रविवार, 4 मार्च 2012

इश्श्माइल करते अजय कुमार झा



प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!


     साथियों अपना जीवन छोटा सा है तो इस छोटे से जीवन को हँसते-मुस्कुराते गुजारा जाए तो कितना अच्छा रहे अपनी पंक्तियों द्वारा कहूँ तो-

जीवन में दुःख है बहुत
क्यों न ऐसा करें
हँस-हँस जिएँ
मुस्कुरा के मरें...

सुख-दुःख तो जीवन में आते और जाते रहते हैं..वैसे भी जब तक हम दुःख नहीं झेलेंगे तब सुख का आनंद हमें कैसे पता चलेगा। जब भी निराशा आपको हताश व निराश करने आए तो उसकी कमर में हँसी का ऐसा जबर्दस्त लट्ठ मारिए कि फिर कभी आपके सामने आने का वह साहस ही न कर सके। तो इसी बात पर मेरे साथ मुस्कुराइए और एक जोरदार ठहाका लगाइए। अरे वाह खिलखिलाते हुए आपका चेहरा (थोबड़ा बोलूं तो चलेगा) कितना सुंदर लगता है।  कुछ-कुछ रश्मि प्रभा जी, रविन्द्र प्रभात जी, सुरेश यादव जी, पवन कुमार भैयासंजीव शर्मा जी जैसा और ठहाका लगाते हुए तो आप इन्दुपुरी जी, पवन चन्दन जीअविनाश वाचस्पति जी राजीव तनेजा जैसे लगने लगे वैसे भी हँसने व मुस्काने से शरीर को कोई हानि तो पहुँचने से रही कुछ न कुछ तो लाभ मिलेगा ही तो अब उतार फैंकिए अपने चेहरे की मुर्दानगी और जी भरकर हँसिए (शिवम मिश्रा भैया जैसे) और खिलखिलाइये (अपन की बहना कलम घिस्सी की तरह)आइए आज इस कड़ी में मिलते हैं जीवन को हँसते और मुस्कुराते हुए बिताने में यकीन रखने वाले हिन्दी ब्लॉगर बंधु श्री अजय कुमार झा से...

अजय कुमार झा  हिन्दुस्तान के एक आम आदमी हैं। पेशे से सरकारी नौकर , तेवर से बागी जनता , मिज़ाज़ से शायर और दोस्त , आदत से लिखने-पढने वाले । बचपन में पिताजी की फ़ौजी घुमक्कडी नौकरी ने पूरे देश की भाषा , लोग , रीति रिवाज़ , त्यौहार सबको अपनाने का मौका दे दिया । किस्मत ने पलटा खाया और तरूणाई से लेकर वयस्कता तक ग्राम्य जीवन को करीब से, बहुत करीब से देखने का मौका मिला, सच कहें तो गांव की मिट्टी ने थोड़ा-थोड़ा इंसान होना सिखाया , बांकी जिंदगी और उसे जीने की लड़ाई ने सिखा दिया । बहुत से अपने दूर चले गए ,हमेशा के लिए भी , बहुत अपरिचित से हो गए । मगर इन सबके बीच जो साथ साथ चलता रहा , वो था लिखना पढ़ना , वेदप्रकाश शर्मा को , कर्नल रंजीत को , चंपक ,नंदन , चंदामामा , बेताल , मैंड्रैक और नागराज को भी , फ़िर कीट्स और शेक्सपीयर को भी, गुरूदेव को भी और बाबा नागार्जुन को भी चलिए मिलते हैं अजय कुमार झा जी से.... 

सुमित प्रताप सिंह- अजय कुमार झा जी जय सिया राम! कैसे हैं आप?

