प्यारी किस
सादर चुम्बनस्ते!
मन में आज बार- बार यह प्रश्न कौंध रहा है, कि आखिर तुम्हारी उत्पत्ति कब और कैसे हुई होगी? हो न हो तुम्हारा जन्म हृदय में उमड़ने वाली प्रेम की कोमल व पवित्र भावनाओं के संग हुआ होगा । मानव संतति की उत्पति की प्रक्रिया का प्रथम चरण तो तुमसे ही आरंभ हुआ होगा । जब माता-पिता अपनी संतान को स्नेह प्रदान करने हेतु तुम्हारा प्रयोग करते होंगे, तब तो इस धरा पर तुमसे पवित्र कोई नहीं होता होगा । तुम तब भी पवित्रता के आँचल में समा जाती होगी जब दो जीवन साथी आलिंगनबद्ध होकर प्रेम में तल्लीन हो तुम संग स्वप्नलोक में खो जाते होंगें । पर इन दिनों कुछ लोगों के सिर पर जाने कौन सा भूत सवार हो रखा है, कि वो तुम्हारे पावन रूप की बजाय दूषित रूप का प्रचार-प्रसार कर उसे उचित ठहराने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं और तुम्हें पर्दे से बाहर लाकर तुम्हारे पावन रूप को अपवित्र करने पर तुले हुए हैं । अब ये तो तुम भी भली- भांति जानती होगी कि पार्कों, होटलों व मॉलों में वासना का नंगा नाच करते हुए जब तुम्हारा दुरूपयोग किया जाता है तो दुख तो तुम्हें भी होता होगा । प्रेम कोई दिखावे की वस्तु थोड़े ही है । प्रेम तो अनुभव करने की चीज होती है । सार्वजनिक रूप से प्रेम दिखाना प्रेम कम फूहड़ता अधिक होती है और यह फूहड़ता इन दिनों देश में जगह-जगह देखने को मिल रही है । इस फूहड़ता को अपना हथियार बनाकर भारतीय संस्कृति का विध्वंश करने की निरंतर साजिश चल रही है, जिसके लिए कंधा बनने का कार्य कर रहे हैं आधुनिकता के नशे में टुल्ल हो रखे देश के तथाकथित बुद्धिमान युवा जन । ऐसा भी संभव हो सकता है कि इन युवाओं का जन्म भी इनके माता- पिता के किसी फूहड़ प्रयास के द्वारा ही हुआ हो । तभी फूहड़ता को प्रेम की संज्ञा देकर सार्वजनिक रूप से तुम्हारा दुरूपयोग कर इस फूहड़ता अभियान में वृद्धि करने में ये सब लगे हुए हों । जब ये भटके हुए युवा अपनी संस्कृति को भस्म करने की पुरजोर कोशिश में लगे होते हैं, तो वामपंथ व पाश्चात्य सभ्यता मिलकर प्रसन्नता के गीत गा रहे होते हैं । परंतु इन कुत्सित मानसिकता वाले युवाओं को यह ज्ञात नहीं है कि उनसे अधिक संख्या उन लोगों की है जो अपनी भारतीय संस्कृति से बहुत प्रेम करते हैं तथा इसकी रक्षा करने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं और इस प्रकार के प्रत्येक अपवित्र प्रयास को विफल कर सकने की क्षमता रखते हैं ।
इन मूर्ख युवाओं को ईश्वर सद्बुद्धि दे
इसी कामना के साथ तुम्हारे पावन रूप को नमन करते हुए सादर प्रणाम...
इस व्यंग्य को सुमित प्रताप सिंह के स्वर में सुनने के लिए कृपया नीचे दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करें...
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