संगीता सिंह तोमर दिल्ली में ही जन्मीं व पढ़ी-लिखीं। जब संगीता स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज में पहुँचीं तो उनके हृदय में साहित्य के प्रति प्रेम जाग्रत हुआ। रचना को पढ़ कर उसकी समालोचना करना उनकी आदत में शुमार हो गया । समालोचना करते-करते एक दिन संगीता लेखिका बन गयीं। इनके लेखन का शुभारंभ ब्लॉग लेखन से हुआ। ऐसा समय भी आया कि इनका ब्लॉग 'कलमघिस्सी' इतना चर्चित हुआ, कि विश्व की चर्चित महिला हिंदी ब्लॉगरों में सूची में संगीता का नाम सम्मिलित किया गया। लघुकथा, आलेख, कहानी, बाल कहानी, व्यंग्य व कविता इत्यादि विधाओं में संगीता कई वर्षों से अपनी कलम घिस रही हैं। फिलहाल साहित्य सेवा करते हुए संगीता उच्च शिक्षा प्राप्त करने में व्यस्त हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
संगीता सिंह तोमर - मुझे साहित्य पढ़ने का बचपन से शौक रहा है। पढ़ते-पढ़ते एक दिन लिखने लगी। शुभचिंतकों की शुभकामनाओं से मेरी रचनाओं को प्रकाशन का सौभाग्य मिला और इस प्रकार मेरी लेखन की गाड़ी चल पड़ी।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
संगीता सिंह तोमर - जहाँ तक मेरा अनुभव है कि लेखन से मेरे व्यक्तित्व पर अभी तक तो कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है, बल्कि ये कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मुझ पर लेखन से अच्छा प्रभाव ही पड़ा है। जीवन में सकारात्मकता आयी है और नकारात्मकता दूर हुई है।
क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
संगीता सिंह तोमर - बिलकुल लगता है। मेरे विचारानुसार लेखन में वह शक्ति है जो समाज में बदलाव लाने की भूमिका का निर्वहन कर सकती है।
आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?
संगीता सिंह तोमर - वैसे तो मुझे अपनी सारी रचनाएँ ही प्रिय हैं, किंतु मुझे मेरी कविता 'मुझे जन्म दो माँ' विशेष रूप से प्रिय है। भ्रूण हत्या से व्यथित होकर इस रचना का सृजन हुआ था। इस कविता का विषय मेरे मन को बहुत ही अधिक भाता है।
आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
संगीता सिंह तोमर - प्रत्येक लेखक अपने लेखन से समाज को संदेश देना चाहता है। मैं भी उनमें से एक हूँ। अब ये समाज पर निर्भर करता है कि वह मेरी रचनाओं से संदेश लेना भी चाहता या नहीं।