अजय कुमार झा जी- जय सिया राम सुमित जी! हम तो ठीक हैं आप अपनी कहें 
(अजय भैया ने जय सिया राम कहा तो शिखा वार्ष्णेय जी के जय श्री कृष्ण याद आ गए)

सुमित प्रताप सिंह- अपन भी बिलकुल ठीक हैंआपको जानने की इच्छा लिए हुए कुछ प्रश्न लाया हूँ  

अजय कुमार झा जी- पूछो पूछो भैया बेधड़क होकर पूछो
(अजय भैया ने बोला इस अंदाज में कि दिल धड़कने लगा)

सुमित प्रताप सिंह- ब्लॉग लेखन के झाँसे आप कैसे आ गए?

अजय कुमार झा जीजी हमें तो बाकायदा कादम्बिनी बहन से सोलह पेज की प्रिंट किलास देकर हमारा दाखिला कराया था ब्लॉगिग में और फ़िर बडे शान से उन दिनों एक पोस्ट के लिंक कुल आठ दस एग्रीगेटर पर चमकते हुए पाते थे , पहले टिप्पणी और फ़ोटो लगाने का पता नहीं था सो इससे भजकल दारम , माने दरमाहा टाईप का भी कुछ मिल सकता है , इत्ता डीपली कभी सोचबे नहीं किए । हमरे लिए तो ई खिटपिट बहुत ही लाभदायक रहा । इसी बहाने से घर में कंप्यूटर और कंप्यूटर में कम से कम बारह तेरह घंटे हिंदी टहलते रहती है , एक से एक , खूबसूरत रंग और तस्वीर में । हां झांसा देकर उलटा एक आध को धर लाए थे , अभी तो औरो बहुत दोस्तों को भी लपेट रहे हैं , देखिए आएंगे तो मिलवाएंगे आप लोगों से भी उनको । 
(मन में उलझन हो रही है कि आज भैया जी ठहाका लगाने से परहेज क्यों कर रहे हैं?)

सुमित प्रताप सिंह- आप इतना इश्माइल करते हैं कि अन्य ब्लॉगर बन्धु आपकी इश्माइल से जलते रहते हैं. इस इश्माइल का आखिर राज़ क्या है?

अजय कुमार झा जीजी इश्माईल नहीं ..ईईईश्श्श्श्शमाईईईईल कहिए । जी हां , बिल्कुल करता हूं क्योंकि अब तक जो भी जिंदगी बीती या बिताई है एक ही बात सीखी ईश्माईल करते रहिए जिंदगी भी पलट के ईश्माईईईईल करेगी । और आपसे ये किसने कह दिया कि ब्लॉगर बंधु , ईश्माईल से जलते हैं अजी हम हुलस कर ईश्माईल कर दें तो गूगल कनेक्ट हो जाते हैं सबसे । हम उनसे जीते हैं और उन्हें हमारी आदत हो चली है । इसका राज़ वही है ज़िंदगी से जो भी लिया उसे उतना वापस करते जाइए ,देखिए क्या संतुलन बनता है फ़िर आप भी कह उठेंगे ........भईया जी ईईईईईश्श्श्श्माईईईईईल 
(इतना कहकर वह किसी के फोन आने का कहकर एक कमरे में घुस गए और कुछ समय बाद फिर से मेरे सामने उपस्थित हो गए)

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

अजय कुमार झा जी-  पहली रचना ....हा हा हा ..शायद सातवीं कक्षा में था । स्टेज पर प्रार्थना के बाद बच्चों द्वारा समाचार वाचन, और कुछ पढ़ने कहने की परंपरा थी । कविता का नाम था " "बिल्लू का सपना "। हाफ़ पैंट स्टेज पर माईक संभालने के बाद कांपथी थर थर टांगों से बिल्लू का सपना पढी गई । बस इसके बाद जाने कितने पन्नों पर क्या क्या टांकता जा रहा हूं तब से अब तक । 
(उन्होंने फिर से फोन आने की बात कही और उसी कमरे में घुस गए तथा कुछ देर बाद पधारे)

सुमित प्रताप सिंह- लिखना ज़रूरी क्यों है? वैसे आप लिखते क्यों हैं?

