प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
साथियों आज से लगभग ढाई हज़ार साल पहले (327 ई.पू.) तक्षशिला के राजा आम्भी (भारत का पहला गद्दार) के सहयोग से यूनानी राजा सिकंदर ने राजा पुरु (पोरस) पर हमला बोला. इसे राजा पुरु का दुर्भाग्य कहें या फिर सिकंदर का सौभाग्य कि युद्ध के दौरान बर्फीला तूफ़ान आरंभ हुआ और राजा पुरु की सेना जीतते-जीतते हार गई. राजा पुरु के साथ युद्ध में सिकंदर की सेना की ऐसी हालत हुई कि जब सिकंदर ने आगे बढ़कर मगध राज्य पर हमला करने के बारे में सोचा तो यूनानियों ने विद्रोह कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. सिकंदर ने बहुत कोशिश की अपने सैनिकों को समझाने की, किन्तु वे सब मगध जैसे शक्तिशाली राज्य के बारे में सुनकर बहुत घबराए हुए थे सो उन्होंने सिकंदर की बात मानने से साफ़ इनकार कर दिया. आखिरकार विवश हो व विश्व विजय का सपना अपने दिल में ही संजोये सिकंदर उदास हो वापस अपने देश को लौट पडा. रास्ते में ही उसे मच्छर मियाँ के कोप का शिकार बनना पड़ा और वह बेचारा मलेरिया से बेमौत ही मारा गया. आइये साथियो आज मिलते हैं उसी मगध राज्य (आधुनिक बिहार) की रश्मि प्रभा जी से जो पुणे में रहते हुए भी हिंदी की सेवा में रत हैं.
उनका परिचय उनकी ही कुछ पक्तियों से आरंभ करते हैं-
मैं गुनगुनाती हवा
मैं शब्दों का परिधान
मैं एहसासों की गंगा
'प्रसाद कुटी ' की बेटी
सीतामढ़ी (डुमरा) में 13 फ़रवरी, 1958 में इनका जन्म हुआ. इनके पापा स्वर्गीय रामचंद्र प्रसाद हाई स्कूल के प्राचार्य थे - इनके लिए संस्कारों का एक स्तम्भ , माँ श्रीमती सरस्वती प्रसाद इनकी शिक्षा, इनके एहसासों का मजबूत स्रोत बनीं .
भोर की पहली किरण - पन्त की रश्मि... बिना इसकी चर्चा किये इनका परिचय अधूरा रह जायेगा . 1964 में ये सपरिवार कवि सुमित्रानंदन पन्त के घर गए थे , इनकी माँ को उन्होंने अपनी बेटी माना था .... तब इनकी उम्र का अंदाजा आप सब लगा सकते हैं . इनकी नाम बस 'मिन्नी' था तब . उन्होंने अचानक कहा - 'कहिये रश्मि प्रभा , क्या हाल है? ' माँ-पापा के चेहरे पर मुस्कान उभरी , अहोभाग्य सा भाव उमड़ा , पर इन्होंने मुंह बिचकाया ' ऊँह... अच्छा नाम नहीं है ' . पन्त जी ने कहा - दूसरा नाम रख देता हूँ ' .... पापा ने कहा - ' नहीं , इसे क्या पता इसने क्या पाया है !' .... सच तब नहीं जाना था इन्होंने कि क्या मिला है इन्हें, पर यह नाम इनका मान बन गया . पापा ने कहा था एक दिन - ' बेटी तुम रश्मि ही बनना ' और कहते हुए उनकी आँखें भर आई थी ! इन्होंने उनके कहे को कितना निभाया , इसे आप सब ही तय कर सकते हैं .
"मृखुअपरा की माँ" सुनकर लगेगा कि यह क्या परिचय हुआ , पर मृखुअपरा इनके परिचय का एक ठोस आधार हैं . इन्होंने इनकी ऊँगली थाम कहा - 'डगमगाना तो किसी हाल में नहीं है , हम हैं न ' और कहीं भी , कभी भी यह डगमगाई नहीं . कहीं कोई फिसलन हो - ये इन्हें आगाह करते हैं . मृखुअपरा अर्थात इनके बच्चे मृगांक, खुशबू और अपराजिता .
सुमित प्रताप सिंह- रश्मि प्रभा जी नमस्ते! कैसी हैं आप?
रश्मि प्रभा- जी मैं बहुत अच्छी हूँ सुमित जी! आप अपनी कहें.
सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बहुत अच्छा हूँ. आज आपको जानने की इच्छा हुई और चला आया कुछ प्रश्न पोटली में बाँधकर.
रश्मि प्रभा- अरे भई तो पोटली की गाँठ खोलो और कुछ बोलो.
सुमित प्रताप सिंह- आपको ब्लॉग लेखन का रोग कब, कैसे और किसके माध्यम से लगा?
रश्मि प्रभा- 2007 से अपनी बेटी खुशबू के कहने पर मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया . उसीने ब्लॉग बनाया ... हाँ , हिंदी में लिखने का सुझाव श्री संजीव तिवारी जी ने दिया और मेरी रचना 'अदभुत शिक्षा ' से कईयों को रूबरू करवाया .
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
रश्मि प्रभा- मेरे घर में साहित्यिक बातें होती रहती थीं तो उसे नींव कहिये ... हाँ , मैं जब पहली बार कॉलेज की पढ़ाई के लिए छात्रावास में रहने गई तो बड़ी बड़ी चहारदीवारियों के बीच , नकली बातों के आदान-प्रदान के बीच मुझे लगा मेरा आकाश सीमित हो गया है , और न जाने कई प्रश्न मन को उद्द्वेलित कर गए , तब मैंने लिखा था -
" मैं वक़्त हूँ
आओ तुम्हें एक कहानी सुनाऊँ
एक छोटी सी लड़की की कहानी ...."
सुमित प्रताप सिंह- आप लिखती क्यों हैं?
रश्मि प्रभा- लिखूंगी नहीं तो जिउंगी कैसे ? एक एक शब्द मेरी साँसें हैं ...
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
रश्मि प्रभा- कविता लिखना मुझे अधिक प्रिय है ...
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
रश्मि प्रभा- सत्य और हौसला साथ हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं ...
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा हिंदी की प्रगति" इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगी?
रश्मि प्रभा- हिंदी तो कोमा में थी ... एक एक ब्लॉग ने हिंदी को जागृत किया है . हिंदी में लिखने का आह्वान, उसके लिए समय समय पर सुझाव और सबके उठे कदम ने हिंदी की ख़त्म होती गरिमा को फिर से कायम किया है ...
बहुत अच्छा लगा आपके प्रश्नों के मध्य गुजरना - शुभकामनायें
(और मैं रश्मि प्रभा जी को उनके मृखुअपरा के साथ छोड़कर चल दिया अगली मंजिल की ओर)