सादर ब्लॉगस्ते!
सुरेश यादव जी जिला मैनपुरी के एक गाँव से आकर 1973 -74 ई. में दिल्ली में जमने की कोशिश कर रहे थे तभी से कही न कही कविताओ में भी खुद को पा रहे थे. 1981 ई. में इनकी "उगते अंकुर" नामक काव्यकृति प्रकाशित हुई. चार साल के अंतराल के पश्चात 1985 ई.में "दिन अभी डूबा नहीं" नामक दूसरी काव्यकृति प्रकाशित हाई और इसे हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से सम्मान मिला. इनकी तीसरी काव्यकृति "चिमनी पर टंगा चाँद " 2010 ई. में प्रकाशित हुई. इस कृति को "भवानी प्रसाद मिश्र सम्मान" दिया गया. इन्हें लेखन हेतु "डॉ. रांगेय राघव सम्मान" सहित कई सम्मान समाज ने दिए है. रेडियो एवं दूरदर्शन पर भी यह काव्यपाठ करते रहते हैं. मज़े की बात यह है कि इन्हें हमारी तरह छपने का चस्का बिलकुल भी नहीं है और इन्होंने अखबारों तथा पत्रिकाओ को केवल माँगने पर ही रचनाए दी हैं.
सुरेश यादव- अक्टूबर 2006 में जब पहली बार "अनुभूति" में मेरी रचनाए प्रकाशित हुई और मैंने देश विदेश से अपनी रचनाओ पर प्रतिक्रियाए पाईं इस सुखद अनुभूति ने मुझे प्रेरित किया.भाई सुभाष नीरव की प्रेरणा ने मुझे ब्लॉग रचनाकार बनाया और उसके बाद बहुत सारे मित्र हैं और सहयोग देने को तत्पर तो सुमित जी आप भी हैं.
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
सुरेश यादव- .मेरी पहली रचना 1973 ई.में रची गई जब मैं छुट्टी पर अपने गाँव गया था . यह एक प्रणय गीत ही था जिसे मैंने शर्म से किसी को नहीं सुनाया.
सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?
सुरेश यादव- .यह प्रश्न बहुत बड़ा है और लगभग ऐसा ही है जैसे कोई पूछे कि आप जीवन क्यों जीते है? लिखने का कारण कभी खोजा नहीं परन्तु महसूस करता हूँ कि अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए, अपने समाज से सरोकार बनाए रखने के लिए,जीवन-चिंतन तथा समाज के अभावों की पूर्ति के लिए और अंत में बेचैन सवालों के द्वारा विवशता वश भी कविता लिख जाता हूँ . लेखन जिसमें कविता के अलावा कहानियां ,लघु कथाएँ, समीक्षाएं आदि हैं. उनके लिखने का कारण भी यही है. सच तो यह है कि जितना मैं साहित्य रचता हूँ, साहित्य भी मुझे उतना ही रचता है और यह सिलसिला ज़ारी रहता है. कष्ट में सुख की अनुभूति केवल रचना करवा सकती है इसलिए वह मेरा जीवन है .
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
सुरेश यादव- कविता मेरी प्रिय विधा है. यद्यपि मैंने कहानी,लघु कथा, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, हायकू भी लिखे हैं और साहित्य समाज ने पसंद किए हैं.
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?
सुरेश यादव- कोई भी रचना सन्देश से अधिक एहसास दिलाती है कि हम सब के बीच कहीं न कहीं विचारों और भावनाओं की समानता है जो मानवीय एकता को स्थापित करती है. यह एहसास ही सन्देश बन जाता है कि तमाम मानवता के बीच साझा चिंताए भी हैं. मैं अपने समाज को यह सन्देश भी देना चाहता हूँ कि सच्चाई, ईमानदारी और मानवता के हक़ में मेरी रचनायें खड़ी है तथा मानवीय संवेदनायें अभी जीवित हैं. आस्था और विश्वास का सन्देश मेरा प्रमुख सन्देश हैं.
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग लेखन हेतु भी एक आचार संहिता तथा एक निश्चित आयु सीमा होनी चाहिए." इस विषय पर क्या आप अपने कुछ विचार रखेंगे?
सुरेश यादव- ब्लॉग लिखने को मैं उसी तरह मानता हूँ कि जैसे कोई किसी पत्रिका का संपादन कर रहा हो अथवा अपनी स्वयं की रचनायें रच रहा हो. कोई किसी के नाम से ब्लॉग में कुछ भी लिख दे ठीक नहीं है. अपनी पूरी पहचान के साथ प्रामाणिक रूप में ही ब्लॉग रचनाकार को आना चाहिए. जहाँ तक आयु का सम्बन्ध है निर्धारित करना संभव नहीं है, परिपक्वता का आधार होना चाहिए, फिर भी यदि 13 -14 वर्ष से आयु कम न हो तो अच्छा है.
