प्यारे भाई आनंद सिंह
सादर दिवंगतस्ते!
बहुत ही दुखी और उदास मन से तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ। कलम चलते-चलते अचानक रुक सी जाती है, लेकिन तुम जैसे बहादुर
पुलिस के सिपाही को पत्र लिखने में ये कलम भी गौरव का अनुभव करते हुए रुक-रूककर
एकदम से चल पड़ती है। कुछ रोज
पहले तुम अद्भुत शौर्य दिखाते हुए एक गरीब रेहड़ीवाली महिला को लुटने से बचाते हुए
उन तीन बदमाशों से जाकर भिड़ गए और बदमाश की गोली खाकर भी तुमने तब तक उनका पीछा
किया जब तक कि तुम निढाल होकर धरती पर गिर नहीं पड़े। आसपास मौजूद कथित बहादुर जनता ने ये सब देखा, लेकिन उसकी
कथित बहादुरी ने उसे उन बदमाशों को रोकने को प्रेरित नहीं किया, फलस्वरूप तुम्हें
इस संसार को छोड़कर विदा होना पड़ा। वैसे
तुम तो इस बात को भली-भांति जानते और समझते थे कि देश का दिल कहे जानेवाले इस
महानगर दिल्ली का माहौल कितना ख़राब हो रखा है और यहाँ लोगों के दिलों में दिल जैसी
कोई चीज अब सलामत ही नहीं रही है। ये तुम
कैसे भूल गए कि यह महानगर अराजकता के शिकंजे में किस कदर जकड चुका है। क्या तुम बीते दिनों की उन घटनाओं को भूल गए थे कि कैसे
सरेआम जनता के वेश में छिपे अपराधियों द्वारा पुलिसकर्मियों को समय-समय पर सरेआम
पीटा गया, जरा-जरा सी बात पर पुलिस थानों और चौकियों को घेरकर नारेबाजी और
पत्थरबाजी करते हुए उन्हें जलाने तक कोशिश की गई और जाने कितने पुलिसकर्मियों को
बिना गलती और बिना सुनवाई के जेल में ठूँस दिया गया। कम से कम तुम्हें इतनी सावधानी तो बरतनी ही चाहिए थी कि
अपने साथ सुरक्षा के लिए सरकारी पिस्तौल ही रखते पर फिर एक बार को ख्याल आता है कि
सरकारी पिस्तौल को रखने का फायदा भी क्या होता? अगर तुम्हारी सरकारी पिस्तौल से
कोई बदमाश मारा भी जाता तो जाने कितने संगठन तुम्हारे खिलाफ मोर्चा लेने को खड़े हो
जाते तथा मानवाधिकार की दुहाई देते हुए तुम्हारे पुतले फूँक रहे होते और तुम्हें
बिना समय गँवाए जेल में डाल दिया जाता। समाचार
चैनलों पर कथित बुद्धिजीवी तुम्हारे हाथों मारे गए अपराधी को संत घोषित करते हुए तुम्हें
रावण या कंस का अवतार सिद्ध कर रहे होते और कलियुग के राजा हरीश चंद्र मारे गए
अपराधी को शौर्य पदक देने की सिफारिश करते हुए उसके परिवार को गोद लेने की तैयारी
में अब तक लग चुके होते। पर
चूँकि ऐसा कुछ हुआ नहीं और किसी लुच्चे-बदमाश की बजाय एक पुलिस का जवान मारा गया
इसलिए अख़बारों ने भी इस खबर को पहले पन्ने पर स्थान देने में भी शर्म महसूस की। मानवाधिकार प्रेमी शांत हैं और किसी दानव के मारे जाने पर सक्रिय
होने के लिए वचनबद्ध हैं तथा कथित बुद्धिजीवी अपनी बुद्धि को धार लगते हुए उचित
अवसर की ताक में हैं। कम से
कम इस बात की संतुष्टि है कि तुम्हें शहीद का दर्जा है दिया गया है और तुम्हारे
परिवार को नौकरी और एक करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी गई है। हालाँकि इन सबसे शायद ही तुम्हारी भरपाई हो सके। अंत में हम सभी पुलिस के भाई-बंधु तुम्हारे परिवार संग
तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए इस उम्मीद के साथ प्रार्थना करते हैं कि हृदयविहीन
इस महानगर के हालात सुधरें और फिर कोई आनंद कुमार यूँ बेमौत न मारा जाए।
तुम्हें अंतिम विदाई देते हुए वीरतामय नमस्कार
तुम्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देता हुआ
तुम्हारा एक विभागीय भाई
लेखक : सुमित प्रताप सिंह