मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के जयपाल सिंह परमार की साहित्यिक यात्रा सन् 1981 ईसवी से सामान्य शब्द संयोजन के साथ आरम्भ होकर आकाशवाणी एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं की पगडंडियों से होते हुए 'कल्पवृक्ष सेंहुड़ लगता है' नामक काव्य संग्रह के पड़ाव तक पहुंच गई है। इनके अनुसार साहित्य के सागर में इनकी लेखकीय नौका के आगे का सफर ईश्वर की कृपा पर निर्भर है। राजा राम की महिमा गाते हुए जयपाल सिंह परमार निरंतर साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
जयपाल सिंह परमार - सन् 1981 ईसवी में पहली बार महाविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष बनने पर मंच से कुछ पंक्तियाँ पढ़ने से मिली प्रशंसा से इस रोग का जन्म हुआ था। इसके बाद यह रोग उम्र के साथ साथ बढ़ने लगा फिर जैसा कि आप जानते है कुछ दिन बाद यह रोग लाइलाज हो गया। अब तो यह स्थिति है कि पुरानी खांसी की तरह जब चाहे उभर आता है।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
जयपाल सिंह परमार - लेखन कार्य से मेरे ऊपर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि यह तो माँ सरस्वती की आराधना है और आराधना से किसी का बुरा नहीं होता बल्कि समय का सदुपयोग करने का एवं समाज में अपनी पहचान बनाने का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। यही मेरे साथ हुआ है क्योंकि ग्रामीण परिवेश से महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए महानगर आने पर मेरी जो पहचान बनी वह माँ सरस्वती की कृपा से मेरे लेखन की वजह से ही है।
क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
जयपाल सिंह परमार - यदि हम युगों-युगों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था के बदलाव का अध्ययन करें तो देख सकते हैं कि समाज में बदलाव का जन्म लेखन की कोख से ही हुआ है। हर बड़े सामाजिक बदलाव के मूल में उस समय का लेखक और लेखन ही रहा है। हाँ लेखन के द्वारा इस बदलाव के लिए आवश्यक है, कि जिम्मेदारी के साथ इसे उस व्यक्ति तक पहुंचाया जाए जिसके लिए उसे लिखा गया है। समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं विसंगतियों से व्यथित हो कर जो पीड़ा होती है, उसी से कुछ लिखने के लिए कलम उठ जाती है इस उम्मीद के साथ कि शायद इस व्यवस्था में कुछ बदलाव ला सकूं।
आपकी सबसे प्रिय स्वरचित रचना कौन सी है और क्यों?
जयपाल सिंह परमार - मेरी सर्वाधिक प्रिय रचना मेरे काव्य संग्रह 'कल्पवृक्ष सेंहुड़ लगता है' की दूसरे क्रम की रचना 'महिमा राम राजा की' है, जो ईश्वर के प्रति मेरा समर्पण है।
आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
जयपाल सिंह परमार - प्रत्येक लेखक की भांति मैं भी समाज में भाईचारे एवं देश प्रेम की भावना को बनाए रखने का सन्देश देना चाहता हूँ। यदि मेरे इस प्रयास से समाज में थोड़ा सा भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो मैं स्वयं को धन्य समझूंगा।