गुरुवार, 1 जुलाई 2021

व्यंग्य : इंसानियत का पुराना वेरिएंट


     फे गंभीर सोच-विचार में डूबा हुआ था। जिले ने सोचा कि क्यों न वह भी उस सोच-विचार में भागीदारी कर ले। इसी प्रयास में वह नफे के पास जा पहुँचा।

जिले : भाई नफे!

नफे : हाँ बोल भाई जिले!

जिले : किस सोच-विचार में डूब रखा है?

नफे : भाई, अब तुझे क्या बताऊँ कि मैं किस गंभीर चिंतन में हूँ।

जिले : बता दे भाई, क्योंकि बताने से जी कुछ हल्का हो जाता है।

नफे : दरअसल मैं डेल्टा प्लस को लेकर चिंतित हूँ।

जिले : भाई, ये डेल्टा प्लस कौन है? कहीं इस नाम से पुलिस कंट्रोल रूम ने कोई नया कॉल साइन तो नहीं बना दिया?

नफे : ये पुलिस कंट्रोल रूम का नया कॉल साइन नहीं, बल्कि कोरोना का नया वेरिएंट है।

जिले : मैं कुछ समझा नहीं। जरा  खुल के बता।

नफे : कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ डेल्टा वेरिएंट का ही विकसित रूप है। इससे पहले डेल्टा वेरिएंट मिला था। कोरोना की दूसरी लहर में अधिकतर लोग इसी डेल्टा वेरिएंट का शिकार हुए थे। वैज्ञानिकों के मुताबिक, डेल्टा वेरिएंट ही विकसित होकर डेल्टा प्लस बन गया है।

जिले : पर इस डेल्टा प्लस की योजना क्या है?

नफे : इसकी योजना अधिक से अधिक लोगों को ऊपर पहुँचाने की है?

जिले : अरे बाप रे, भाई ये कोरोना के नए-नए वेरिएंट भला कहाँ से टपक रहे हैं?

नफे : इस देश में कुछ महान लोग हैं, जो ढीठता दिखाते हुए कोरोना गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाते फिरते हैं, उनके योगदान से ही कोरोना के नए-नए वेरिएंट देश में मौत की चहलकदमी करने में सफल हो रहे हैं।

जिले : भाई, लोग बाहर तो निकलेंगे ही। आखिर कब तक घर में घुसे रहेंगे?

नफे : जब तक कि इस कोरोना का सफाया न हो जाये।

जिले : इसके सफाए में न जाने कितने साल लगें। तब तक लोग निठल्ले तो नहीं बैठ सकते।  जब वो कमायेंगे तभी तो खा पायेंगे। 

नफे : तेरी बात ठीक है, लेकिन जब लोग रोजी-रोटी के लिए बाहर निकलें तो मास्क को सही तरीके से पहनें, समुचित दूरी का पालन करें और समय-समय पर हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं या फिर उन्हें सेनेटाइजर से सेनेटाइज करें।

जिले : और ऐसा अपने देश की कुछ महान आत्माओं को करना नहीं है। वैसे भाई इस नए वेरिएंट से बचने का कोई ठोस उपाय नहीं है?

नफे : है न।

जिले : तो जल्दी बता ना।

नफे : इसका उपाय इंसानियत का पुराना वेरिएंट है।

जिले : इंसानियत का पुराना वेरिएंट? 

नफे : हाँ, पुराने समय में इंसानियत एक-दूसरे के सुख-दुख की साथी थी। इंसान के प्रति वह जिम्मेदारी का भाव रखती थी। कोई जरूरमंद हो या कोई भूखा-प्यासा मिले तो उनकी मदद करते हुए वह उनके साथ फोटो नहीं खिंचवाती थी। वह संत कबीर के दोहे "साईं इतना दीजिये, जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥" को चरितार्थ कर भोगवादी चार्वाक दर्शन की उक्ति "जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज लेकर घी पियो।" को अपनाने के बजाय भविष्य के लिए बचत करने में विश्वास करती थी।

जिले : सही कहा भाई, आज के समय लोग रोज कमाने और रोज खाने के सिद्धांत को अपना कर भविष्य के लिए कुछ नहीं बचाते और झूठे दिखावे की खातिर हर चीज लोन पर ले रहे हैं। 

नफे : अगर ये खाने-पीने के साथ बचत पर भी ध्यान देते तो शायद हमें ये दिन न देखने पड़ते। इसके साथ लोग इस बात को भी समझें कि कोरोना पर सरकार की गाइडलाइंस का पालन करना उनकी नैतिक जिम्मेवारी है। जब इंसानियत का पुराना वेरिएंट फिर से शक्तिशाली होगा तो उसके आगे ये कोरोना और इसके नए-नए वेरिएंट नहीं ठहर पाएंगे।

जिले : भाई, हम सब मिलकर इंसानियत के पुराने वेरिएंट को फिर से लाने की कोशिश करेंगे।

नफे : बिलकुल करेंगे भाई, क्योंकि मैंने सुना है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

जिले : तू फिकर मत कर हमारी भी हार नहीं होगी।

नफे : अगर ऐसा हुआ तो इंसानियत फिर से मुस्कुराएगी।

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