अजय कुमार झा जी-  सिर्फ़ ,लिखते क्यों ,मैं तो पढना भी कहता हूं कि क्यों जरूरी है । अरे महाराज एक बात बताइए जो हमें इस दुनिया के बारे में जो नहीं पता वो इसलिए नहीं पता काहे कि पहिलका लोग जादे लिखा पढी नय किए । अगर आज का लोग सब लिखेगा पढेगा नहीं तो आने वाली नस्लों को पता क्या और कैसे चलेगा । सिर्फ़ लिखना हे एनहीं ये सोच और समझ के लिखना कि कि आने वाले समय में ये भविष्य का द्स्तावेज़ बनेगा । मैं क्यों लिखता हूं .....समझिए कि इसी का जवाब तलाशने के लिए लिखे चला जा रहा हूं ..कि आखिर मैं लिखता क्यों हूं ।
(फिर से फोन आने का हवाला देकर उसी कमरे में घुस गए लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ससुरी फुनवा की आवाज़ हमको काहे नहीं सुनाई देती कुछ देर बाद वह सामने हाज़िर हो गए)

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

अजय कुमार झा जीविधा ...प्रिय विधा । हर कोई मुझसे अक्सर ये पूछ बैठता है , तो सुनिए कि मुझे विधाओं का ज्ञान और समझ नहीं है । दो दिलचस्प वाकये बताता हूं , शायद भाई राजीव तनेजा जी ने एक दिन हास्य और व्यंग्य का मूल अंतर और उद्देश्य मुझे बता था मेरी जिज्ञासा के बाद । और मोहल्ला वाले अविनाश भाई ने आलेख और विमर्श में फ़र्क बताया था । मैं बस लिखता हूं , पढता हूं , विधा का पता नहीं विद्या सेवा में जो आनंद मिलता है वो और कहां ?
(वह पहले की भाँति उठे और फोन के आने की कहकर फिर उसी कमरे में घुस गए और कुछ देर में फिर मेरे सामने मौजूद थे)

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

अजय कुमार झा जी-  अजी छोडिए हमारे लिखे पे संदेश पहुंचने लगा तो देर सवेर जनता जनार्दन होके सोटा उठा लेगी , अभी लोकतंत्र में सोटे उठाने का उपयुक्त समय आने में बस ज़रा सी कसर रह गई है । मेरे लिखे में सिर्फ़ एक ही बात होती है .......आम आदमी .......एक आम आदमी । बस इसी एक आदमी को दूसरे आदमी से मिलवाता हूं । 
(अजय भैया फिर से उसी कमरे में घुसे तो मन में शंका के कीटाणु उत्पन्न होने लगे...कुछ देर बाद वह आ ही गए)

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा क्या हिंदी कभी इश्माइल करेगी?"  इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

अजय कुमार झा जी-  क्या हिंदी कभी इश्माईल करेगी ...अजी हिंदी तो कुछ यूं है:- 

हिंदी तुझसे मुहब्बत हो गई जबसे , हर शाम हसीन और कातिल सी है,
जिंदगी के हर पन्ने पर , उकेरती कई रंग , तू हर पन्ने में शामिल सी है

