रूपाली सक्सेना का उनकी प्रथम पुस्तक 'स्नेह की संदूकची' के साथ हिंदी लेखन जगत में आगमन हुआ है। किसी भी लेखक की जब प्रथम कृति आती है तो उसके हृदय में इस बात की आशंका रहती है कि न जाने लेखक व पाठक जन की स्वीकृति उसको मिल पाएगी अथवा नहीं। संभवतः कुछ ऐसी ही आशंका रूपाली सक्सेना के हृदय में भी हो रही होगी। 58 कविताओं के इस कविता संग्रह का आरंभ लेखिका ने गणेश स्तुति रचना से किया है। इसके उन्होंने अपने आसपास उपस्थित प्रत्येक विषय पर अपनी कलम चलाने का प्रयास किया है।
इस कविता संग्रह की शीर्षक कविता 'स्नेह की संदूकची' वास्तव में शीर्षक कविता बनने के योग्य है। इस कविता में उपस्थित भाव पक्ष हृदय स्पर्शी है एवं ये कविता संवेदना से ओतप्रोत है। शीर्षक कविता के अतिरिक्त इस कविता संग्रह में संग्रहित राजपूत रानी के अमर त्याग पर केंद्रित उनकी हाड़ी रानी रचना इस बात का आभास करवाती है, कि ऐतिहासिक पात्रों पर उनकी कलम कुछ और लोकप्रिय रचनाओं का सृजन कर सकती है। इन दोनों रचनाओं के अतिरिक्त इश्क़, मेरा बेटा बड़ा हो गया है, मेरी ख्वाहिशें, विक्षिप्त, पर्यावरण हमारा है, गर तुम कान्हा होते, स्तनपान इत्यादि रचनाओं के माध्यम से रूपाली सक्सेना लेखन जगत के मन ये आस जगाती हैं, कि वह भविष्य में अच्छी व सार्थक रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य सृजन में अपना सक्रिय योगदान देंगीं।
पाठकजन रूपाली सक्सेना की इस कृति की कुछ रचनाओं की कुछेक भाषायी त्रुटियों व सशक्तता के थोड़े-बहुत अभाव को ये सोच कर अनदेखा कर सकते हैं, कि यह उनका प्रथम साहित्यिक प्रयास है और लेखन की इस लंबी दौड़ को पूरा करने के लिए अभी उन्हें बहुत लंबी यात्रा करनी है। जिस दिन रूपाली सक्सेना इस यात्रा को पूरा करेंगीं उस दिन उनके लेखन की संदूकची में कोई न कोई ऐसी साहित्यिक रचना होगी जो उन्हें अमरत्व प्रदान कर देगी।
पुस्तक - स्नेह की संदूकची
लेखिका - रूपाली सक्सेना
प्रकाशक - संदर्भ प्रकाशन, भोपाल (म.प्र.)
पृष्ठ - 104
मूल्य - 250/- रुपये
समीक्षक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली