कभी-कभी सोचता हूँ कि
यदि पुस्तकें होती रहीं
यूँ ही प्रकाशित तो
ये दृश्य कहीं
विलुप्तप्राय न हो जाएं
फिर सोचता हूँ कि
पुस्तकें प्रकाशित होनी
हो गयी जो बंद तो
इस जग में विचार
मूर्तरूप कैसे ले पायेंगे
और वे विचार भी तो
पुस्तकों के बिना
बेमौत मर जायेंगे
जिनमें ये सीख होगी कि
हरे-भरे वृक्ष काटने से
हो सकता है
पर्यावरण का विनाश
और यूँ ही वृक्ष
जो कटते रहे तो फिर
ऐसे दृश्य देखने को
कहीं ये नैन न तरस जायें।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
(चित्र में हमारे लाडले पार्थ भविष्य में झाँकने का प्रयत्न कर रहे हैं।)