सादर ब्लॉगस्ते!
दोस्तो आज आपको ले चलता हूँ हिमाचल प्रदेश के मनमोहक स्थान मंडी शहर में| मंडी को प्राचीन काल में मांडव नगर तथा सहोर के नाम से जाना जाता था| मंडी हिमाचल प्रदेश का एक मुख्य शहर है| यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 143 किलोमीटर उत्तर की ओर बसा हुआ है| मंडी शहर की सुखदायक गर्मियाँ (दिल्ली की तरह दुखदायक नहीं) और ठंडी सर्दियाँ (हमारी दिल्ली जैसी ठंडी हैं क्या?) प्रसिद्द हैं | यह हिमाचल प्रदेश के बड़े शहरों में से एक है | इस शहर में नारी जाति के लिए इतना स्नेह और सम्मान है कि यहाँ लिंगानुपात अधिकतम (1013 महिलाएं प्रति हज़ार पुरुषों पर) है|
दोस्तो आज आपको ले चलता हूँ हिमाचल प्रदेश के मनमोहक स्थान मंडी शहर में| मंडी को प्राचीन काल में मांडव नगर तथा सहोर के नाम से जाना जाता था| मंडी हिमाचल प्रदेश का एक मुख्य शहर है| यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 143 किलोमीटर उत्तर की ओर बसा हुआ है| मंडी शहर की सुखदायक गर्मियाँ (दिल्ली की तरह दुखदायक नहीं) और ठंडी सर्दियाँ (हमारी दिल्ली जैसी ठंडी हैं क्या?) प्रसिद्द हैं | यह हिमाचल प्रदेश के बड़े शहरों में से एक है | इस शहर में नारी जाति के लिए इतना स्नेह और सम्मान है कि यहाँ लिंगानुपात अधिकतम (1013 महिलाएं प्रति हज़ार पुरुषों पर) है|
अब मंडी की ऐतिहासिकता बात करें तो मंडी राज्य की स्थापना बाहु सेन ने 1200 ईसवी में की थी, किन्तु अजबर सेन ने ऐतिहासिक रूप से मंडी शहर की स्थापना 1526 ईसवी में की| वर्तमान मंडी जिला दो राज्यों मंडी राज्य और सुकेत (सुन्दर नगर) के मिलन से 15 अप्रैल, 1948 में, जब हिमाचल प्रदेश राज्य की स्थापना हुई, आस्तित्व में आया (आप सबका ज्यादा दिमाग तो नहीं खा रहा हूँ?)| आज हम मिलने जा रहे हैं इसी मंडी शहर में डटी हुईं सुश्री सुमन कपूर 'मीत' से
| अब जाने किसकी किस्मत में उनका मीत बनना लिखा है? (आप तो अपना ख्याल छोड़ ही दें) किन्तु सुमन जी ने हिंदी को अपनी माँ और ब्लॉग को अपना मीत बना लिया है|
सुमन जी के बारे में क्या कहूँ ...हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत शहर मण्डी में एक साधारण परिवार में जन्म लिया | माता पिता ने बहुत अच्छी शिक्षा दिलवाई कि आज अपने पैरों पर खड़ी होने के काबिल बनी हैं (आप और हम कब बनेंगे? काबिल) और सरकारी सेवा में कार्यरत हैं| विज्ञान की छात्रा होते हुए भी हिंदी और साहित्य की तरफ रुझान था | मन के जज्बातों को कलम से पन्नों पर लिखने की कोशिश करती हैं | पहले लेखन डायरी के पन्नों तक ही सीमित था करीब एक साल पहले अपने पहले ब्लॉग "बावरा मन" से ब्लॉग जगत में कदम रखा और कुछ समय बाद दूसरा ब्लॉग "अर्पित सुमन" शुरू किया | ब्लॉग जगत से प्रोत्साहन मिला और बस कारवां चल पड़ा शब्द पथ पर .......
इन्हें इनकी कविता की इन पंक्तियों से ही पहचानने का प्रयास करते हैं..
पूछी है मुझसे मेरी पहचान;
भावों से घिरी हूँ इक इंसान;
चलोगे कुछ कदम तुम मेरे साथ;
वादा है मेरा न छोडूगी हाथ;
जुड़ते कुछ शब्द बनते कविता व गीत;
इस शब्दपथ पर मैं हूँ तुम्हारी “मीत”!!
सुमित प्रताप सिंह- सुमन जी कैसी हैं आप? (सुमन जी के मीत के बारे में पूछूँ कि नहीं?)
सुमन कपूर 'मीत'- सुमित जी मैं ठीक हूँ. आप कैसे हैं?
