राजस्थान के बीकानेर जिले की आशा शर्मा पेशे से इंजीनियर और दिल से साहित्यकार हैं। इन्होंने 2014 ईसवी में लेखन आरंभ किया और इनकी लेखनी ने अनवरत चलते हुए सात पुस्तकों का सृजन कर डाला। इनकी रचनाओं ने जहाँ देश के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में स्थान बनाया, वहीं अनेकों पुरस्कार-सम्मान इनकी झोली में आकर चैन की सांस ले रहे हैं। हिंदी साहित्य को बड़ी आस है कि आशा शर्मा नित्य नई रचनाओं से उसे समृद्ध करती रहेंगीं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
आशा शर्मा - लेखन से भी बहुत पहले मुझे पढ़ने का रोग लगा था। लिखना शायद उसी रोग का साइड इफेक्ट है, जिसके लक्षण पहली बार 2014 ईसवी में दिखाई दिए थे। इसके बाद यह साइड इफेक्ट मुख्य रोग में बदल गया और तब से ही यह रोग लाइलाज बना हुआ है।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
आशा शर्मा - जिंदगी में जब कोई नया अध्याय जुड़ता है तो जीवन पर उसका प्रभाव पड़ना लाज़िमी है। लेखन से भी बहुत से प्रभाव पड़े जिन्हें अच्छे या बुरे में बांटना मेरे लिए संभव नहीं। लेखन से जुड़ने के बाद मेरा सामाजिक दायरा बहुत बढ़ गया, जो कि एक अच्छा प्रभाव माना जा सकता है, लेकिन सामाजिक दायरा बढ़ने से निश्चित ही मेरा भी टाइम अर्थात व्यक्तिगत समय कम हो गया, जिसे बुरा प्रभाव कहा जा सकता है।
क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
आशा शर्मा - क्यों नहीं बदलाव ला सकता? कभी आपने देशभक्ति के गीत सुने हैं? उन गीतों को सुनकर सीमा पर खड़े सैनिकों की बाजुएं फड़कने लगती हैं। दर्दभरी कविताएं आंखों में पानी ला देती हैं। कितने ही ऐसे बड़े-बड़े सामाजिक आंदोलन हुए हैं, जो कलम की शक्ति से ही सफल हुए हैं। लेखक अपने समय से आगे चलते हैं। समाज में उठ रही नित नई समस्याओं के सकारात्मक समाधान कलम के माध्यम से ही लोगों तक पहुंचते हैं। लेखन से ही बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण होता है। कुल मिलाकर मैं तो इस कथ्य से पूरी तरह सहमत हूँ, कि समाज में यदि कोई बदलाव ला सकता है वो कलम है।
आपकी सबसे प्रिय रचना कौनसी है और क्यों?
आशा शर्मा - ये तो आपने वैसा ही प्रश्न पूछ लिया, कि आपको अपनी संतानों में से सबसे अधिक प्रिय कौन सी है? लेखक को अपनी हर रचना संतान जैसी ही प्रिय होती है, लेकिन जैसे कोई संतान अपनी किसी विशेष योग्यता के कारण दिल के जरा अधिक नजदीक होती है उसी तरह कुछ रचनाएं भी हमारे दिल में अपना विशेष स्थान रखती हैं। मुझे अपनी बहुत सी रचनाएं समान रूप से प्रिय हैं। जिनमें से मैं अपनी कहानी 'साढ़े आठ बजे की कॉल' का नाम ले सकती हूँ। इस रचना को मैंने एक अलग अंदाज में लिखा है। इसके अतिरिक्त मुझे अपनी एक पद्य रचना भी विशेष प्रिय है, जिसे मैंने दर्द के अतिरेक में लिखा था। बच्चों की बहुत सी कविताएं एवं कहानियां और कुछ लघुकथाएं भी मेरे दिल के बहुत करीब हैं।
आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
आशा शर्मा - मैं किसी को कोई संदेश नहीं देना चाहती, लेकिन चूंकि मैं बच्चों के लिए अधिक लिखती हूँ इसलिए मेरी इच्छा है कि हमारे बच्चे आने वाले समय में अच्छे नागरिक बनें। मेरा प्रयास रहता है कि मैं अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्हें अच्छी आदतें, अच्छा व्यवहार और अच्छा आचरण सिखाऊं। यदि बचपन संस्कारित होगा तो हर पीढ़ी आदर्श होगी। मैं यही कहना चाहती हूं कि हर परिवार अपने बच्चों को वो सभी संस्कार आवश्यक रूप से दे जो समाज को सही राह दिखाएँ और राष्ट्र की उन्नति में सहायक हों।