(इतना कहकर सुरेश यादव जी अपनी चिमनी की ओर निहारने लगे. मुझे लगा कि शायद चाँदरुपी कोई नई रचना उनके मस्तिष्क में प्रवेश करने को राह तक रही है. सुरेश यादव जी और उनकी नई रचना के मिलन में बाधा न बनूँ, सो मैं निकल लिया अपने अगले पड़ाव की ओर)
सुरेश यादव जी की चिमनी पर टंगा चाँद देखना हो तो पधारें http://sureshyadavsrijan.blogspot.com/ पर...
18 टिप्पणियां:
चिमनी पर चिडि़या चहचहाती थी
जब धुंआ निकलता तो उड़ जाती थी
अब नजर ही नहीं आती
उतनी ऊपर की तो छोडि़ए
आपके घरों के आस पास भी
नहीं देती है दिखाई
आप कहेंगे - ईश्वर हो गई है
मैं कहूंगा - नष्ट हो गई है
नष्ट उसे किया है हम दुष्टों ने
हमारे कारनामों,क्रियाकलापों ने
और कलपना पर्यावरण को पड़ रहा है
आप चांद ढूंढ रहे हैं
हम चिडि़या ढूंढ रहे हैं
चांद तो दे जाता है दिखाई
पर न चिडि़या
और न चिडि़या की परछाईं
मानव के मन पर कालिमा की तरह
चिमनी का धुंआ जम गया है
मन को काला गर्द कर गया है
ऐसे में सुरेश यादव जैसे
इंसान शब्दों और भावनाओं को
बना रहे हैं महान
पेश कर रहे हैं मिसाल
सच्चचरित्रता और ईमानदारी की
जो कहीं न हो पर मिलेगी जरूर
सुरेश यादव हैं जहां
वहीं पर मौजूद है ईमानदार नेक इंसां।
सुरेश यादव जी के साहित्यिक व्यक्तित्व से तो पहले ही परिचित था,आज उनके दूसरे स्वरुप से भी आपने परिचय करवा दिया.सुमित भाई आपके साथ-साथ,सुरेश जी का भी आभार.
सुरेश अंकल की चिमनी पर टंगा चाँद चुराने का मन कर रहा है.
सुंदर साक्षात्कार.
आपकी कलम घिस्सी.
बहुत अच्छी रही बातचीत ... एक नए प्रश्न का होना अच्छा लगा .
मुझे तो लगता है कि शीतलहर में
चाँद इतना कंपकंपाया
कि वो सुरेश की चिमनी पर उतर आया
शायद यहाँ पर
साहित्यिक गर्मी का एहसास हो
और यहीं कहीं आसपास अविनाश वाचस्पति मिल गए
व्यंग्य की गर्मी गिफ्ट में मिल जायेगी
फिर तो सुमित के चहरे पर मुस्कान अवश्य खिल जायेगी !
glad to know aboout Suresh Yadav.
post bahut hi acha hai sumit ji
ji maine yah pustak padhhi hai, bahut achchhi kavitayen hain...,
सुरेश यादव की कवितायेँ प्रभावित करती हैं,परिचय कराने के लिए आपका आभार !
चाँद भी मकर सक्रांति मनाने आ गया और आपकी कविता के भाव भी पढ़ गया
लिखते रहिये
शुभ कामनाएँ
सुन्दर रचना.
श्री सुरेश यादव जी का लेखन धर्म बहुत ही हृदय स्पर्शी है | उनका साहित्य लोक-कल्याणी है | वो इस लेखन को निरंतर आगे बढ़ाते रहे प्रभु से कामना है |
सुरेश यादव जी से यहाँ मिलना अच्छा लगा.
aapse milkr khushi hui.nisandeh aapka blog aur........chimni pr atke chaand ko dekhna chahungi..kisne taank diya mere chaand ko chimni pr......... nhi maalum kya likha hai aapki us nai pustk me pr......uske naam ne jaise kisi lahar kii tarah ek thpeda maara aur...bheetar tk bhiigi hun main.....duur nikl gai jaise.mujhse sahan nhi ho rha chaand ka chimi pr yun atk jana.aapse jrur milna chahungi blog ke maarfat.sumit thanx realy aisi pratibhaaon ko milane ke liye.
sumit pratap ji aap ne mere is saakshatkar ko bahut sundar or kalatmak roop men prastut kiya hai .is bahaane kitane saare mitra sampark men aagaye or unaki shubhakaamanayen mil gayin aap ka hardik aabhar tatha sabhi mitron ka bhi hriday se aabhar
आभार सुरेश यादव जी का जिन्होंने दिया साक्षात्कार और आभार आप सभी का जिन्होंने दिया उन्हें इतना प्यार...
बहुत बढ़िया बातचीत.. यादव जी से परिचय तो था किन्तु आज आपने मिलवाया तो और भी अच्छा लगा... शुभकामनाएं...
बढ़िया बातचीत..
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