हर कोई इंसान भला
घर में कहाँ बहलता
है
इसलिए विवश हो वह
घर से बाहर जा
टहलता है
घर में वह रुक जाए
ये भी भला कोई बात
है
उसकी तो एक अलग ही
टहलू नाम की जमात
है
बेशक कैसी भी रोक
हो
कोई भी सरकारी टोक
हो
वह इंसान हर
रोक-टोक को
बड़ी बेदर्दी से
नकार देगा
जब तक आप उसे
टोकेंगे
वह पार्क का एक
चक्कर काट लेगा
जब अकेले टहलने से
वह बहुत ऊब जाएगा
तब टहलू जमात के
साथ
वह गप्प में डूब
जाएगा
जब रंगे हाथों वह
पकड़ा जाएगा
तो झट से ढेरों
बहाने बनाएगा
मैं तो आया था माँ
की दवाई लेने
या फिर बच्चे की
जिद पर मिठाई लेने
पत्नी के आदेश से
रौशनाई लेने
या फिर ओढ़ने को नई
रजाई लेने
उसका कोई न कोई
बहाना
आखिर काम कर ही
जाएगा
और पकड़े जाने से
वह
बाल-बाल बच जाएगा
यूँ बच जाने पर वह
खुशी के मारे ऊल
जाएगा
और कुछ देर बाद
टहलने को
फिर किसी पार्क
में कूद जाएगा।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह