आजकल बहुत परेशान हैं वो और काफी नाराज भी। वो चिंता में डूबकर विचार कर
रहे हैं कि आखिर क्यों उन्हें शिकार बनाकर उन पर शिकंजा कसा रहा है। अभी तक तो
कितने निश्चिन्त थे वे सब। न कोई रोक-टोक थी और न ही कोई बंधन था। बस उनकी मनमर्जी
चलती थी। प्यार के नाम पर एक तो अय्याशी करने का मौका मिलता था ऊपर से ये सब करने
के बदले जन्नत का दरवाजा खुलने का वादा भी। इस नेक काम में उन्हें बड़े-बड़ों का
पूरा समर्थन और संरक्षण भी प्राप्त था। जिंदगी कितने मजे से बीत रही थी और अचानक
यूँ मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें रोमियो बता उनके खिलाफ बाकायदा अभियान चलाकर
उनके प्रेम के धंधे को दफ़न करने की गहरी साजिश रची गयी। इस बार उनके आकाओं की
चिल्ल-पौं भी कुछ काम न आ सकी। उनके शुभचिंतक चीखते रहे, चिल्लाते रहे और वो रोमियो को अपने जाल में फँसाते
रहे। वैसे तो ये लोग पश्चिमी संस्कृति को पानी पी-पीकर कोसते रहते हैं, पर अभियान
चलाया तो पश्चिम के प्रेमी रोमियो के नाम पर। क्या मजनू और राँझे के प्यार में कोई
कमी थी? क्या
उन्होंने प्यार की खातिर क़ुरबानी नहीं दी थी? कम से कम मजनू और राँझे के नाम पर अभियान
चलता तो उन पर सांप्रदायिक होने का दोष तो मढ़ा जा सकता था। पर नहीं उनके आदर्श तो
पश्चिमवाले जो ठहरे। ये सोचते हुए वो अपने माथे पर चन्दन का तिलक लगाते हैं, अपने हाथों में पवित्र कलावा बाँधते
हैं, हिन्दू
देवी-देवताओं के लॉकेट गले में टाँगते हैं और पूरी तैयारी के साथ मँहगे कपड़े पहनकर
अपनी फंडेड चमचमाती बाइक पर किक मारकर अपने इश्क़ मिशन पर रवाना हो जाते हैं। ये
देखकर रोमियो-जूलियट, लैला-मजनू, हीर-राँझा प्रेम में क़ुर्बान हुए बाकी
प्रेमी-प्रेमिकाओं संग मुस्कुराते हैं। पर उनकी मुस्कराहट में दुःख भरी उदासी है। वो
आधुनिक रोमियो को धिक्कार रहे हैं। पर आधुनिक रोमियो इन सब बातों से बेपरवाह हैं।
उन्हें तो बस उनके प्यार में फँसी हुईं मुर्गियाँ दिखाई दे रही हैं जिनको हलाल
करना ही उनका मकसद है। उनका इंतज़ार उनके मकड़जाल में फँसी हुईं अकलमंद आधुनिक जुलियटें
पलकें बिछाकर कर रही हैं। उनके संग-संग अपने-अपने लट्ठ को तेल पिलाकर तैयार कर रोमियो
की राह तकते हुए एंटी रोमियो स्क्वैड के सभी जवान बार-बार एक ही सवाल कर रहे हैं 'रोमियो! तुम कब आओगे?"
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
कार्टून गूगल से साभार