मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

शिखा वार्ष्णेय का जीवन है स्पंदन


प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!


     दोस्तो लंदन शहर कितना खूबसूरत  है. यहाँ की हर इमारत,हर गली,हर दुकान अद्भुत छटा लिए हुए है. टावर ब्रिज, वेस्टमिंस्टर महल, ब्रिटिश संग्रहालय व रोयल अलबर्ट हॉल इत्यादि देखने में कितने अद्भुत लगते हैं. हो भी क्यों न अंग्रेजी साम्राज्य ने पूरे विश्व को खूब लूटा भी तो है.अपने भारत को ही ले लीजिए पूरे 190 साल तक लूटपाट कर अंग्रेजी खजाने को भरा गया. यकीन नहीं हो रहा है तो कभी फुर्सत मिले तो लाल किले के दीवाने खास व उसके जैसी अनेक खास इमारतों को जाकर ध्यान से देखना कि किस प्रकार उनमें जड़े कीमती पत्थर तक खुरच-खुरच कर निकालकर ले गये सफेद शैतान. अब अपने आपको सभ्य कहते हैं. भिखारी बन भारत आए और भारत को भिखारी बनाकर चले गए. जाते-जाते भी हम पर सत्ता करने हेतु अपनी कार्बन कापियाँ अर्थात काले अंग्रेज छोड़ गये. जो अब तक हम भारतीयों का खून चूस रहें है. यह सब देखकर आप सबके मन-मस्तिष्क में कभी स्पंदन नहीं होता. खैर आज हम मिलने जा रहे हैं इसी खूबसूरत शहर में इन सफ़ेद भूतों के बीच रहकर अपने लेखन से स्पंदन मचाने वाली हिंदी ब्लॉगर शिखा  वार्ष्णेय  से.


शिखा  वार्ष्णेय जी की कहानी भी अजब ब्लॉगर की गजब कहानी है. पहले तो इन्हें घरवालों ने घर निकाला देकर फरमान सुनाया कि जाओ रूस जाकर पढ़ाई-लिखाई करो फिर वहाँ से भी बोरिया-बिस्तर बाँधकर वापस लौटने का हुक्म सुनाया गया कि बस हो गई पढाई पूरी अब वापस आ जाओ. घरवालों से फिर यह भी न सहा गया  (कहानी घर-घर की) तो उठा कर पहले से ही कंप्यूटर से शादी कर चुके एक इंजीनियर के साथ  गठबंधन कर दिया (यानि कि हमारी होने वाली आका के मन में भी शिखा जी जैसे विचार उमड़ सकते हैं). फिर चकरघिन्नी की तरह घूमती-फिरती रहीं मारी-मारी (असल में मारे-मारे तो श्रीमान शिखा  वार्ष्णेय फिर रहे थे इनके पीछे-पीछे) एक देश से दूसरे देश निभाती रहीं गृहस्थ धर्म (और श्रीमान शिखा वार्ष्णेय जी क्या निभा रहे थे?). मगर मन की अकुलाहट सतह पर आने लगी और चिल्लाने लगी  बहुत हुआ, बहुत हुआ अब हमें शांत किया जाये. तो कलम थाम ली. बस ..तब से उसकी गुलामी कर रहीं हैं. चलिए मिलते हैं शिखा वार्ष्णेय जी से...

सुमित प्रताप सिंह- शिखा वार्ष्णेय जी जय सिया राम.

शिखा वार्ष्णेय- देखिए सुमित जी मुझे श्री राम पसंद नहीं हैं सो जय श्री कृष्ण. (श्री राम पसंद नहीं हैं तो माता सीता ने क्या बिगाड़ा है...खैर श्री कृष्ण भी तो श्री राम के ही अवतार हैं)

सुमित प्रताप सिंह-  जय श्री कृष्ण कैसी हैं आप?

शिखा वार्ष्णेय- जी बिलकुल ठीक हूँ. आप कैसे हैं?

सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बिलकुल ठीक हूँ. कुछ प्रश्न लाया हूँ आपके लिए.

शिखा वार्ष्णेय- पूछिए-पूछिए जो भी पूछना है. शिखा जी के मन में स्पंदन भी हो रहा है कि मैं उनसे जाने क्या पूछ लूँ)

सुमित प्रताप सिंह- आपको ब्लॉग लेखन का रोग कब, कैसे और किसके माध्यम से लगा?

शिखा वार्ष्णेय- ये छूत की बीमारी है जो लेखन के कीटाणु से फैलती है. इसके लिए किसी माध्यम का होना वैसे आवश्यक नहीं. ये यूँ ही अंतरजाल पर विचरण करते हुए किसी भी एक ब्लॉग के संपर्क में आने से लग सकती है और लाइलाज है.मुझे यह रोग 2009 में "कुश की कलम" से लगा था जिसका लिंक ऑरकुट पर था.
 ( अचानक ही उनकी दोनों कनिष्का  उँगलियों में स्पंदन होने लगा)


सुमित प्रताप सिंह- किसी भी रचना को अच्छा सिद्ध करने हेतु कितनी टिप्पणियाँ काफी हैं? एक या फिर सौ? 

