दफ्तर में अपने काम में व्यस्त था, कि अचानक फोन की घंटी बजी. दूसरी ओर कोई स्पेशल ब्रांच का फोन नंबर माँग रहा था. मैंने सोचा कि शायद कोई मुसीबत का मारा होगा, सो ज्यादा पूछताछ करने की बजाय दिल्ली पुलिस की फोन डायरी में से खोजकर स्पेशल ब्रांच का फोन नंबर उसे बता दिया.
कुछ देर बाद उस व्यक्ति का फिर से फोन आया. उसने जो कुछ बताया उससे मैं सकते में आ गया. उसने बताया कि वह मुंबई में रहता है और उसके यहाँ किरायेदार के रूप में इस समय छः नौजवान ठहरे हुए हैं. उनके पास हथियार भी हैं. चुपचाप उन सबकी बात सुनने पर पता चला, कि उनका दिल्ली में हुई एक डकैती और एक हत्याकांड में हाथ भी रहा है. उसने निवेदन किया मैं उसे किसी ऐसे विश्वस्त पुलिसवाले का फोन नंबर दे दूँ, जो मुंबई आकर उन्हें गिरफ्तार कर सके.
मैंने कहा कि मुंबई पुलिस को इस बारे में क्यों नहीं बताते तो वह बोला कि मैंने इस बारे में सोचा था और अपने एक दोस्त से इस बारे में राय भी ली थी, लेकिन उसने बताया, कि मेरे किरायेदारों की जान-पहचान मुंबई पुलिस में है. कहीं मैंने मुंबई पुलिस में शिकायत की और उन लड़कों को पता चल गया, तो मेरी जान तो गई समझो.
“ठीक है मैं कुछ करता हूँ.” इतना कहकर मैंने फोन काट दिया.
मैंने कुछ देर सोच-विचार किया फिर अपने पिता जी को फोन मिलाया. वो शायद कहीं व्यस्त थे, सो मेरा फोन न उठा सके. इसके बाद मैंने अपने बड़े भाई से संपर्क साधा और उसे इस बारे में सूचित किया. उसने स्पेशल ब्रांच में तैनात सब इंस्पेक्टर गजराज सिंह को इस घटना के विषय में बताया. अगले दिन गजराज सिंह का फोन आया. उन्होंने कहा कि वो मेरे दफ्तर आ रहे हैं. गजराज सिंह जब दफ्तर में पहुँचे तो मैंने उन्हें विस्तार से मुंबई से फोन करनेवाले इंसान, जिसने अपना नाम रोहित बताया था, के बारे में व उसके द्वारा दी गई सूचना के बारे में बताया. गजराज सिंह ने पूरी डिटेल लेकर अगले दिन तक इंतज़ार करने के लिए कहा.
अगले दिन सुबह ही उनका फोन आया. उन्होंने बताया कि रोहित द्वारा बताई बात बिलकुल ठीक है. दिल्ली में पिछले साल डकैती पड़ी थी और उसके बाद पुलिस के एक मुखबिर की गुप्तांग काटकर मार डालने की घटना भी घटी थी. उन्होंने कहा कि मैं रोहित से बात करूँ कि वह किसी भी तरह उन बदमाशों को बहला-फुसलाकर दिल्ली ले आये.
मैंने जब यह बात रोहित को बताई तो वह बोला कि इस समय उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और छः लोगों के साथ रेल में सफर करने के लिए कम से कम तीन हजार रूपये की जरूरत पड़ेगी. मैंने यह बात गजराज सिंह को बताई तो उन्होंने ने कहा कि रोहित से कहो कि वह पता बता दे. उसे उसके घर पर रुपये भिजवा दिए जायेंगे. इस काम के लिए उन्होंने मुंबई में रहनेवाले अपने एक मित्र को कह भी दिया. रोहित का शाम को फोन आया कि गजराज सिंह के मित्र से उसने बात की थी, लेकिन वह व्यस्तता का हवाला देकर रुपयों को वहीं आकर लेने को कह रहा है, जो कि बहुत दूर है. उसने आग्रह किया कि यदि रुपये उसके बैंक के खाते में जमा करवाए जा सकें तो वह रेल का टिकट खरीद सकता है और उन बदमाशों के साथ दिल्ली की ओर रवाना हो सकता है. बहरहाल उसकी यह माँग भी पूरी कर दी गई.
शाम के समय रोहित का फोन आया कि उसने दिल्ली आने की टिकट खरीद ली हैं और वह अगले दिन सुबह की ट्रेन से उन बदमाशों के संग दिल्ली को रवाना होगा. उसने ट्रेन की बोगी नं. और सीट नं. लिखवा दिए. मैंने गजराज सिंह को सारी परिस्थिति बताकर आगे की योजना पूछी तो वो बोले कि मैं तैयार रहूँ क्योंकि परसों बदमाशों को पकड़ने के लिए होनेवाली संभावित मुठभेड़ में मैं भी उनके साथ रहूँगा.
अब आगामी मुठभेड़ के लिए मैंने तैयारी आरम्भ कर दी. शाम को डी.सी.पी. साहब समय से घर रवाना हो गए. मैंने दफ्तर बंद किया और वहीं कुछ दूर स्थित जिम में गया और कसरत की व थोड़ी-बहुत मुक्केबाजी करके अपने मुक्के सटीक किये. इसके बाद थाने के शस्त्र भंडार में जाकर रिवाल्वर व पिस्तौल (खाली) चलाने का अभ्यास किया. शस्त्र भंडार में मेरे रूप में शायद कोई पहली बार इस तरह अभ्यास करने आया था. इसी कारण वहाँ तैनात पुलिस स्टाफ बहुत खुश हुआ और मुझे अच्छी तरह हथियारों का अभ्यास करवाया.
