कात्यायनी सिंह 'दीप' बिहार के सासाराम में पिछले कुछ वर्षों से साहित्य के दीप जला रहीं हैं। स्कूली शिक्षा के दौरान साहित्य के प्रति लगाव धीमे-धीमे इन्हें पाठन से लेखन की ओर खींच लाया। विज्ञान से स्नातक कात्यायनी की रचनाएं देश के प्रतिनिधि समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में उपस्थिति दर्ज करवा चुकी हैं तथा इनकी तीन पुस्तकें साहित्य जगत में पदार्पण कर चुकी हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
कात्यायनी सिंह 'दीप' - साहित्य में मेरी रूचि बहुत पहले से ही है। मेरे माता-पिता दोनों साहित्य प्रेमी थे। घर में पत्रिकाएं और साहित्यिक पुस्तकें आया करती थी। शिवानी मेरी प्रिय लेखिका रही हैं। इनके सभी उपन्यास मैंने दसवीं कक्षा में ही पढ़ लिए थे। बाद के दिनों में रेणु, चित्रा मुद्गल, मनोहर श्याम जोशी, प्रभा खेतान एवं उषा प्रियंवदा इत्यादि लेखकों को भी पढ़ती रही। लेखन का रोग मुझे चार या पांच साल से लगा है। एक दिन एक कहानी को पढ़ते समय मुझे अनुभव हुआ, कि ऐसी कहानियां तो मैं भी लिख सकती हूँ। तब से अब तक लेखन से जुड़ी हुई हूँ और जुड़ाव ऐसा है कि यह एक रोग सा ही हो गया है।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ा?
कात्यायनी सिंह 'दीप' - लेखन से बुरा प्रभाव तो कभी नहीं पड़ा, बल्कि अच्छा ही प्रभाव पड़ा है। खुद की बातों को लेखन के माध्यम से व्यक्त करना, सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है।
क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
कात्यायनी सिंह 'दीप' - हाँ, लेखन समाज में बिल्कुल बदलाव ला सकता है। हम लेखक लिखते ही हैं कि समाज में कुछ बदलाव ला सकें। और बदलाव आया भी है। सबसे बड़ा बदलाव तो स्त्रियों की स्थिति में आया हैं। शिक्षा का बदलाव, अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने का बदलाव, अपने अनुरूप काम करने का बदलाव, गलत परम्पराओं को नकारने का बदलाव, विवाह को लेकर सही-गलत फैसला करने का बदलाव, मनपसंद कैरियर चुनने का बदलाव, समाज में व्याप्त विसंगतियों में बदलाव। लिखना और बोलना गलत के खिलाफ प्रतिरोध ही तो है। और प्रतिरोध दर्ज हो रहा है तथा समाधान भी मिल रहा है।
आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?
कात्यायनी सिंह 'दीप' - जिस प्रकार माँ को अपने सभी बच्चे एक समान प्रिय होते हैं, उसी प्रकार एक लेखक को उसकी प्रत्येक रचना प्रिय होती है। हाँ कुछ रचनाएं होती हैं जो खास हो जाती है। मुझे अपनी दो रचनाएँ सर्वाधिक प्रिय हैं जो कि क्रमशः 'सुर्ख रंग' और 'बदतमीज' हैं। इनके सर्वाधिक प्रिय होने का कारण इनमें निहित संदेश है। जहाँ 'सुर्ख रंग' नामक कहानी में इसके पात्र पति-पत्नी अलग-अलग धर्म व जाति के होते हुए भी एक-दूसरे का सम्मान करते हुए खुशहाल वैवाहिक जीवन बिताते हुए समाज को प्रेम व सौहार्द का संदेश देते हैं। वहीं 'बदतमीज' नामक कविता ऐसी लड़की की करुण व्यथा है, जो विवाह के पश्चात ससुराल और ससुरालियों को प्रेम व सम्मान देने के बावजूद उनसे अपमान व वितृष्णा ही पाती है।
आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
कात्यायनी सिंह दीप - मैं अपने लेखन के माध्यम से समाज में फैली विसंगतियों, गलत परम्पराओं की समाप्ति एवं स्त्रियों के लिए समाज में स्थान और सम्मान दिलवाना चाहती हूँ।