रविवार, 24 सितंबर 2023

व्यंग्य: भक्षक बनाम रक्षक पुलिस


     मार्केट में एक कथित जिम्मेदार माँ से जब अपने बच्चे की शरारतों का बोझ न संभाला गया, तो वह उस मार्केट में गश्त लगा रहे दो पुलिस वालों की ओर इशारा करते हुए अपने बच्चे से बोली। 

माँ – चुप हो जा शैतान वरना तुझे सज़ा दूँगी । उन पुलिस वालों से तुझे पकड़वा दूँगी । वे तुझको जेल में डाल कर खूब डंडे लगाएंगे। फिर तुझको अपनी माँ के ये बोल याद आएंगे। 

गश्त लगा रहे पुलिस वालों, जिनका नाम जिले और नफे था, ने जब ये सुना तो नफे बोला – ये महिला भी गजब ढाती है, बच्चे को हम जैसे सीधे-सादे पुलिस वालों से डराती है । 

जिले – चलो मिलकर लेते हैं इस नारी की क्लास, ताकि भूल जाए करना ऐसी बकवास ।  

दोनों पुलिस वाले उस महिला और उसके बच्चे के पास टहलते हुए पहुंचते हैं । बच्चा उन दोनों को देखकर डर के मारे काँपने लगता है। 

नफे – मैडम, देश को भविष्य को क्यों बिना बात में डराती हैं? हम रक्षक पुलिस वालों को भक्षक क्यों बताती हैं? 

जिले – आपको पता है कि कुछ दिनों पहले हुआ था एक प्रकरण, जिसमें एक बच्चे का कुछ शैतानों ने कर लिया था अपहरण।

माँ – अच्छा ऐसा कैसे हुआ था? अपहरण के बाद उस बच्चे का क्या हुआ था? 

नफे – उस बच्चे की माँ भी आप जैसी ही जिम्मेदार और भली थी । उसने भी अपने बच्चे को खिलाई पुलिस के डर की मोटी डली थी ।    

जिले – जब उस बच्चे का अपहरण करके कार में ले जाया जा रहा था, उस समय बगल  से पुलिस वालों को कहीं इंतज़ाम देने के लिए ले जाया जा रहा था।

माँ – फिर क्या हुआ?

 नफे – चूंकि उस बच्चे की माँ भी आप जैसी थी महान, इसलिए अपहरण करने वालों के काम में नहीं आया व्यवधान।

माँ – मतलब?

जिले – मतलब कि वह बच्चा पुलिस को देख कर बुरी तरह डर गया. और आपने शोले फिल्म में गब्बर सिंह वो का डायलॉग तो सुना ही होगा ‘जो डर गया सो....’

माँ – नहीं नहीं अब आगे कुछ मत बोलिए। मेरी बेवकूफी को बेवकूफी मान कर ही छोड़िए। आगे से न होगा ऐसा गलत काम। बेटा, पुलिस वाले अंकलों को बोल राम-राम!

बच्चा – दोनों अंकल जी को राम-राम! 


जिले और नफे – राम-राम! आगे से अपनी माँ की गलत बातों पर बिलकुल मत देना ध्यान।

ये सुन कर बच्चा मुस्कुरा दिया। बच्चे की मुस्कराहट में माँ ने भी पूरा साथ दिया।

और इस तरह जिले-नफे की समझदारी से एक बच्चे का भविष्य अंधकार में जाने से बाल-बाल बच गया।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

Photo credits - Pradeep Yadav 

शनिवार, 16 सितंबर 2023

व्यंग्य : उपयोगिता का दौर

 