रात को घर लौटते-लौटते देर हो गई सो खा-पीकर सो गया. सुबह उठा तो रोहित का फोन आया. उसने बताया कि वह उन बदमाशों के साथ ट्रेन में बैठ गया है और कल दोपहर तक दिल्ली पहुँच जाएगा. मैं मुठभेड़ होने के बारे में सोचकर ही रोमांचित हो रहा था. अब तक तो मैंने अखबारों या टी.वी. पर ही मुठभेड़ की खबर पढ़ी और सुनी थी लेकिन अब तो मैं भी किसी मुठभेड़ का हिस्सा बनने जा रहा था.
फिल्मों में अक्सर पुलिस और बदमाशों की मुठभेड़ देखकर सोचा करता था कि कभी मैं भी मुठभेड़ में किसी बदमाश को गोली मारकर ढेर करूँगा. चलो आखिर वह पल जीवन में आ ही गया. फिर दिमाग में सवाल उठा कि मुठभेड़ में क्या केवल बदमाश ही मारे जाते हैं? मुठभेड़ में गोलीबारी दोनों ओर से होती है या तो बदमाश मरते हैं या फिर पुलिसवाले और या फिर दोनों ही. इसका मतलब कि कल होनेवाली मुठभेड़ में मेरी जान भी जा सकती है? फिर सोचा कि इस देश की माटी हमारे लिए माँ जैसी ही तो है और अगर अपनी इस धरती माँ और समाज के लिए यह तुच्छ जान चली भी जाए तो यह तो सौभाग्य की बात ही होगी. अगर यह मेरा आखिरी दिन है तो आखिरी ही सही. चलो आज इसे जी भरके जिया जाए.
अब मैं उस दिन को दिल से जीना चाहता था. उस दिन मैंने अपने भूले-बिसरे सभी दोस्तों को फोन करके उनके हाल-चाल लिए. संगीत का आनंद लिया और अपनी मोटर साइकिल से जमकर सैर की. रात को समय से सो गया और इतनी जमकर नींद ली कि उठते-उठते सूरज निकल आया. नहाया-धोया, खाया-पीया और मुठभेड़ में जाने को तैयार हो गया. जाते समय माँ के चरणों को छुआ. हो सकता था कि उन पावन चरणों को छूने का फिर से मौका मिलता ही नहीं.
निश्चित समय पर मैं रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया. गजराज सिंह अपने मुठभेड़ में सिद्धहस्त अन्य पुलिसवाले साथियों के साथ कुछ समय बाद ही वहाँ पहुँच गए. वे सभी देखने में साक्षात् यमदूत प्रतीत हो रहे थे. शायद मृत्यु से निरंतर भेंट करते हुए उन्होंने यमराज से सेटिंग कर ली थी, सो मृत्यु उनके आस-पास भी नहीं फटकती थी. वे सभी मुझे अविश्वास से देख रहे थे जैसे कह रहे हों कि यह छोकरा यहाँ कर रहा है? गजराज सिंह ने प्लान समझाया कि उन बदमाशों को कार में बिठाकर किसी गेस्ट हाउस में ले जाकर धर पकड़ा जाए. उन को बहलाकर गेस्ट हाउस ले जाने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई.
हम सभी हथियार कपड़ों के नीचे छुपाकर रेलवे स्टेशन के भीतर बढ़ चले. जब हम स्टेशन पर पहुँचे तो वहाँ खड़ी ट्रेन के शीशे में अपना चेहरा निहारा तो देखा मेरी आँखों में रक्त उतर आया था और देश और समाज के दुश्मनों से दो-दो हाथ करने को मेरी बाजुएँ फडकने लगीं. मैं, गजराज सिंह और हमारे दो साथी वहीं स्टेशन पर रुक गए तथा हमारे दो जवान उस स्टेशन से एक स्टेशन पहले ही ट्रेन में चढ़कर बदमाशों की घेराबंदी करने के लिए नियुक्त किये गए. हम स्टेशन पर ट्रेन के आने का इंतज़ार करने लगे. रोहित का फोन नहीं मिल पा रहा था. पिछले स्टेशन पर ट्रेन पहुँच चुकी थी और जिन दो जवानों को पिछले स्टेशन से ट्रेन में चढ़ने और रोहित व उसके साथ आ रहे बदमाशों की घेराबंदी करने के लिए भेजा गया था. उन्होंने फोन करके बताया कि उस प्रकार के व्यक्ति उस बोगी की उन सीटों पर नहीं हैं. गजराज सिंह ने आरक्षण केन्द्र में फोन करके रोहित द्वारा बताई गईं सीटों की डिटेल पूछी तो पता चला कि वो सीटें किसी दूसरे परिवार के नाम पर आरक्षित थीं, जिनमें चार पुरुष और दो महिलाएँ थीं. कुछ समय पश्चात जिस स्टेशन पर हम रोहित और बदमाशों पलकें बिछाए प्रतीक्षा कर रहे थे ट्रेन आ धमकी. उस ट्रेन से उतरकर हमारे दोनों जवान भी आ पहुँचे. हमें रोहित नामक व्यक्ति ने मूर्ख बना दिया था. हम सभी बैरंग वापस लौट चले. इस प्रकार मुठभेड़ शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई.
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली,भारत