रविवार, 16 जुलाई 2023

अंतर्वस्त्र की व्यथा


     न दिनों पतियों का अंतर्वस्त्र कच्छा भयभीत व व्यथित है। उसका भयभीत व व्यथित होना उचित है। अभी हाल ही में एक प्रगतिशील नारी ने शब्दों की बुरी तरह धुनाई कर एक कथित कविता बना कर उसे रील प्रेमी नवनृत्यांगनाओं के बीच सोशल मीडिया पर मटकने के लिए छोड़ दिया। अब वह कथित कविता विवश हो सोशल मीडिया पर मटक रही है और लाइक-डिसलाइक व अच्छी-बुरी प्रतिक्रियाओं को विवश हो गटक रही है। भयभीत व व्यथित कच्छा उसकी ऐसी स्थिति देखकर पसीना-पसीना हो रखा है। उसे इस बात का भय है कि इस कविता से कहीं ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो जाए कि उसका आस्तित्व ही समाप्त हो जाए। कच्छा जहाँ एक ओर भयभीत है वहीं पतियों से अप्रसन्न भी है। उसकी अप्रसन्नता इस बात से है कि पतियों ने स्वयं की इच्छाओं को तिलांजलि देकर परिवार की इच्छाओं और आवश्यकताओं को सर्वोपरि रखा। स्वयं का कच्छा निरंतर घिस-घिस कर अदृश्य होने की ओर अग्रसर रहा, किन्तु उसकी चिंता छोड़ अपने बाल-बच्चों और पत्नियों के अंतर्वस्त्रों व बहिर्वस्त्रों में कोई कमी न होने दी। कलियुग ने पूरे विश्व के हृदय में परिवर्तन कर दिया, किन्तु इस पति नामक जीव के हृदय ने जाने क्यों सौगंध खा रखी है, कि भैया हम न बदलने वाले। हम तो हर युग में जैसे थे की स्थिति में ही रहेंगे। पतियों की इस जैसे थे की स्थिति से कच्छे का तन-मन सुलग उठता है। कच्छे ने अपना आस्तित्व बचाने के लिए पतियों का माइंड वाश करने का प्रयास किया था, कि पति तो बहुत व्यस्त प्राणी होता है और वह जितना समय अपना कच्छा धोने में व्यय करेगा उतने समय में तो वह अपने परिवार की आवश्यकता की किसी न किसी वस्तु की व्यवस्था कर लेगा। हालाँकि ये कच्छे की अपने-आपको बचाने की एक चाल भर थी। वास्तव में कच्छे को धोते समय पति लोग अनावश्यक बल का प्रयोग करते थे, जिसके परिणामस्वरुप उसकी पसलियाँ क्षत-विक्षत हो जाती थीं। इसके अतिरिक्त पति महोदय कच्छे को धोते समय वाशिंग पाउडर और साबुन की इतनी तगड़ी डोज दे देते थे, कि कच्छे का अंग-प्रत्यंग वाशिंग पाउडर और साबुन से भर उठता था। चाहे जितना भी पानी में उसे निकालो पर वाशिंग पाउडर और साबुन के अंश उसमें जमे रहते थे। जिसका परिणाम ये मिलता था कि कच्छे के शरीर में बुरी तरह खुजली उठती थी और कच्छे को खुजली की थोड़ी मात्रा पतियों को भी समर्पित करनी पड़ती थी। फलस्वरूप पति बेचारे दिन-रात कच्छे द्वारा घेरे गए अंग को खुजाते रहते और अपने निर्दयी नाखूनों से कच्छे में छोटे-मोटे छेदों की अभिवृद्धि कर देते थे। वे छोटे-मोटे छेद ही आगे चलकर बड़े छेदों का रूप धरकर कच्छे के आस्तित्व को समाप्त कर डालते। कच्छे द्वारा माइंड वाश किए जाने के पश्चात् उसे धोने का भार पत्नियों पर आ गया। अब कच्छा अत्यंत प्रसन्न था। पत्नियां अपने नर्म व कोमल हाथों से और उचित मात्रा में वाशिंग पाउडर व साबुन का प्रयोग कर कच्छे को धोने लगीं। अब न तो उसकी पसलियां दुखती थीं और न ही उसका सामना खुजली से होता था। कुल मिला कर उसका अच्छा-खासा जीवन चल रहा था, किन्तु उसके ऊपर बनी कथित कविता ने उसके आस्तित्व को अचानक संकट में डाल दिया। अब कच्छा शांत हो उस कविता से समाज में उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है। देखें कि पत्नियों के नर्म व कोमल हाथों से उसके आस्तित्व की रक्षा हो पाती है या फिर उसके भाग्य में पतियों के हाथों पटक-पटक कर और खुजलाते हुए समाप्त होना ही लिखा है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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