शिखा वार्ष्णेय- रचना अच्छी है या नहीं ये एक या सौ टिप्पणी नहीं निर्धारित करती.टिप्पणियाँ तो मात्र टोनिक हैं जो लेखन रुपी बीमारी को राहत पहुंचाती है.अंधे को क्या चाहिए दो आँखें ..ऐसे ही लेखक को चाहिए पाठक या श्रोता. टिप्पणियाँ सबूत हैं कि कोई पढने आया और पढ़ कर गया. फिर बेशक कारण कुछ भी हो और एक शब्द ही क्यों ना लिखा गया हो.
(उनके शांत होते ही उनकी अनामिका उँगलियों में स्पंदन होने लगा)

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

शिखा वार्ष्णेय- मैंने अपनी पहली रचना १२ वर्ष की अवस्था में ग़ज़ल जैसी कुछ लिखी थी.जिसकी प्रेरणा एक पत्रिका में पढ़ा हुआ एक शेर था.-
 " जब भी चाहा वही चाहा जो अपने मुकद्दर में नहीं, अपनी तो हर तमन्ना से शिकायत है मुझे".
और मैंने इसी को आगे बढ़ाते हुए उसी तर्ज़ पर रोंदू से पांच शेर (तुकबंदी ) और लिख दिए हालाँकि उसे ग़ज़ल कहते हैं ये तब मुझे मालूम नहीं था.

(अब उनकी मध्यमा उँगलियों में भी  स्पंदन  आरम्भ हो गया)

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखती क्यों हैं?

शिखा वार्ष्णेय- मेरे अन्दर भाव हमेशा उथल पुथल मचाये रहते हैं और उनके साथ जब लेखन के कीटाणु मिल जाते हैं तो हाहाकार होने लगता है, अत : उन्हें शांत करने के लिए मैं लिखती हूँ.

(उनकी तर्जनी उँगलियों में भी स्पंदन शुरू हो चुका था)


सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है? आपको यह विधा इतनी प्रिय क्यों हैं?

शिखा वार्ष्णेय- कविता मेरा पहला प्यार है.जो बेशक आपको मिले ना मिले पर आप उसे भूलते नहीं.संस्मरण लिखने में मुझे बहुत आनंद आता है और यात्रा वृतांत लिखना मेरे लिए सहज होता है.

( बेचारे अंगूठे महाराज बचे थे वो भी स्पंदन के जाल में फंसकर स्पंदन करने लगे)

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?

शिखा वार्ष्णेय- मैं कौन होती हूँ सन्देश देने वाली. मैं बस अपने विचार लिखती हूँ. बाकी जिसको जो समझना है वो समझ ले.

(अब शिखा जी के दोनों हाथ स्पंदन अनुभव कर रहे थे)

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन व विदेश में हिंदी"  इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगी?

शिखा वार्ष्णेय-  ब्लॉग और विदेशों में हिंदी लेखन वैसा ही है ..जैसे किसी को ( हिंदी को ) उसके ही घर से निकाल दिया गया हो और हम अपने घर लाकर प्रेम से उसे पाल पोस रहे हैं,उसकी देखभाल कर रहे हैं,सहेज रहे हैं.कि किसी तरह वो हम सब के बीच बनी रहे , फलती फूलती रहे.

(आखिर में जब शिखा जी के पूरे तन, मन व मस्तिष्क  में स्पंदन होने लगा तो मुझे लगा कि उन्हें उनके ब्लॉग स्पंदन के सुपुर्द कर उन्हें जय सिया राम...धत तेरे की भूल गए जय श्री कृष्ण  कहकर खिसक ही लिया जाए)

शिखा वार्ष्णेय जी की रचनाओं को पढ़कर अपने मन-मस्तिष्क  में स्पंदन का अनुभव करना हो तो पधारें   http://shikhakriti.blogspot.com/ पर...

