रात को ठाकुर साहब के खेत पर माँस और दारू की पार्टी जोरों से चल रही थी। गाँव के सारे पियक्कड़ ठाकुर साहब के सामने जमीन पर बैठकर दारू के पैग लगा रहे थे और ठाकुर साहब सीना चौड़ा किए हुए कुर्सी को सिंहासन समझकर अपने पुरखों के सम्मान में पलीता लगा उस पर बैठे हुए दारू के पैग लेते हुए घमंड में चूर-चूर हो मुस्कुरा रहे थे।
पार्टी खत्म हुई और सारे पियक्कड़ों ने वहाँ से अपने-अपने घरों को रवाना होते हुए कहा, "ठाकुर साहब के राज में हम सबकी मौज ही मौज है।"
ठाकुर साहब ने अपनी एक आँख खोल अपने सीने को थोड़ा अकड़ा कर घमंड से चूर होते हुए उन्हें देखा और फिर कुर्सी पर ही नशे से मूर्छित हो गए।
ऐसे ही कुछ दिनों तक पार्टियों का व ठाकुर साहब की जयकारों का दौर चलता रहा और बेचारे ठाकुर साहब के खेत-खलिहान और घर बिक गए।
अब ठाकुर साहब के जयकारे लगाने वालों ने एक दूसरे ठाकुर साहब खोज लिए हैं। अब उन ठाकुर साहब के खेत-खलिहान और घर अपने बिकने के उचित समय का इंतज़ार कर रहे हैं।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
4 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति...
धन्यवाद
कटु सत्य लिखा है आपने ऐसे ही लिखते रहिए
धन्यवाद
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