आ चल हिंदी...आगे बढ चलें। और कमाल तो ये है कि आज जब आपने ये प्रश्न मेरे सामने रख कर पूछा है तो संयोग देखिए कि विश्व की चुनिंदा पुस्तकों की प्ररदर्शनी के बीच हिंदी ब्लॉगरों की पुस्तकों व कृतियों का विमोचन होगा और वे भी हिंदी के ,प्रिंट हिंदी के उस संसार में उतर जाएंगे जिसे को साहित्य कहता है तो कोई इतिहास करार देता है । हिंदी , ब्लॉगिंग और हिंदी ब्लॉगिंग तीनों ही इश्माईल करेंगी वो भी हाईपोडेंट की चमकीली रोशनी वाली ईश्माईल । बस इतना समझ लीजीए कि आज बेशक वर्दी और सत्ता की सेवा की उठाई ने आम आदमी को दबा रखा है , जिस दिन वो फ़ैल गया ..उसकी इश्माईल सल्तनतें हिला देंगी । और हिंदी है तभी हिंदुस्तान है । होली का समय नज़दीक है इसलिए सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं और मुबारकबाद । 
(अबकी बार वह जैसे ही उस कमरे में गए तो मैं भी चुपचाप उनके पीछे कमरे की ओर चल पड़ा। दरवाजे के सुराख़ से झांककर देखा तो अजय भैया ब्लॉग बुलेटिन परिवार के साथ जोर-जोर से ठहाके लगा रहे थे। मैं भी दरवाजा खोलकर भीतर घुस रहा हूँ । आज कहीं और जाना कैंसिल आज सभी ब्लॉगर बंधुओं के साथ जी भरके अपन भी ठहाका लगाएँगे । चलिए इसी बात पर आप भी दीजिए एक बढ़िया सी इश्श्माइल)

अजय कुमार झा जी के संग इश्माइल करना हो तो पधारें http://blog.ajaykumarjha.com/  पर...

17 टिप्‍पणियां:

Gyan Darpan ने कहा…

बढ़िया लगा जी अजय झा जी से आपकी यह मुलाकात|

झा जी से हम भी तीन बार मिल चुके है बहुत मिलनसार है झा जी|

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

ई सुमितवा की हिम्मत कैसे हुइ गई इत्ते बड़े ब्लॉगर का इंटरभू लिए का ?
झाजी चलती-फिरती एकठो बड़की संस्था हैं,उनसे कुछ खैंच लाना छोटी बात नय है.लालूजी ई भेंट कराते तो ठीक होता.

...फिर भी ,होली है,चलो हम बुरा नहीं मानते !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह अच्छी लगी यह मुलाकात

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक आम आदमी की ख़ास अदा है यह 'इश्श्माइल' ... जिस में छिपा हुआ है उसका दर्द , क्रोध , वेदना , साथ साथ है एक उम्मीद कि जो कुछ भी बुरा घट रहा है आसपास जल्द भला बनेगा और उसकी यह 'इश्श्माइल' बरक़रार रहेगी !

अजय भाई आपकी यह 'इश्श्माइल' यूँ ही बनी रहे केवल आपके चहेरे पर नहीं पर आपके के आसपास हर एक चहेरे पर भी यही दुआ करता हूँ ... हार्दिक मंगलकामनाएं !

सुमित भाई इस मुलाकात के लिए बहुत बहुत आभार !

Dev K Jha ने कहा…

ज़बरदस्त मुलाकात रही भाई....
अजय भईया के अनेक रूप हैं.... जब होलियाना मूड में आते हैं तो फ़िर जोगीरा सारारा कहते हुए अनेको चुटीले व्यंग्य कह जाते हैं...
हमेशा ईईईईईईश्श्श्श्श्श्श्माईईईईल्ल्ल्ल्ल्ल करते हुए...

शुभकामनाएं...

बहुत बढिया सुमित भाई...

राजीव तनेजा ने कहा…

अजय झा जी से हुई मुक्कालात ..ऊप्स...सॉरी...मुलाकात बढ़िया रही.. :-)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अपना नाम पढकर सच कहूँ एक लहर आँखों में दौड़ गई ( इसे आंसू नहीं कहते , जबरदस्त ख़ुशी कहते हैं ) . अजय जी , आपकी कलम तो ग्रेट है ही , आपने जो आज कहा है तो मुस्कुराकर यही कहूँगी कि हमेशा खुश रहिये बिल्कुल इसी अंदाज में - " जब भी निराशा आपको हताश व निराश करने आए तो उसकी कमर में हँसी का ऐसा जबर्दस्त लट्ठ मारिए कि फिर कभी आपके सामने आने का वह साहस ही न कर सके" थोबड़े को टेढ़ा मत होने दीजिये :)
बहुत खूब कहा है -