26 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

मुलाकात तो भई गजब रही ... आजकल वैसे भी इनके ही चर्चे है हर जगह ... पर इतने स्पंदनो के बीच सच कहें तो चैन नहीं मिल पाया होगा किसी को भी ... है कि नहीं ... ;)

Kailash Sharma ने कहा…

शिखा जी के लेखन से परिचय तो पहले से ही है. यहाँ उनका साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा...लाज़वाब और रोचक प्रस्तुतीकरण...बहुत सुंदर..आभार

Kailash Sharma ने कहा…

शिखा जी के लेखन से परिचय तो पहले से ही है. यहाँ उनका साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा...लाज़वाब और रोचक प्रस्तुतीकरण...बहुत सुंदर..आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

स्पंदन सहित अच्छा परिचय ॥

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

शिखा जी के विचार
और भावनाएं
कल्‍पनाओं की उर्वर
शाखाएं हैं
जो सद्विचारों से
लदी फदी हैं
मौसम गया वसंत
का
लेकिन विचारों की कोयल
कूक रही है।

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

शिखा जी वाकई बहुत खूबसूरत लिखती हैं। आपने भी उनका गजब का इंटरव्यू लिया।

amit kumar srivastava ने कहा…

स्पंदन शाश्वत रहे....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत बढ़िया शिखा ... बहुत अच्छे जवाब दिए , मेरे मन में स्पंदन होने लगा

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही रोचक साक्षात्कार……… बहुत अच्छा लगा.

girish pankaj ने कहा…

शिखा ने अपनी रचनात्मक प्रतिभा के सहारे हिंदी जगत में सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है. अभी तो ये शुरुआत है. लेकिन यह शुरुआत ही बता रही है की यह शिखा कहाँ तक जायेगी. साक्षात्कार का अंदाज़ रोचक है.

Aruna Kapoor ने कहा…

वाह सुमित प्रताप सिंह जी!....जय सिया- राम!...आपने शिखा जी का परिचय बहुत ही सुन्दरता से कलम बद्ध किया...स्पन्दन को भी बिच में बहुत अच्छी तरह से जताया!..जय श्री कृष्ण!

shikha varshney ने कहा…

आप सभी गुणी जनो का तहे दिल से आभार.और सुमीत जी का आभार इतने सारे स्पंदन सजाने का:).

पी के शर्मा ने कहा…

हम उन अनुभवों से रूबरू नहीं हुए हैं जिनसे शिखाजी हो चुकी हैं और वे अनुभव हैं अपना देश छोड़ देने से होने वाले मानसिक स्‍पंदन... शिखा जी का साहित्यिक खजाना हमसे ज्‍यादा है.... हम बहुत कुछ पा सकते हैं उनके लेखन से...हम इस सुमितिय प्रयास का आदर करते हैं...

पी के शर्मा ने कहा…

हम उन अनुभवों से रूबरू नहीं हुए हैं जिनसे शिखाजी हो चुकी हैं और वे अनुभव हैं अपना देश छोड़ देने से होने वाले मानसिक स्‍पंदन... शिखा जी का साहित्यिक खजाना हमसे ज्‍यादा है.... हम बहुत कुछ पा सकते हैं उनके लेखन से...हम इस सुमितिय प्रयास का आदर करते हैं...

पी के शर्मा ने कहा…

हम उन अनुभवों से रूबरू नहीं हुए हैं जिनसे शिखाजी हो चुकी हैं और वे अनुभव हैं अपना देश छोड़ देने से होने वाले मानसिक स्‍पंदन... शिखा जी का साहित्यिक खजाना हमसे ज्‍यादा है.... हम बहुत कुछ पा सकते हैं उनके लेखन से...हम इस सुमितिय प्रयास का आदर करते हैं...

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

शिखा जी का परिचय तो उन‍का लेखन ही है। आपने इंग्‍लैण्‍ड के बारे में सटीक लिखा है।

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

इस रोचक वार्ता को पढ़कर पेट में हँसी से स्पंदन हो रहा है .....शिखा जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

रोचक प्रस्तुतीकरण...बहुत सुंदर..आभार !

अनुपमा पाठक ने कहा…

स्पंदन यूँ ही स्पंदित करता रहे लेखन के संसार को!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

स्पंदन पर पढ़ते रहते हैं...... अच्छा लगा शिखा जी से मिलकर

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन

Padm Singh ने कहा…

संक्षिप्त परन्तु रोचक परिचय... उँगलियों मे स्पन्दन शुरू होने की परिणति मै कुछ खतरनाक समझ रहा था... अच्छा हुआ कोई दुर्घटना नहीं हुई आपके साथ :)

अच्छा लगा शिखा जी का परिचय पा कर

sonal ने कहा…

shikha jee ko jaankar achha laga

Pallavi saxena ने कहा…

शिखा जी के लेखन से पहले से परिचित हूँ अच्छा लगा यहाँ आज आपकी यह पोस्ट पढ़कर।

विनोद पाराशर ने कहा…

विदेश में रहते हुए भी,हिंदी में लेखन जारी रखना-शिखा जी! अपने देश,अपनी संस्कृति से जुडे रहने का यह सबसे उपयुक्त माध्यम हॆ.भाई सुमित जी,आपका भी धन्यवाद!आप हिंदी के सिपाईयों को न केवल देश से,अपितु विदेशों से भी खोज-खोज कर ला रहे हॆं.

अर्यमन चेतस पाण्डेय ने कहा…

hmm...interesting!! ye interview typically aapka hi ho sakta hai.. :D

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