अपना भारत देश बहुत ही असहिष्णु देश है। ये इतना असहिष्णु देश है कि आए दिन इस देश में असहिष्णुता से परेशान बेचारों को सार्वजनिक रूप से घोषित करना पड़ता है, कि ये देश कितना अधिक असहिष्णु है। इस देश के बहुसंख्यक असहिष्णु समुदाय के सहारे अपना सफल फिल्मी कैरियर बनानेवाले अभिनेता को सालों बाद अचानक ये अहसास होता है कि ये देश तो बड़ा असहिष्णु है। वो बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके ये घोषित करते हैं कि इस देश में इतनी ज्यादा असहिष्णुता बढ़ चुकी है कि यहाँ रहने में उन्हें और उनकी बीबी को बहुत डर लगने लगा है। हालाँकि इतना ज्यादा डरा हुआ होने के बावजूद भी वो इस असहिष्णु देश को छोड़कर कहीं और बसने का विचार भी नहीं करते। हमारे देश के असहिष्णु जीवों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है और वे उन अभिनेता को फिल्मी दंगल में पटखनी देने के बजाय जीत दिलवाकर अपने असहिष्णु होने का ठोस सबूत देते हैं। अभिनेता के शुभचिंतक भी अवसर का लाभ उठाते हुए असहिष्णुता का विरोध करते हुए अपने धूल जम चुके पुरस्कारों और सम्मानों को लगे हाथों लौटाकर विरोध के साथ-साथ अपने आपको गुमनामी से निकालने का प्रयास कर एक तीर से दो शिकार कर डालते हैं और वो भी इस देश को छोड़ने की बजाय इसकी छाती पर ही मूँग दलते रहते हैं।
बीते दिनों कई साल संविधान के उच्च पद पर बैठकर मलाई खाने के बाद एक बेचारे जाते-जाते असहिष्णुता का रोना रो गए और देश में असहिष्णुता का भोंपू फिर से बजने लगा। वो इतने सालों तक मलाई खाते रहें, लेकिन इस दौरान उन्हें असहिष्णुता के बिल्कुल भी दर्शन नहीं हुए, लेकिन जैसे ही उन्हें लगा कि उनका मलाई खाना अब बंद होनेवाला है, उन्होंने असहिष्णुता का शिगूफा छोड़ दिया और जाते-जाते इस असहिष्णु देश में इतनी इज्जत कमा गए कि अब उन्हें लोगों को अपना मुँह दिखाने में भी सोच-विचार करना पड़ रहा है। बहरहाल अपने देश के इतने असहिष्णु होने के बावजूद भी आए दिन कोई न कोई मुँह उठाए इसमें बसने के लिए चला आता है। ये सिलसिला आज से नहीं बल्कि हजारों सालों से चल रहा है। बाहर से यहाँ आ धमकने के बाद लोग यहीं डेरा डाल लेते हैं और जब लगता है कि इनका डेरा उखड़ने का खतरा नहीं रहा तो फिर ये असहिष्णुता का राग अलापने लगते हैं। अपना देश कोई देश न होकर धर्मशाला का प्रमाणपत्र पानेवाला है। पहले ही यहाँ नेपालियों और बांग्लादेशियों ने डेरा जमाकर उत्पात मचा रखा है और अब रोहिंग्या भी अपना रोना रोते हुए बोरिया-बिस्तर लादकर आ धमक रहे हैं। उन्हें कोई ये क्यों नहीं बताता कि उन्हें ऐसे असहिष्णु देश में न बसकर बांग्लादेश, पाकिस्तान या फिर अरब के किसी सहिष्णु देश में जाकर पनाह मांगनी चाहिए। पर ये बात शायद उन्हें समझ में नहीं आनेवाली। हमारे असहिष्णु देश के दीवानों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। कभी-कभी लगता है कि आने समय में देश के इन बाहरी दीवानों के आगे के हम असहिष्णु बहुसंख्यकों की संख्या लुप्तप्राय न हो जाए।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
कार्टून गूगल से साभार