आज सिपाही बत्तीलाल
बहुत गुस्से में है। गुस्से में हो भी
क्यों न? जबसे एस.एच.ओ. ने सिपाही पान
सिंह को चिट्ठा मुंशी बनाया है, तबसे ही उसने बत्तीलाल का जीना हराम कर रखा है।
हालाँकि दोनों ने एक साथ ही पुलिस ट्रेनिंग की थी और दोनों एक ही प्लाटून में थे
फिर भी पान सिंह जाने क्यों बत्तीलाल को परेशान करता रहता है। बत्तीलाल ही क्या
थाने का पूरा स्टाफ ही उसके गंदे व्यवहार से दुखी हो रखा है। चिटठा मुंशी बनने से
पहले तक तो उसका व्यवहार ठीक-ठाक था, लेकिन चिटठा मुंशी बनने
के बाद तो वह अपने आपको थाने का दूसरा एस.एच.ओ. समझने लगा है। दो दिन पहले ही बत्तीलाल की साली की शादी थी लेकिन उसकी
छुट्ठी न हो पायी। बेचारे को घरवाली व ससुराल से जाने कितने ताने सुनने पड़े। पता
नही पान सिंह ने एस.एच.ओ. के कान में क्या कह दिया कि जैसे ही बत्तीलाल छुट्टी की दरख्वास्त लेकर एस.एच.ओ. के सामने पहुँचा, एस.एच.ओ. ने घुड़की देकर उसे भगा दिया। आज
बत्तीलाल ने फैसला कर लिया था, कि वह पान सिंह के खिलाफ कंप्लेंट करके ही रहेगा।
उसने एक कंप्लेंट लैटर लिखा और ए..सी.पी. ऑफिस की ओर चल दिया। ए..सी.पी. के सामने पेश होने की हिम्मत उसमें थी नहीं, सो
उसने सोचा कि वह ए..सी.पी. ऑफिस के आगे लगे कंप्लेंट
बॉक्स में ही अपना कंप्लेंट लैटर डाल देगा। अचानक कुछ पल के लिए वह ठिठककर रुक
जाता है। उसे अपने साथी पान सिंह पर दया आ जाती है कि यदि उसकी नौकरी को कुछ हो
गया तो उसके बाल-बच्चों का क्या होगा? फिर वह सोचता है कि अगर उस दुष्ट को अपने किये
की सजा नहीं मिली तो वह थाने
के स्टाफ के साथ बुरा बर्ताव करने से बाज नहीं आयेगा। उसे सबक सिखाने के लिए उसकी कंप्लेंट
करनी जरुरी है। इतना सोचकर वह कंप्लेंट लैटर को कंप्लेंट बॉक्स में डालने को आगे
बढ़ता है। अचानक उसकी नज़र कंप्लेंट बॉक्स पर लिखी एक लाइन पर चली जाती है। भद्दी
सी लिखावट में किसी ने पेन से बहुत ही छोटे अक्षरों में कुछ लिख रखा था। शायद पुलिस के किसी जवान ने ही लिखा होगा। बत्तीलाल ध्यान से
उस लाइन को पढ़ने की कोशिश करता है। वहाँ लिखा हुआ था “कोई फायदा नही”। बत्तीलाल ने उस
लाइन को गौर से कई बार पढ़ा फिर कंप्लेंट लैटर को अपनी जेब में डाला और भारी क़दमों से
वापस थाने की ओर चल दिया।
लेखक
: सुमित प्रताप सिंह