(एक पुलिस कर्मी साथी के संग घटी घटना पर आधारित)
एक दिन मैं सम्मन तामील करवाने पुरानी दिल्ली में एक मुस्लिम के घर गया। वहां सम्मन लेने के बाद घर के मुखिया ने चाय पीकर जाने की जिद की, तो मैं उनकी जिद को टाल न सका और वहाँ कुछ देर के लिए रुक गया। कुछ देर बाद चाय आ गई। चाय के घूंट लेते हुए मैंने घर के मुखिया से पूछा, "मुल्ला जी, आपके कितने बालक हैं?"
मुल्ला जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " कुल मिलाके आठ हैं। पाँच लड़के और तीन लड़कियां।"
मैं उनसे बोला, "मुल्ला जी, आपकी माली हालत तो ठीक नहीं लगती। आपका मकान भी छोटा सा है। अभी तो काम चल जाएगा, लेकिन एक दिन आपके बच्चे बड़े होंगे। उनकी शादी भी होगी। तब इतने छोटे घर में आपका और आपके इतने बड़े परिवार का गुजारा कैसे हो पाएगा?"
मुल्ला जी मुस्काए और हंसते हुए बोले, "हमारे मकान के बगल वाली शानदार कोठी देख रहें हैं। ये जैन साहब की है। उनका एक ही लड़का है। किसी दिन हमारा कोई एक लड़का उनके इकलौते लड़के को गोली मार कर जेल चला जायेगा। फिर तो वो कोठी भी हमारी ही हो जायेगी। इसलिए हम फालतू में फिक्र नहीं करते।"
मैं उनकी ऐसी ज़हरीली मानसिकता को जान कर दंग रह गया और चाय पीकर वहाँ से चुपचाप निकल लिया।
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