प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
आइये मित्रो आज क्रिसमस के शुभ अवसर पर काजू और किशमिश खाते हुए मिलते हैं ब्लॉग जगत के एक सक्रिय सदस्य से. जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ वंदना गुप्ता जी की. दिल्ली के आदर्श नगर में रहते हुए अपने माता-पिता के आदर्शों को मन में संजोये हुए ये लगी हुईं हैं ब्लॉग लेखन द्वारा हिंदी माँ की सेवा में. इनके पिता तो चाहते थे कि उनकी बेटी आई.ए.एस. अधिकारी बने लेकिन बन गयीं ये लेखक और ब्लॉगर. अब होनी को जो मंज़ूर हो वो ही तो होता है. अब सोचिये यदि ये आई.ए.एस. अधिकारी बन जाती तो ब्लॉग जगत की रौनक का क्या होता अथवा ब्लॉगर सम्मेलन उबाऊ न हो जाते. तो आइये धन्यवाद दें उस दुनिया बनाने वाले को जिन्होंने इस दुनिया को और वंदना गुप्ता जी को बनाया और इन्हें आई.ए.एस. अधिकारी नहीं बनाया. वंदना गुप्ता जी लेखन की विविध विधाओं में लिखती हैं और बाकी बचा-खुचा चलिए इन्हीं से पूछ लेते हैं.
सुमित प्रताप सिंह- नमस्ते वंदना गुप्ता जी! कैसी हैं आप? सांपला ब्लॉगर सम्मेलन कैसा रहा?
वंदना गुप्ता- नमस्ते सुमित प्रताप सिंह जी मैं बिलकुल ठीक हूँ आप सुनाएँ आप कैसे हैं? वैसे सांपला ब्लॉगर सम्मेलन सफल रहा उसकी यादों में अभी तक मेरा मन मचल रहा.
सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बिलकुल ठीक हूँ. चलिए सांपला ब्लॉगर सम्मेलन की सफलता के लिए आप सभी को बधाई. वन्दना जी कुछ प्रश्न आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ आशा है आपके द्वारा उनके समुचित उत्तर मुझे मिलेंगे.
वंदना गुप्ता- जी धन्यवाद! आपके प्रश्नों के उत्तर देने की ईमानदारी से कोशिश करूंगी.
सुमित प्रताप सिंह- आपको ये ब्लॉग लेखन की बीमारी कब, कैसे और क्यों लगी?
वंदना गुप्ता- अब बीमारी है न सुमित जी कब लग जाये क्या कहा जा सकता है जरा सा कोई भी पार्ट कमजोर हुआ और वाइरस ने हमला किया बस उसी तरह ये भी लग गयी. वैसे इस बीमारी से पिछले चार साल से जूझ रही हूँ २००७ से जो लगी है तो दिन पर दिन बढ़ ही रही है और अब तो इससे ऐसा मोह हो गया है कि यदि ये खुद भी छोड़ना चाहे तो हम अब इसे नहीं जाने देंगे
.........आखिर ब्लॉगर ठहरे हमारा एंटी वायरस तो अभी तक बना नहीं है वैसे सुना है कुछ लोग कोशिश में लगे हैं हम पर नकेल कसने की
.........मगर वो ब्लॉगर ही क्या जो हार मान ले सो हम भी लगे हैं .
अब आते हैं इस बात पर कि कैसे और क्यों लगी
.............ये सब हमारे बड़े बड़े सैलिब्रिटिज़ का कमाल है . रोज पेपर में उनके बारे में पढ़ - पढ़ कर हम कुढ़ गए कि आखिर ये बला है क्या और एक दिन जब पता चला पेपर में ही कि कैसे ब्लॉग बनाया जाता है तो हम भी कमर कस के बन ही गए ब्लोगर और बना डाला अपना पहला ब्लॉग ........ज़िन्दगी एक खामोश सफ़र नाम से ..............मगर उस वक्त ज्यादा कुछ तो आता नहीं था सो मुश्किल से २-४ पोस्ट ही लगायीं और भूल गयी . कुछ दिन बाद खोलना चाहा तो ये ब्लॉग हमारी ज़िन्दगी से ही निकल गया सच में ही खामोश हो गया मगर आखिर ब्लोगिंग के कीड़े ने ऐसा डंक मारा था कि जल्द ही दूसरा ब्लॉग बना डाला ज़ख्म जो फूलों ने दिए नाम से ...........और जुट गए अपने कर्म क्षेत्र में .