     ज का दौर उपयोगिता का दौर है। जब तक आप उपयोगिता की कसौटी पर खरे उतरते हैं आप सिरमौर हैं वरना किसी और का शुरू हो जाता दौर है। यूनानी विचारक प्लेटो के अनुसार एक गोबर से भरी टोकरी भी सुन्दर कही जा सकती, यदि वह उपयोगिता रखती है। इसलिए इस संसार में जीने के लिए आपको अपनी उपयोगिता समाज के समक्ष सिद्ध करनी ही पड़ेगी। यदि आपमें उपयोगिता का अभाव है, तो फिर आपको समाज में नहीं मिलना भाव है। अब आपके मस्तिष्क में ये प्रश्न कौंधेगा, कि इस ससुरी उपयोगिता का मानक भला है क्या? इस प्रश्न का बड़ा सरल सा उत्तर है, कि जब तक आप दूसरों के काम आ सकते हैं या उनकी सुख-सुविधा को बनाए रखने में सहयोगी बने रहने की योग्यता रखते हैं तब तक आपका सम्मान है। जिस दिन आपकी उपयोगिता समाप्त हुई उसी दिन आपको समाज के उपयोगिता प्रेमी जीवों का अंतिम प्रणाम है। एक छात्र को ही ले लीजिए। वह बेचारा दिन-रात परिश्रम करते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता है। उसे आरंभ में कई प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता का सामना करना पड़ता है। इन असफलताओं के दौर में वह समाज के लिए अनुपयोगी जीव होता है। उससे बात करना तो दूर उसे आजू-बाजू भी भटकने नहीं दिया जाता तथा साथ में उसे ताने मार-मार कर उसका जीवन दुष्कर कर दिया जाता है। जैसे ही उस छात्र का भाग्य करवट लेता है और वह किसी प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण कर लेता है, तो उससे अनुपयोगी का पदक वापिस लेकर उसके सिर पर उपयोगिता का मुकुट सम्मान सहित धर दिया जाता है। अब अपनी हिन्दी भाषा की बात करें तो कुछ लोग हिन्दी के बल पर ही कमाएंगे और खाएंगे, किन्तु जब सम्मान देने का समय आएगा तो अंग्रेजी में बड़बड़ाते हुए अंग्रेजी के ही गुण जाएंगे। ऐसी दोहरी मानसिकता वाले जीवों के लिए जब तक हिंदी की उपयोगिता है, तभी तक वे उसके साथ रहते हैं। ऐसे जीवों के लिए हिंदी की उपयोगिता हिंदी पखवाड़े के बीच ही सर्वाधिक होती है। हिंदी पखवाड़े में ये जीव हिंदी के काँधे पर सवार हो हिंदी को समर्पित कार्यक्रमों में मंच पर विराजमान होने का सुख प्राप्त करेंगे, मानदेय राशि से भरे लिफाफे और हिंदी सेवी सम्मान व पुरस्कार बटोरेंगे, किंतु जैसे ही हिंदी पखवाड़ा समाप्त होगा ये जीव पखवाड़े के बीच मिली सुख-सुविधा को उपलब्ध करवाने वाले भले मानवों को थैंक यू वैरी मच का संदेश भेज कर पुनः अंग्रेजी के चरणों में लौटना आरंभ कर देंगे। वैसे इसमें इनका दोष नहीं है क्योंकि ये दौर ही उपयोगिता का है न कि अनुपयोगिता का। है कि नहीं?

