सुमित प्रताप सिंह द्वारा लिखी गई पुस्तक व्यंग्यस्ते पढ़ी। इसमें व्यंग्य पत्र शैली में लिखे गए हैं। लोकतंत्र महाराज को संबोधित पहले पत्र से लेकर रक्त देवता के नाम आखिरी पत्र तक बड़ी सुंदरता से व्यंग्यस्ते को रचा गया है। इस पुस्तक को पढ़ने बैठी तो पढ़ती ही गई और इस पूरी पढ़ने के बाद ही उठी। लेखक की हिंदी भाषा पर पकड़ और शुद्धता प्रशंसनीय है। इतनी गहराई से लेखक ने सामाजिक बुराइयों से लेकर खोखले रीति-रिवाजों पर जो व्यंग्य किये गए हैं, वो समाज का सही आइना प्रस्तुत करते हैं। लेखक के लेखन की नवीनता का प्रभाव ही था जो स्वयं को पूरी पुस्तक पढ़ने से न रोका जा सका। व्यंग्यस्ते में संकलित कुछ व्यंग्यों से मैं बहुत प्रभावित हुई। जो कि इस प्रकार हैं - वेलेंटाइन, जाति प्रथा, गाँव, क्रिकेट, पब प्रेमी बाला, हिंदी, मदिरा रानी इत्यादि। यदि व्यंग्यस्ते जैसी सार्थक पुस्तकें हमारे समाज में सभी को पढ़ने को मिलें, तो शायद कई सामाजिक बुराइयों को अपनाने से पहले व्यक्ति कुछ सोच-विचार कर सकता है तथा इस समाज में बदलाव की सम्भावना उत्पन्न हो सकती हैं। लेखक ने उन छोटी-मोटी समस्याओं पर भी ध्यान आकर्षित किया है, जो वास्तव में हमारे लिए बड़ा महत्त्व रखती हैं और हम अनजाने में जिन्हें नज़र अंदाज कर देते हैं। हर लेखक एक अच्छा लेखक अपने अच्छे विचारों से भी बनता है, क्योंकि जब तक आपके मन में अच्छे विचारों का आवागमन न होगा, तब तक आप अपनी रचना में वैसा आकर्षण उत्पन्न नहीं कर सकते, जो कि किसी भी पाठक को बांधे रखने के लिए आवश्यक होता है। सुमित प्रताप सिंह से मेरा यही निवेदन है कि आप देश व समाज को रचनारूपी अपने नवीन विचारों से ओतप्रोत पुस्तकें निरंतर भेंट करके मार्गदर्शित करते रहें और एक महान लेखक के रूप में उभरें तथा हमारे देशवासियों प्रेरित करने का कार्य करें। मेरे अनुसार लेखक की कलम वह कर सकती जो तलवार नहीं कर पाती। अंत में यही आशा करती हूँ कि आपकी अगली पुस्तक भी इसी तरह लेखकीय सुंदरता से परिपूर्ण हो और अधिक से अधिक पाठकों को इससे मनोरंजन व ज्ञान प्राप्त हो सके।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ
रेनू श्रीवास्तव
लेखक व पत्रकार।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर समीक्षा...बधाई
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