सूत्रपात किया। ब्लॉग जगत की सकारात्मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के उद्देश्य से अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैं, उनमें ‘ब्लॉगोत्सव’ एक अहम प्रयोग है। अपनी मौलिक सोच के द्वारा मैंने इस आयोजन के माध्यम से पहली बार ब्लॉग जगत के लगभग सभी प्रमुख रचनाकारों को एक मंच पर प्रस्तुत किया और गैर ब्लॉगर रचनाकारों को भी इससे जोड़कर समाज में एक सकारात्मक संदेश का प्रसार किया।
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
रवीन्द्र प्रभात- बचपन में दोस्तों के बीच शेरो-शायरी के साथ-साथ तुकबंदी करने का शौक था । इंटर की परीक्षा के दौरान हिन्दी विषय की पूरी तैयारी नहीं थी, उत्तीर्ण होना अनिवार्य था . इसलिए मरता क्या नहीं करता। सोचा क्यों न अपनी तुकबंदी के हुनर को आजमा लिया जाए । फिर क्या था आँखें बंद कर ईश्वर को याद किया और राष्ट्रकवि दिनकर, पन्त आदि कवियों की याद आधी-अधूरी कविताओं में अपनी
तुकबंदी मिलाते हुए सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए । जब परिणाम आया तो अन्य सारे विषयों से ज्यादा अंक हिन्दी में प्राप्त हुए थे । फिर क्या था, हिन्दी के प्रति अनुराग बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह अनुराग कवि-कर्म में परिवर्तित होता चला गया ....। कविता लेखन विद्यालय के दिनों से करता रहा हूँ, किन्तु मेरी पहली किताब ग़ज़ल संग्रह के रूप में वर्ष १९९१ में प्रकाशित हुई । नाम था "हमसफ़र" ।
उसके बाद वर्ष-1995 में मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह आया । दो-ढाई दशक के साहित्यिक जीवन में अबतक कुलमिलाके मेरी सात किताबें प्रकाशित है, जिसमें दो ग़ज़ल,एक कविता,एक नेपाली साहित्य पर केन्द्रित पुस्तक का संपादन, एक उपन्यास और दो ब्लॉगिंग की पुस्तक ।
सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?
रवीन्द्र प्रभात- शुरू-शुरू में स्वांत: सुखाय के लिए लिखता था, किन्तु धीरे-धीरे मेरा सृजन सामाजिक सरोकार से जुड़ता गया और आज पूरी तरह प्रतिबद्ध हूँ सृजन के माध्यम से एक सुन्दर और खुशहाल सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने की दिशा में ।
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
रवीन्द्र प्रभात- जी मुझे ग़ज़ल और व्यंग्य विधाएं अन्यंत प्रिय हैं।
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?
रवीन्द्र प्रभात- सद्भावना,सद्विचार और सद्चरित्र को बचाए रखने का सन्देश, किन्तु मेरा मानना है कि रचनाये वही सार्थक होती है जो समाज की विसंगतियों पर प्रहार करती है और एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होती है । बस इसी दिशा में मेरे सृजन की प्रतिबद्धता और कटिबद्धता है ।
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा हिंदी भाषा का विकास" इस विषय पर आपके क्या विचार हैं?
रवीन्द्र प्रभात- ब्लॉगिंग की दुनिया समय और दूरी के सामान अत्यंत विस्तृत और व्यापक है, साथ ही पूरी तरह स्वतंत्र,आत्म निर्भर और मनमौजी किस्म की है । यहाँ आप स्वयं लेखक, प्रकाशक और संपादक की भूमिका में होते हैं । यहाँ केवल राजनीतिक टिप्पणियाँ और साहित्यिक रचनाएँ ही प्रस्तुत नहीं की जाती
बल्कि महत्वपूर्ण किताबों का ई प्रकाशन तथा अन्य सामग्रियां भी प्रकाशित की जाती है । हिंदी में आज फोटो ब्लॉग, म्यूजिक ब्लॉग,
पॉडकास्ट, वीडियो ब्लॉग, सामूहिक ब्लॉग, प्रोजेक्ट ब्लॉग, कारपोरेट ब्लॉग आदि का प्रचलन तेजी से बढ़ा है ।
यानि हिंदी ब्लॉगिंग आज
बेहद संवेदनात्मक दौर में है ।
ब्लॉग पर हिंदी में जितना लिखा जाएगा, हिंदी उतनी ही तेज़ी से आयामित होगी। हालाँकि आज हम अन्य भाषाओं की तुलना में काफी पीछे हैं।
अंग्रेजी के ब्लॉग की संख्या से यदि हिंदी की तुलना की जाए तो कई प्रकाश वर्ष का अंतर आपको महसूस होगा। फिर भी देखा जाए तो सामाजिक सरोकार से लेकर तमाम विषयों को व्यक्त करने की दृष्टि से सार्थक ही नहीं सशक्त माध्यम बनती जा रही है यह हिंदी ब्लॉगिंग। आज हिंदी ब्लॉगिंग एक समानांतर मीडिया का रूप ले चुकी है और अपने सामाजिक सरोकार को व्यक्त करने की दिशा में पूरी प्रतिबद्धता और वचनबद्धता के साथ सक्रिय है। आज अपनी अकुंठ संघर्ष चेतना और सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक स रोकार के बल पर हिंदी ब्लॉगिंग महज आठ साल की अल्पायु में ही हनुमान कूद की मानिंद जिन उपलब्धियों को लांघने में सफल हुई है वह कम संतोष की बात नहीं है...मुझे तो लगता है कि आने वाले दिनों में हिंदी भाषा के विकास में अन्य सभी माध्यमों की तुलना में ब्लॉगिंग एक कारगर अस्त्र सिद्ध होगी।
सुमित प्रताप सिंह- रवीन्द्र प्रभात जी मैं भी लेखक हूँ और
"सुमित के तड़के" नाम से हिंदी में ब्लॉग लिखता हूँ । यदि मुझे भी इस बार के
ब्लॉगोत्सव में अपने प्रेम का भात खिला दें तो आपकी मुझ पर बड़ी कृपा होगी ।
रवीन्द्र प्रभात- देखिये सुमित जी यह ठीक है कि आप एक हिंदी लेखक हैं और हिंदी में ब्लॉग लेखन द्वारा हिंदी की सेवा भी कर रहे हैं किन्तु मेरा प्रेम भात खाने के लिए कोई जुगाड़ नहीं चलेगा जो इसके योग्य है उसे ही यह खाने को मिलेगा यदि आपमें योग्यता दिखी तो अवश्य ही आपको इस
ब्लॉगोत्सव में यह प्रेम भात परोसा जाएगा । कृपया मेरी इस बात को अन्यथा न लीजियेगा।
सुमित प्रताप सिंह- बिलकुल अन्यथा नहीं ले रहा रविन्द्र जी बल्कि आपकी इस निष्पक्ष भावना के लिए आपको साधुवाद देता हूँ । चलिए फिर मिलता हूँ आपसे छोटे से ब्रेक के बाद।
रवीन्द्र प्रभात- जी जरूर। (और इतना कहकर
रवीन्द्र प्रभात जी प्रेम का भात पकाने में मस्त हो गए।)
रवीन्द्र प्रभात जी द्वारा निर्मित प्रेम का भात खाने की इच्छा हो तो जाकर आवेदन करें http://www.parikalpnaa.com/ पर...