हिंदी तुझसे मुहब्बत हो गई जबसे , हर शाम हसीन और कातिल सी है,
जिंदगी के हर पन्ने पर , उकेरती कई रंग , तू हर पन्ने में शामिल सी है

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

" जब भी निराशा आपको हताश व निराश करने आए तो उसकी कमर में हँसी का ऐसा जबर्दस्त लट्ठ मारिए कि फिर कभी आपके सामने आने का वह साहस ही न कर सके"

सुमित भैया की यही पंक्तियाँ तो कलम घिस्सी के खिलखिलाने की वजह हैं....
सुमित भैया और अजय भैया दोनों को शुभकामनाएँ कि दोनों सदा ऐसे ही इश्माइल माफ करें ईश्श्माइल करते रहें....

Archana Chaoji ने कहा…

ओए!! ये तो मेरा अज्जू है ....मुझे आशीष को स्कूल छोड़ने जाने का कह कर गया था...और देखो..यहाँ बैठा था ...और हाँ ..ईईईश्श्श्श्शमाईईईईल ....कहा तो इत्ते जोर से ..फोटो क्यों नहीं लिया तब ....

नुक्‍कड़ ने कहा…

आओ हिंदी चिट्ठाकारों आओ

विश्‍व पुस्‍तक मेले में आज

होगा हिंदी ब्‍लॉगर मेला

जी नहीं, जरा न झमेला

सिर्फ मेला, मन का मेला


इस्‍माइल को अपनी संभालो दोस्‍तो

दूसरों पर मत हंसो

अपनी बुराईयों को मन से

भगा दो दोस्‍तो


मुश्किल आए तो आओ

अजय जी के पास

दिल से दिल,पोस्‍ट से पोस्‍ट

टिप्‍पणी से टिप्‍पणी चमका लो
दोस्‍तो


फिर भी रह जाए कुछ कसर

तो फेसबुक पर रंग जमा लो

फोन तुरंत मिला लो।

vandana gupta ने कहा…

अजय जी से अजय जी के स्शटाइल मे मुकालात रोचक रही :))))))))))))))))

अजय कुमार झा ने कहा…

हा हा हा हा ...भईया जी ईईईईईश्श्श्श्श्माईईईईल । अरे सुमित भाई , आप भी खूब निकले , एक एक बात हमसे निकलवाकर ही माने । आउर हां बीच बीच में घंटी खूब बजाते रहे हमारी आप । अरे ई ब्लॉग जगत तो अब अपने भीतर टहलते रहता है चाहे बत्ती हरी रहे है लाल या नारंगी ।

ई त्रिवेदी मा स्साब से तो अबके चुनाव डुईटी में निपटते हैं ..इनका पोलिंग बूथ पर धावा बोलते हैं ॥
रश्मि दी , ये आपका स्नेह है और मैं तो बस दिल की कहता हूं ,कहता जाता हूं ।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

अजयजी से मुलाकात दिलचस्प रही ..हंसने वालो में कुछ योगदान हमारा भी हैं ...क्योकि हम भी उन्ही हंसने वालो में शामिल हैं ----

"हँसना हमारी फितरत ही सही ....गम उठने को तो जिन्दगी पड़ी हैं "

Rahul Singh ने कहा…

मजा आ गया, आप दोनों की जुगलबंदी में.

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

ज़बरदस्त मुलाकात ,बातों में छिपी बात ..होली का अनोखा अंदाज़ ...यही है अजय भाई की ख़ास पहचान , बधाईयाँ और शुभकामनाएं !

Sumit Pratap Singh ने कहा…

अजय भैया यूँ ही इश्श्माइल करते रहिए और आपकी ईश्श्श्माइल को देखकर हम सभी हिन्दी भक्त ब्लॉगर भी ठहाके लगते रहेंगे...
भैया जी इश्श्माइल...

Padm Singh ने कहा…

भैया जी ईशमाइल से जबर्दस्त मुलाक़ात...

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