- भाई नफे!
- हाँ बोल भाई जिले!
- आज यूँ पेट पर हाथ फेरते हुए कहाँ से आ रहा है?
- भाई आज जेल की रोटी खाकर आ रहा हूँ।
- जेल की रोटी खाकर! भला तेरे जैसे शरीफ इंसान ने कौन सा अपराध कर दिया जो जेल की रोटी खानी पड़ गयी?
- कवि सम्मेलन में जाने का अपराध।
- भाई मैं कुछ समझा नहीं।
- अरे भाई आज तिहाड़ जेल में कवि सम्मेलन था।
- अच्छा तो ये बात थी।
- हाँ भाई दिल्ली पुलिस के युवा रचनाकार मनीष मधुकर व पीसमेकर पत्रिका वाले संतोष कुमार सरस के संयोजन में तिहाड़ जेल में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। दिल्ली पुलिस के एक युवा रचनाकार के मधुर निमंत्रण पर दिल्ली पुलिस के दूसरे युवा रचनाकार वहाँ पहुँचे और उनके साथ मैं भी जा धमका।
- दूसरे रचनाकार बोले तो अपने कलमकार मित्र सुमित के तड़के वाले सुमित प्रताप सिंह।
- बिलकुल ठीक पहचाना भाई।
- अच्छा तो अब ये बता कि वहाँ क्या-क्या हुआ?
- तिहाड़ जेल नंबर 1 के गेट नंबर 3 के बाहर मनीष मधुकर व संतोष कुमार सरस पूरी कवि मंडली के संग हमारी प्रतीक्षा करते हुए मिले। सभी साथियों के आ जुटने के बाद गहन तलाशी के बाद हमारा जेल के भीतर प्रवेश हुआ। जेल के भीतर सुपरिटेंडेंट सुभाष चन्दर साहब ने अपने कार्यालय में हम सभी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया।
- अच्छा फिर क्या हुआ।
- फिर सुमित प्रताप सिंह ने सावधान होकर सुपरिटेंडेंट साहब को अपनी पुस्तक सावधान! पुलिस मंच पर है भेंट की जिसे पाकर सुपरिटेंडेंट साहब ने उसे तिहाड़ जेल की लाइब्रेरी में रखने की घोषणा कर डाली।
- अरे वाह ये तो अच्छी खबर है। अब तिहाड़ के कैदी भी इस पुस्तक के साथ सावधान हुआ करेंगे। अच्छा फिर आगे क्या हुआ।
- फिर सुपरिटेंडेंट साहब ने हमारी पूरी मंडली को जेल की सैर करवाई।
- अच्छा तो वहाँ क्या-क्या देखने को मिला?
- जैसा हम जेल के बारे में सुनते हैं उससे अलग वहाँ का जीवन दिखाई दिया।
- कैसा जीवन भाई?
- व्यस्त जीवन, मस्त जीवन।
- वो कैसे?
- तिहाड़ जेल प्रशासन ने जेल के कैदियों के जो व्यवस्था कर रखी है उससे साक्षात्कार हुआ। कैदियों को शिक्षा प्रदान करनेवाली क्लास में हम गए। वहाँ हमें देखने को मिला कि कैदियों को उर्दू, हिंदी व अंग्रेजी भाषाएं पढ़ाई जा रही थीं। गणित की क्लास में कैदी गुणा, भाग, जमा व घटा से नूरा-कुश्ती करते मिले। जहाँ कंप्यूटर की क्लास में कंप्यूटर द्वारा उन्हें तकनीकी का ज्ञान दिया जा रहा था, वहीं ई कॉमर्स और मैनेजमेंट की एडवांस क्लासें कैदियों को जेल से बाहर निकलने के बाद के सुनहरे भविष्य के सपने दिखा रही थीं।
- अरे वाह कैदियों की शिक्षित करने की जेल में भरपूर व्यवस्था हो रखी है।
- हाँ भाई शिक्षित करने के साथ-साथ सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने की भी व्यवस्था है।
- वो कैसे भाई?
- जेल में कैदियों द्वारा खुद साग-सब्जी व फलों को उगाया जाता है। जेल की मशीनों व कलपुर्जों को जहाँ ठीक करने की व्यवस्था है, वहीं कूलर-पंखों की मोटर, कूलर पंप व बल्ब निर्माण करने के बाद उन्हें जेल से बाहर बिक्री के लिए सप्लाई भी किया जाता है।
- मतलब कि जेल आत्मनिर्भर बनते हुए अपने बाशिंदों को सक्षम भी बना रही है।
- हाँ बिलकुल ठीक पहचाना। जेल में सिलाई-कढ़ाई, चित्रकारी इत्यादि सबकुछ सिखाया जाता है और इसके लिए जेल प्रबंधन साधुवाद का पात्र है।
- हाँ भाई बिलकुल साधुवाद का पात्र है। अच्छा फिर कवि सम्मेलन कब हुआ?
- जेल भ्रमण के बाद सुपरिटेंडेंट साहब ने हमें जेल की रोटी खाने के लिए आमंत्रित किया।
- तो जेल की रोटी कैसी लगी?
- बहुत बढ़िया लगी। रोटी के साथ पनीर और मिक्स वेजिटेबल का आनंद लिया, दाल-भात, सलाद और करारे पापड़ का मजा लूटा और अंत में मूँग की दाल के स्वादिष्ट हलवे से मुँह मीठा किया।
- भाई तूने तो मेरे मुँह में पानी ला दिया। अच्छा भोजन के बाद कवि सम्मेलन शुरू हुआ?
- हाँ भाई खा-पीकर फुल होने के बाद कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। ऊर्जावान मनीष मधुकर व युवा एंकर सोनम छाबड़ा के संचालन में कवि सम्मेलन ने गति पकड़ी। युवा रचनाकार अभिराज पंकज, अमित शर्मा, दिनेश सैनी, सुमित प्रताप सिंह, पंकज शर्मा, बेबाक जौनपुरी, प्रीति तिवारी, अमिता एवं मनीष मधुकर तथा वरिष्ठ कवि गजेंद्र सोलंकी व कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. अशोक वर्मा ने अपने-अपने अंदाज में श्रोताओं का मनोरंजन किया।
- मतलब कि माँ सरस्वती की संतानों ने जेल में उस दिन को कैदियों के लिए यादगार बना दिया।
- हाँ भाई वो दिन जेलवालों के साथ-साथ माँ सरस्वती की संतानों के लिए भी यादगार रहेगा।
- तो अगली बार जेलयात्रा पर कब जा रहा है?
- देखो फिर कब जेल की रोटी खाना भाग्य में नसीब होता है?
- मैं दुआ करूँगा कि तुझे ये सौभाग्य जल्दी मिले और तेरे साथ मैं भी जेल में रोटी के साथ कविताई का आनंद उठाऊँ।
- आमीन!
लेखक - सुमित प्रताप सिंह