हाल ही में देश ने मिशन शक्ति के माध्यम से पूरे विश्व में तहलका मचा दिया। अपने भले पड़ोसी देश के वजीर ए आज़म इमरान चाचा तो मिशन शक्ति की सफलता की खुशी से इतने खुश हुए कि खुशी के मारे उनकी पतलून ही ढीली हो गई। इमरान चाचा के संग-संग उनके हिंदुस्तानी भतीजों, ससुर-सालों और नातेदारों की पतलूनों ने भी ढीली होने का बखूबी फ़र्ज़ निभाया। पर खुद को हिंदुस्तान का चौकीदार कहनेवाले मुएँ ने मिशन शक्ति पर अपना एक लंबा सा भाषण देकर उन सबका खून इस कदर खौलाया कि उनकी पतलूनों के टाइट होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। वे बेचारे तो पहले से ही देश की चौकीदारी से परेशान थे और अब अंतरिक्ष में भी चौकीदारी शुरू हो गयी। कम से कम इस मुएँ चौकीदार को इतना तो समझना चाहिए कि ये दौर मिशन शक्ति का नहीं, बल्कि मिशन भक्ति का है। अगर देश में चारों ओर नज़र दौड़ाकर देखा जाए, तो भक्ति ही भक्ति का नज़ारा देखने को मिल जाएगा। कोई अपने धर्म की भक्ति में व्यस्त है, तो कोई अपनी जाति की भक्ति में मस्त है। सब अपने-अपने धर्म और अपनी-अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के मिशन में जुटे हुए हैं। इसके लिए बाकायदा दूसरे समुदाय और जातियों के महापुरुषों और प्रसिद्ध योद्धाओं को पूरी बेशर्मी के साथ अपहृत करके उन्हें अपने समुदाय या अपनी जाति का घोषित कर सोशल मीडिया पर प्राउड टु बी फलाना समुदाय अथवा प्राउड टु बी फलानी जाति का हैशटैग चलाकर सामुदायिक और जातीय भक्ति को फलीभूत किया जा रहा है। सिर्फ सामुदायिक और जातीय भक्ति ही नहीं फल-फूल रही है, बल्कि राजनीतिक भक्ति इनसे कई कोस आगे है। राजनीतिक दल तो कई दशकों से भक्ति के सागर में डूबे हुए हैं। अब तो वे भक्ति में इतना अधिक डूब चुके हैं कि वो भक्ति, चमचई का रूप धारण कर चुकी है और ये चमचई अपने आका का मूत्रपान करने में भी गर्व की अनुभूति समझने लगी है। अब ऐसे भक्ति युग में शक्ति पर टाइम खोटी किया जाए, ये तो बिलकुल भी नहीं जमता। इसीलिए मितरों इस छोटी सी बात को ठीक ढंग से समझ लीजिए, कि इस देश को मिशन शक्ति की नहीं, बल्कि मिशन भक्ति की आवश्यकता है। इस बात को खुद भी समझना चाहिए और अपने देश के चौकीदार प्रधानमंत्री को भी अच्छी तरह समझाना चाहिए। समझाना चइए कि नहीं?
लेखक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
* कार्टून गूगल से साभार