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
वंदना गुप्ता- पहली रचना
.........उफ़ .......समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं तो बस यही लिख दिया " कैसे लिखूं
".............क्यूँकि पता नहीं था कि आखिर ये बला क्या है बस अंधों की तरह छलांग लगा दी थी दूसरों को देख हमने भी…… ना गहराई का पता था ना ही पानी का . अब डूबेंगे या तरेंगे पता नही………हाँ , पानी मे जरूर हैं।
सुमित प्रताप सिंह- आप लिखती क्यों हैं?
वंदना गुप्ता- अपने मन के सुकून के लिए, आत्म संतुष्टि के लिए और स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए
..........और सच मानिये मैं चाहे कितनी थकी होऊं या कितनी ही परेशान होऊं मगर जैसे ही ब्लॉग खोलती हूँ और लिखना शुरू करती हूँ अपने आप को भूल जाती हूँ और एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाती हूँ
............और जब उठती हूँ तो एक दम फ्रेश हो जाती हूँ और दुगुने जोश से कार्य करने लगती हूँ...........तो लेखन तो मेरा जीवन बन चुका है .
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
वंदना गुप्ता- प्रिय विधा तो कवितायें हैं और उसमे भी प्रेम और विरह मेरा जीवन
.............जिस पर मैं जितना लिखूं उतना कम है ..........शायद यही हम सबके जीवन का मूल मंत्र है और हम सभी इससे गुजरते हैं शायद इसीलिए ये मेरे प्रिय विषय हैं . वैसे इनके अलावा आलेख और कहानियां भी कभी कभी लिखती हूँ जब कोई बात ज्यादा परेशान कर देती है तब वो अपने आलेखों के माध्यम से रखती हूँ .
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
वंदना गुप्ता- प्यार दो प्यार लो
............ज़िन्दगी चार दिन है तो क्यों ना प्यार से गुजारी जाये कम से कम हमारे जाने के बाद कोई हमें प्यार से ही याद करे बस ऐसा कुछ कर जायें कि सबके दिलों में एक छोटा सा कोना बना जाएँ और अपने प्यार का एक फूल वहाँ उगा जाएँ जिसकी महक से सबका मन हमेशा सुवासित रहे .
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. आपकी ज़िन्दगी एक खामोश सफ़र क्यों है? यदि यह चीखती हुई अथवा गुनगुनाती हुई होती तो कैसा रहता?
वंदना गुप्ता- इस प्रश्न का जवाब एक कविता के माध्यम से ही दे देती हूँ
..............
ज़िन्दगी का सफ़र गर होता
गुनगुनाता तो
मैं भी बन जाती तितली
उडती फिरती गगन गगन
लिख देती कुछ तराने
समय के आकाश पर
जो ता-उम्र ना मुरझाते
मगर सफ़र ज़िन्दगी के सबके
गुनगुनाते नहीं
हकीकतों के धरातल पर
सपनों के कँवल खिलखिलाते नहीं
हकीकत तो ये है
हर सफ़र में एक चीख छुपी होती है
बस फर्क इतना है
कोई चीख की आवाज़
मन की तहों में दबा नहीं पाता
और कोई चीख को
ख़ामोशी में दफ़न कर
मुस्कुरा देता है
और कुछ यूँ ज़िन्दगी को
हरा देता है
...........
अपना अपना जज्बा होता है
अपनी अपनी नज़र होती है
ज़िन्दगी तो सभी की
एक खामोश सफ़र होती है
बस पढने वाली निगाहों के लिए
मौन में भी ज़िन्दगी मुखर होती है
............
सुमित प्रताप सिंह- वंदना जी हमारी ईश्वर से यही कामना है कि आप यूं ही लिखती रहें और ब्लॉग जगत आपकी रचनाओं का स्वाद चखता रहे. शीघ्र आपसे फिर मुलाक़ात होगी.
वंदना गुप्ता- जी अवश्य सुमित जी.