दोनों समुदायों की भीड़ आमने-सामने खड़ी हो एक-दूसरे का खून बहाने को तैयार थी। उन्माद में कमी न आए इसलिए समय-समय पर दोनों पक्षों का नेतृत्व कर रहे नेता धार्मिक नारे लगाकर अपने-अपने धर्म की खातिर मर-मिटने के लिए उन्मादी भीड़ को दुष्प्रेरित कर रहे थे। दोनों समुदायों के बीच बेचारा भाईचारा धरती पर लहूलुहान हो दर्द से बुरी तरह कराह रहा था। उसके बगल में ज़मीन पर पड़ी गंगा-जमुनी तहजीब भी लुटी-पिटी हालत में आंसू बहा रही थी। ये सब देखकर मियाँ दंगे लाल मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। भाईचारे ने ये जानते हुए भी कि उसका चारा बनना तय है उन्मादी भीड़ से पूछा - आप सभी क्यों एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हो?
भाइचारे के सवाल के जवाब में एक तरफ से आवाज आई मज़हब की खातिर और दूसरी ओर ध्वनि गूंजी धर्म की रक्षा के लिए।
गंगा-जमुनी तहजीब ने उन्हें समझाया - ये सब करने से तुम सबको सिवाय खून-खराबे के कुछ हासिल नहीं होनेवाला है।
मजहब की राह में में क़ुर्बान होने से हमें शहादत मिलेगी। एक तरफ से कोई उन्मादी चिलाया। हां हां धर्म के लिए मर-मिटने से हम धर्मयोद्धा कहलाएंगे। दूसरी ओर से कोई अन्य उन्मादी हुंकारा।
भाईचारा गुस्से में चीखा - किसी को कुछ नहीं मिलना। दंगे के बाद या तो तुम सबकी लाशों को चील-कुत्ते खायेंगे या फिर तुम सब सालोंसाल जेल में पड़े हुए अपनी-अपनी जमानत होने का इंतज़ार करते रहोगे।
ये सुनकर दोनों ओर की उन्मादी भीड़ ठिठक गई। मजहब के ठेकेदारों ने मामला बिगड़ते देख मज़हबी नारे लगाने शुरू कर दिए। भीड़ के मन-मस्तिष्क में भीतर ठिठक कर रुका उन्माद फिर से सिर उठा कर खड़ा हो गया।
मियाँ दंगे लाल ने ये नज़ारा देखकर एक खूंखार ठहाका लगाया।
तभी गंगा-जमुनी तहजीब कोशिश करके उठी और बोली - अरे बेवकूफों, जिनके बहकावे में आकर तुम सभी अपना और अपने बच्चों का जीवन बर्बाद करने जा रहे हो कभी उनसे इस बारे में पूछा है, कि उनके खुद के बच्चे तो विदेश में पढ़-लिखकर अपना भविष्य बना रहे हैं और वे तुम सबको आपस में भिड़वा कर तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का भविष्य खराब करवाने जा रहे हैं।
गंगा-जमुनी तहजीब की बात पर जहां मजहबी ठेकेदार बगलें झांकने लगे, वहीं भीड़ के मन-मस्तिष्क में तन कर खड़ा हुआ उन्माद अचानक ढीला पड़ कर बैठ गया।
भाईचारे ने गंगा जमुनी तहजीब की बात को आगे बढ़ाया - हां हां इन धर्म के ठेकेदारों से कहो कि ये अपने बच्चों को विदेश से बुलाकर भीड़ का नेतृत्व करने को कहें।
ये सुनते ही दोनों ओर की भीड़ का उन्माद धाराशाही हो गया। ये देखकर मियाँ दंगे लाल भी अपने सिर पर पांव रखकर वहां से भाग लिए।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
चित्र गूगल से साभार