प्राचीन काल में चार्वाक नाम के एक ऋषि हुए थे। उन्होंने अपने चावार्क दर्शन में कहा है ‘यावद् जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋण कृत्वा, घृतं पीवेत्’। आधुनिक काल में हमें भी उनकी विचारधारा 'जब तक जिओ सुख से जिओ, उधार लो और घी पिओ।' को चरितार्थ करनेवाले कई ऋषियों की प्राप्ति हुई है। ऐसे ऋषि राजनीति में भी अपनी गहरी पैठ जमाये हुए हैं और देश के विभिन्न प्रदेशों की सत्ता में जमे हुए अपनी हर नाकामी के लिए दूसरों को दोषी सिद्ध करने के खेल में महारत हासिल कर चुके हैं।
जैसे कि हर विभाग में दो प्रकार के जीव होते हैं। इनमें पहले प्रकार के जीव अपने विभागीय कार्य को बड़े ही परिश्रम से करते हुए अपने काम से काम रखने के आदी होते हैं, वहीं दूसरे प्रकार के जीव कुछ भी करने के बजाय इधर-उधर उछल-कूद मचाते हुए बड़े अधिकारियों की चमचागीरी और उनके कान फूँककर ही अपने कार्यालय के अनमोल समय को व्यतीत करते हैं। अब न जाने विभाग के ये उछल-कूद मचाऊ कर्मचारी इन राजनीतिक ऋषिओं से प्रभावित हैं या फिर राजनीतिक ऋषि महाराज स्वयं इन कर्मचारियों से प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं।
इन राजनीतिक ऋषियों ने ऋषि चावार्क के सुविधावादी विचारों से प्रेरणा लेकर कलियुग में 'मौजमस्ती दर्शन' का सृजन कर लिया है। वैसे तो आधुनिक पीढ़ी पर अक्सर ये आरोप लगाया जाता है, कि वो अपनी प्राचीन परंपराओं से कटती जा रही है, लेकिन आधुनिक युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि राजनीतिक ऋषियों ने अपनी इस प्राचीन चार्वाकी परंपरा का मान रखते हुए उपरोक्त दर्शन के माध्यम से इस अद्भुत प्राचीन संस्कार को जीवन प्रदान किया है। हो सकता है कि आनेवाले समय वे अपने इस दर्शन का थीम सॉन्ग 'मस्तराम मस्ती में, आग लगे बस्ती में' को ही बना लें।
बहरहाल ये सभी राजनीतिक ऋषि सत्ता का सदुपयोग करते हुए ‘मौजमस्ती दर्शन’ को चरितार्थ करते हुए हजारों की मदिरा एक दिन में ही डकार जाते हैं। बेशक चाहे इनके प्रतिनिधि क्षेत्र में बच्चियाँ भूख से बिलबिला कर अपने प्राण त्याग दें पर ये राजनीतिक ऋषि छप्पन भोग लगाना और उन भोगों को बिना डकार लिए हजम कर जाना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। इनका मानना है कि छोटी-मोटी बातों अथवा घटनाओं से ‘मौजमस्ती दर्शन, पर बिलकुल भी आँच नहीं आनी चाहिए। ऋषि चार्वाक भी स्वर्ग में अपने साथियों से उधार लेकर घृतपान करते हुए वहाँ से अपने कलियुगी शिष्यों और उनके अद्भुत कार्यों को देखकर धन्य होते हुए मंद-मंद मुस्कुराते रहते हैं।