गुरुवार, 13 जून 2024

वरिष्ठ कार्यकर्ता की सौगंध


     ब तक इलेक्शन थे तब तक भागजा पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता जिले सिंह को सांस लेने की फुर्सत नहीं थी। अपनी पार्टी के हर टुच्चे से टुच्चे काम की जिम्मेवारी उनके ही जिम्मे थी। उनका सिद्धांत है घर का जरूरी से जरूरी काम चाहे हो न हो पर पार्टी का कोई काम नहीं छूटना चाहिए। सालों-साल से वे इसी सिद्धांत का कड़ाई से पालन करते आ रहे थे। पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता उनकी पार्टी भक्ति से बहुत प्रभावित था और इसी कारण उनका बहुत सम्मान करता था। उनके मन-मस्तिष्क पर पार्टी भक्ति इतनी अधिक हावी थी कि एक बार उनके बचपन के लंगोटिया यार व सफा पार्टी के जिला संयोजक नफे सिंह ने उनसे उनकी पार्टी की बुराई करते हुए कह दिया कि कब तक अपनी पार्टी के लिए दरी बिछाते रहोगे कभी पार्टी किसी छोटे-मोटे चुनाव में अपने लिए टिकट का जुगाड़ भी कर लो। बस इतनी सी बात पर जिले सिंह का खून खौल उठा। हालांकि उन्होने अपने लंगोटिया यार का खून तो नहीं किया पर उससे हमेशा के लिए कट्टी कर की। 

     एक रात जिले सिंह राजनैतिक रैली में पूरे दिन मेहनत करने के बाद अधिक थकान होने के कारण बिस्तर पर लेटे हुए कराह रहे थे कि तभी उनकी धर्मपत्नी ने उनसे शिकायती लहजे में कहा, "लगता है आपकी ज़िंदगी अपनी पार्टी के लिए मुफ्त में ही शरीर तोड़ने में कटेगी।" जिले सिंह गुर्रा कर उससे बोले, "क्या फालतू बकवास कर रही है?" "फालतू बकवास नहीं कर रही बल्कि सही बोल रही हूँ। अब तो आस-पड़ोस के लोग भी ताने मारने लगे हैं।" पत्नी उदास होते हुए बोली। जिले सिंह ने मामले की गंभीरता को समझा और गुर्राना छोड़ अपनी पत्नी को पुचकारते हुए उससे पूछा, "क्या ताना मारा? हमें भी तो बता।" "लोग कहते हैं नालायक से नालायक कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी से टिकट लेकर अपनी किस्मत बना ली पर आप के हिस्से में तो बस पार्टी के काम का बोझ आया।" पत्नी तुनक कर बोली। पत्नी की बात सुनकर जिले सिंह का खून खौल उठा पर उन्होंने समझदार पतियों द्वारा बनायी कहावत 'पत्नी से बहस, जीवन तहस-नहस' को याद किया और फिर उन्होंने नाजुक स्थिति को ठंडा पानी पीकर भली-भाँति संभाला। पत्नी तो अपनी बात कहकर शांति के साथ सो गयी लेकिन शांति की सखी अशांति जिले सिंह के मस्तिष्क में घर कर गयी और उन्हें उस रात नींद नहीं आयी। पूरी रात उनके मन-मस्तिष्क में पत्नी द्वारा कही गयी बातें ही गूँजती रहीं।  

     अगले दिन जिले सिंह ने बिना ये सोचे-समझे कि उनके जैसे कार्यकर्ताओं का काम केवल पार्टी की सेवा करना है और टिकट पाने का अधिकार सिर्फ पार्टी के नेताओं के पुत्र-पुत्री और सगे-सबंधियों तथा सिनेमा व खेल जगत के चर्चित सितारों को ही है, जाकर अपनी पार्टी के कार्यालय में जाकर घोषणा कर दी कि अब वे पार्टी के कार्यक्रमों में दरी बिछाने के कार्य तक ही सीमित नहीं रहेंगे। अब उन्हें भी अब तक पार्टी के लिए किए गए कार्यों का ईनाम चाहिए। इस संबंध में उन्होंने पार्टी के जिलाध्यक्ष से संपर्क साधा और निगम पार्षद के होने वाले चुनाव के लिए टिकट की मांग कर डाली। जिलाध्यक्ष ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि अभी उनसे वरिष्ठ कार्यकर्त्ता कतार में हैं। उनका नंबर आएगा तो उन्हें उनके परिश्रम का फल अवश्य दिया जायेगा। जिले सिंह ने सोचा कि निगम पार्षद का टिकट तो बाद में मिलता रहेगा क्यों न अपने लड़के के लिए कोई छोटी-मोटी ठेकेदारी का ही जुगाड़ कर लिया जाये। इस इच्छा के साथ उन्होंने स्थानीय विधायक से भेंट की पर विधायक अपने सगे-संबंधियों और चमचों के बीच सरकारी ठेकों की बन्दर बाँट पहले ही कर चुका था। अब जिले सिंह ने अपने जिले के सांसद से गुहार लगाई और अपने बेटे के लिए किसी छोटी-मोटी सरकारी नौकरी के लिए उनका चरण वंदन करते हुए निवेदन कर डाला। पर सांसद के यहाँ से भी उनके हिस्से में निराशा ही हाथ आयी। सभी ओर से निराश होने के पश्चात् जिले सिंह ने अपनी पार्टी के विरुद्ध विद्रोह की पताका लहरा दी। जिले सिंह का यह विद्रोह पार्टी के पदाधिकारियों को रास न आया और उन्हें तत्काल विधिवत लात मार कर पार्टी से निष्काषित कर दिया गया। इस घटना के बाद जिले सिंह के ज्ञान चक्षु ऐसे खुले कि उन्होंने राजनीति से एक कोस की दूरी बना ली। इसके बाद सबसे पहले उन्होंने अपने लंगोटिया यार नफे सिंह के घर जाकर उससे हाथ जोड़कर अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी और उसके बाद अपने घर पहुंच कर अपनी पत्नी के सिर पर हाथ रखकर सौगंध खायी कि भविष्य में उनके लिए उनके परिवार और परिवार के सदस्यों से महत्वपूर्ण कोई और नहीं होगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

कार्टूनिस्ट: श्याम जगोता 

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