सुमित प्रताप सिंह- गूगल बाबा के आशीर्वाद से हम भी ठीक-ठाक हैं. कुछ प्रश्न लाया हूँ आपके लिए?
सुमन कपूर 'मीत'- (अपनी हँसी रोकते हुए. काश इस समय वंदना गुप्ता जी और भैया अजय कुमार झा होते तो यह क्षेत्र ठहाकों से गूँज जाता) गूगल बाबा का आशीर्वाद सभी ब्लॉगरों पर बना रहे (इस सरकार के राज में तो मुश्किल सा लग रहा है) यही प्रार्थना करते हुए अपने प्रश्न पूछ डालिए.
सुमित प्रताप सिंह- जी अवश्य ! आपको ब्लॉग लेखन नामक बीमारी कब, कैसे और किसके माध्यम से लगी?
सुमन कपूर 'मीत'- जनवरी 2010 मेरे एक दोस्त के प्रोत्साहन पर मैंने अपना पहला ब्लॉग बावरा मन शुरू किया |
सुमित प्रताप सिंह- किसी भी रचना को अच्छा सिद्ध करने हेतु कितनी टिप्पणियाँ काफी हैं? एक या फिर सौ?
सुमन कपूर 'मीत'- किसी भी रचना को सिद्ध करने के लिए टिप्पणियों की संख्या निर्भर नहीं करती बल्कि टिप्पणी में उस रचना पर की गई समीक्षा निर्भर करती है | लेखन तब सार्थक हो जाता है जब उसका लिखा पाठक के मन तक पहुँच जाता है | कुछ ब्लोग्स पर बहुत अच्छी रचनाएँ है पर टिप्पणी नहीं है, इससे ये तो नहीं मान सकते कि वो रचना अच्छी नहीं है | जो पुराने ब्लोगर्स हैं उनकी टिप्पणियां ज्यादा होती हैं क्योंकि उन्हें लंबे समय से पढ़ा जा रहा है, नए ब्लोगर्स को स्थापित होने में समय लगेगा पर रचनाएँ उनकी भी बहुत अच्छी हैं पर टिप्पणियां कम |
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
सुमन कपूर 'मीत'- मैंने अपनी पहली रचना 1993 में लिखी उस इंसान के लिए जिसे मैं अपनी जिंदगी में सिर्फ दो बार मिली हूँ | मुकेश अंकल जिनसे बिछडने का मुझे बहुत दुःख हुआ था और वो मेरी कलम में उतर आया था मेरी पहली रचना के रूप में न जाने क्यूँ |
सुमित प्रताप सिंह- आपको लगता है कि आपका लिखना ज़रूरी है? वैसे आप लिखती क्यों हैं?
सुमन कपूर 'मीत'- मैं अपने मन के लिए लिखती हूँ | सारा खेल मन का ही होता है |
कुछ क़तरे हैं
ये जिन्दगी के
जो जाने अनजाने
बरबस ही
टपकते रहते हैं
मेरे मन के आंगन में................
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
सुमन कपूर 'मीत'- जो मन में विचार आ जाये उस पर लिख लेती हूँ |
(अमां ये क्या बात हुई?)
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
सुमन कपूर 'मीत'- इस शिक्षित दुनिया को एक कवि क्या सन्देश देगा ...बस यही कहना चाहती हूँ कि आज कि इस भागदौड वाली जिंदगी मे हर इंसान खुद से दूर चला गया है ..भावनाएं बस नाम भर की रह गई हैं ... मानव ह्रदय अटूट प्रेम से भरपूर है ....उसे मशीनी ना बनने दें ...
(जो मशीन बन गए हैं उन्हें कैसे सुधारें?)
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा हिंदी का विकास" इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगी?
सुमन कपूर 'मीत'- ये बात बिल्कुल सही है कि ब्लॉग के जरिये हिन्दी का बहुत विकास हुआ है |ब्लॉग जगत ने नए कवियों और लेखकों को एक अलग पहचान दी है | उन्हें एक ऐसा मंच दिया है जिनसे उनकी छिपी प्रतिभा दुनिया के सामने आई है | लोग हिंदी की तरफ विमुख हों रहें थे पर ब्लॉग के जरिये एक और जहां उनके लेखन को मंजिल मिली वही दूसरी और हिन्दी को बढ़ावा भी मिला |
(अचानक ही सुमन 'मीत' जी प्रेम से कम्प्यूटर महाराज की ओर देखने लगीं हम समझ गए कि अपने मीत से मिलने का उनका समय हो गया है... उन्हें उनके मीत के साथ छोड़ चल दिए किसी और से जय सिया राम करने)
सुमन कपूर 'मीत' के मीत से मिलना हो तो पधारें http://www.sumanmeet.blogspot.in/ पर...