गुरुवार, 8 जुलाई 2021

व्यंग्य : समझदारी की वैक्सीन

 

    जिले का साथी नफे अपनी बाँह को काफी देर से सहला रहा होता है, जिसे देखकर जिले उससे इस बारे में पूछताछ शुरू करता है।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : आज बाँह में भाभी ने ज्यादा जोर से बेलन जड़ दिया जो इसे इतनी देर से सहलाने में लगा हुआ है।

नफे : तेरी भाभी जब बेलन मारेगी तो सिर में ही मारेगी। फिलहाल उसकी इस विशेष कृपा से दूर ही हूँ।

जिले : हा हा हा, ऐसी विशेष कृपा कहीं पर अटकी रहे तो ही ठीक है। वैसे तेरी बाँह में हुआ क्या है?

नफे : दरअसल परसों मैंने कोरोना की वैक्सीन लगवायी थी, उसी से शरीर में दो दिनों तक हरारत सी रही और जिस जगह वैक्सीन लगवाई थी, वहाँ थोड़ी सूजन आ गयी है और उसमें दर्द भी हो रहा है।

जिले : शुक्र है कि मैं इस पचड़े में नहीं पड़ा।

नफे : तेरा मतलब है कि कोरोना की वैक्सीन लगवाना पचड़े में पड़ना है।

जिले : और नहीं तो क्या? सूबे ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि कोरोना की वैक्सीन न लगवाऊँ। वरना मैं तो अब तक उसे लगवा भी चुका होता।

नफे : इसमें तेरा कोई दोष नहीं है। अगर समय से तुझे समझदारी की वैक्सीन लग जाती तो तू ऐसी हरकतें न करता।

जिले : समझदारी की वैक्सीन? भाई, इस नाम की वैक्सीन कबसे लगनी लगी?

नफे : ये वैक्सीन हर माँ-बाप द्वारा अपने बालक को बचपन में लगायी जाती है। अच्छे संस्कारों के संग अच्छे-बुरे की समझ की सीख को मिक्स करके समझदारी की वैक्सीन का निर्माण किया जाता है और फिर उसे नैतिकता की सिरिंज में भरकर माता-पिता द्वारा अपने नौनिहालों को लगा दिया जाता है।

जिले : भाई, मेरे अम्मा-बापू ने समझदारी की वैक्सीन तो पक्का मुझे भी लगवाई होगी।

नफे : तो फिर समझदारी की वैक्सीन लगवा कर भी तू ऐसी नासमझी क्यों कर रहा है? तुझे पता भी है कि जिस सूबे की बातों में आकर तू कोरोना की वैक्सीन लगवाने को पचड़े में पड़ना मान रहा है वो और उसका परिवार महीने भर पहले ही इसकी पहली डोज ले चुके हैं।

जिले : अरे, सूबे ने अपने परिवार संग कोरोना की वैक्सीन लगवा ली और हम सबको वैक्सीन न लगवाने के लिए बहका रहा है। 

नफे : और तुम सब बिना सोचे-समझे उसकी बातों में आकर बहक भी रहे हो।

जिले : भाई, बहुत बड़ी गलती हो गयी। मैं सूबे की बातों में आकर नासमझी कर बैठा।

नफे : नासमझी सिर्फ तूने ही नहीं की है, बल्कि सूबे जैसों के चक्कर में पड़कर जाने कितने समझदार नासमझ हो रखे हैं।

जिले : भाई, ये सूबे और उस जैसे लोग इस नासमझी के वायरस को क्यों फैला रहे हैं? क्या उन्होंने भी बचपन में समझदारी की वैक्सीन नहीं लगवाई थी?

नफे : उन्होंने तो समझदारी की वैक्सीन का डबल डोज लिया होगा। 

जिले : तो फिर वे सब ऐसी नासमझी क्यों कर रहे हैं?

नफे : वे सब ऐसी नामसमझी जानबूझकर कर रहे हैं।

जिले : जानबूझकर? वो क्यों भला?

नफे : दरअसल उनसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि अपना देश कोरोना से डटकर मुकाबला कैसे कर पा रहा है। 

जिले : तो उनके अनुसार कोरोना से मुकाबला करने के बजाय उसके आगे घुटने टेक दिए जाने चाहिए।

नफे : सूबे और सूबे जैसों के आका यही तो चाहते हैं। यदि देश कोरोना के आगे आत्मसमर्पण कर देगा तो ये महामारी अपना विकराल रूप ले मौत का तांडव दिखाएगी। फिर लाशों के ढेर लगेंगे और उन लाशों के ढेरों पर ही सूबे और सूबे जैसों के आकाओं की धराशायी हो चुकी इमारतें फिर से खड़ी हो पाएंगीं।

जिले : बात तो तूने पते की कही। चल अब मैं भी पता ढूँढने की तैयारी करता हूँ।

नफे : किसका पता?

जिले : कोरोना वैक्सीन लगा रहे सेंटर का पता। मैं कल ही अपने पूरे परिवार के साथ कोरोना वैक्सीन लगवाता हूँ।

नफे : लगता है कि समझदारी की वैक्सीन का खत्म हुआ असर फिर से असरदार हो रहा है।

जिले : हाँ भाई, लगता है कि ये समझदारी की वैक्सीन भी हनुमान जी की शक्ति के जैसी है। जब तक याद नहीं दिलावाओगे, बेअसर ही रहेगी।

नफे : जिले, अब तू सही लाइन पर आया है।

जिले : भाई, कल वैक्सीन लगवाने के बाद मैं भी नासमझ हो चुके लोगों को समझदारी की वैक्सीन का स्मरण करवाना शुरू करता हूँ। 

नफे : लगता है कि सूबे और सूबे जैसों के आकाओं की महत्वाकांक्षाओं की इमारत के थरथराने का समय आ गया है।

जिले : थरथराने का नहीं बल्कि भरभरा कर गिरने का समय आ गया है।

नफे : इस नेक कार्य के लिए मेरी ओर से तुझे अग्रिम शुभकामनाएं!

जिले : धन्यवाद भाई!

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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