जिस प्रकार की इन दिनो गंभीर अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता होती है, ऐसी भेंटवार्ता हमारे भाग्य में कभी थी ही नहीं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हम भोले-भाले विद्यार्थी विद्या का अर्थ ग्रहण करने की अपेक्षा विद्या की अर्थी निकालने का अधिक चाव रखते थे। हमारे माता-पिता को अपने-अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिला करती थी, जो हम और हमारी पढ़ाई पर ध्यान दे पाते। पिताजी अपनी नौकरी के भंवर में ऐसे फंसे हुए थे कि उससे निकलना बहुत कठिन था और माँ को घर के काम से ही पल भर का चैन नहीं मिलता था रही सही कसर हमारे शिक्षक महोदय पूरी कर दिया करते थे। उनको अपने छात्रों को पढ़ाने से अधिक प्राइवेट ट्यूशन से दो पैसे की ऊपरी कमाई करने में अधिक आनंद आता था। जब कभी उन्हें कक्षा में पढ़ाने को विवश होना पड़ता था तो वह ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखने के बजाय अपने डंडे से छात्रों के शरीर पर लिखाई अधिक किया करते थे। न तो शिक्षकों ने हमारे अभिभावकों को किसी भेंटवार्ता के लिए बुलाया न ही किसी छात्र ने अपने अभिभावकों को शिक्षक से मिलने का सुझाव देने का साहस किया। सभी छात्र चुपचाप शिक्षकों के मजबूत डंडों की भेंटवार्ता अपने-अपने शरीर से इस आस के साथ करवाते रहते थे, कि चाहे बुद्धि का विकास हो न हो लेकिन डंडे खा-खाकर उन सबके शरीर में सहनशक्ति और मजबूती का विकास तो होकर ही रहेगा।
आज के समय की बात ही कुछ और है। अब अभिभावक स्कूल की फीस भी भरते हैं और अपने बच्चे की हर छोटी-मोटी गलतियों के लिए शिक्षक की फटकार भी सहते हैं। असल में देखा जाए तो स्कूल में भारी भरकम फीस भरने के बावजूद पढ़ाने की नैतिक जिम्मेवारी अभिभावकों के जिम्मे ही है। वे बेचारे नौकरी और घर की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ अपने नौनिहालों को पढ़ाने के नाम पर स्वयं बचपन को न चाहते हुए भी जीते हुए फिर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए विवश हैं। शिक्षकों की भी विवशता है वे बेचारे पूरी कक्षा के विद्यार्थियों पर भला एक साथ कैसे ध्यान दे सकते हैं। इसलिए अभिभावकों को शिक्षकों द्वारा ये जिम्मेवारी सौंप दी जाती है, कि या तो अपने बच्चों को ढंग से पढ़ाओ या फिर उनका बेकार रिजल्ट भुगतने को तैयार रहो। ऐसे सभी कड़े निर्देश देने के लिए प्रत्येक स्कूल में समय-समय पर अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता का आयोजन किया जाता है
अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता के दौरान शिक्षक अपने मुख पर गांभीर्य और दुख का ऐसा आवरण चढ़ा लेते हैं, कि एक बार को तो ऐसा प्रतीत होता है कि भेंटवार्ता से पूर्व वे किसी न किसी भले मानस की चिता को मुखाग्नि देकर आए हों। अपने बच्चे के भविष्य के प्रति चिंतित भयभीत अभिभावक शिक्षक द्वारा बच्चे के विषय में दिए गए आदेशात्मक कड़े निर्देश सिर झुका कर विवशतावश सुनते रहते हैं। बच्चे को पढ़ाई की मशीन बनाने की प्रक्रिया पर इतनी विस्तृत व गंभीर वार्ता होती है कि इस वार्ता के आगे भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली कश्मीर वार्ता भी अपनी लघुता पर खिन्नता प्रकट करने लगे। भेंटवार्ता में अभिभावकों को बच्चे की शिकायत करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से डांट की इतनी अधिक मात्रा प्रदान की जाती है, कि एक बार को तो इच्छा होती है कि अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता के स्थान पर इसका नाम बदल कर अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता रख दिया जाए।