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रचना तिथि - १४ सितंबर, २०२३

चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 9 सितंबर 2023

जी-20 आला रे


     राजधानी दिल्ली और एनसीआर में उत्सव का माहौल है। जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन के उपलक्ष में दिल्ली एनसीआर दुल्हन की भांति सज चुके हैं। कूड़ा-करकट और गंदगी बहुत उदास हैं। उन बेचारों को उठा-उठा कर आयोजन स्थल से दूर ले जाकर पटका जा रहा है। गली-मोहल्ले और सड़कें चमचमा रहे हैं। कुरूपता अचानक से जाने कहां लापता हो गयी है। चहुं ओर उत्सव का माहौल है। ऐसा लगता है कि जैसे हर कोई गा रहा हो जी-20 आला रे। अभावों में भी सुखद स्वप्नों के सहारे जीने वाले देश को आस है, कि जी-20 शिखर सम्मेलन उनके भविष्य को स्वर्णिम बनाएगा। जी -20 आला रे गीत का गायन करते हुए जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए सभी देशवासी पूरे जी-जान से जुटे हुए हैं। देश की राजधानी के चप्पे-चप्पे में और इसकी सीमाओं पर सुरक्षा के लिए तैनात जवान अन्य एजेंसियों संग इस प्रयास में है कि ये आयोजन सफल हो जाए। विश्व बंधुत्व की ओर भारत को अग्रसर करने के लिए लोग कष्टों को सुख मान कर हर्षित व गर्वित हैं। राजधानी दिल्ली व एनसीआर लीप-पोत कर सजाए गए अपने आकर्षक रूप को लोगों के नैनों के दर्पण में निहारते हुए इस असमंजस में हैं कि वे इस पर इतराएं, इठलाएं या फिर से अपने पूर्व रुप में आने के लिए समय काटते जाएं। विदेशी मेहमानों के आगमन से उल्लास से भरी ये धरती विश्व बंधुत्व व प्रगति के स्वप्नों को साकार करने के लिए अत्यधिक उत्साहित है। अब जाने ये स्वप्न साकार होंगे या फिर बाहर से आया कोई बहुरूपिया अपने चेहरे पर बंधुत्व का मुलम्मा चढ़ा कर इस बंधुत्व को तार-तार करने के अपने कुत्सित उद्देश्य को पूर्ण कर लौट जाएगा। बहरहाल इस आयोजन को सफल बनाने के लिए कई रातों की नींद की बलि दे चुकीं आँखें मिलकर इसकी सफलता की आस के साथ निरंतर गुनगुना रही हैं जी-20 आला रे।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 2 सितंबर 2023

दंगे के बाद


     दोनों समुदायों की भीड़ आमने-सामने खड़ी हो एक-दूसरे का खून बहाने को तैयार थी। उन्माद में कमी न आए इसलिए समय-समय पर दोनों पक्षों का नेतृत्व कर रहे नेता धार्मिक नारे लगाकर अपने-अपने धर्म की खातिर मर-मिटने के लिए उन्मादी भीड़ को दुष्प्रेरित कर रहे थे। दोनों समुदायों के बीच बेचारा भाईचारा धरती पर लहूलुहान हो दर्द से बुरी तरह कराह रहा था। उसके बगल में ज़मीन पर पड़ी गंगा-जमुनी तहजीब भी लुटी-पिटी हालत में आंसू बहा रही थी। ये सब देखकर मियाँ दंगे लाल मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। भाईचारे ने ये जानते हुए भी कि उसका चारा बनना तय है उन्मादी भीड़ से पूछा - आप सभी क्यों एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हो?

भाइचारे के सवाल के जवाब में एक तरफ से आवाज आई मज़हब की खातिर और दूसरी ओर ध्वनि गूंजी धर्म की रक्षा के लिए।

गंगा-जमुनी तहजीब ने उन्हें समझाया - ये सब करने से तुम सबको सिवाय खून-खराबे के कुछ हासिल नहीं होनेवाला है।

मजहब की राह में में क़ुर्बान होने से हमें शहादत मिलेगी। एक तरफ से कोई उन्मादी चिलाया। हां हां धर्म के लिए मर-मिटने से हम धर्मयोद्धा कहलाएंगे। दूसरी ओर से कोई अन्य उन्मादी हुंकारा।

भाईचारा गुस्से में चीखा - किसी को कुछ नहीं मिलना। दंगे के बाद या तो तुम सबकी लाशों को चील-कुत्ते खायेंगे या फिर तुम सब सालोंसाल जेल में पड़े हुए अपनी-अपनी जमानत होने का इंतज़ार करते रहोगे।

ये सुनकर दोनों ओर की उन्मादी भीड़ ठिठक गई। मजहब के ठेकेदारों ने मामला बिगड़ते देख मज़हबी नारे लगाने शुरू कर दिए। भीड़ के मन-मस्तिष्क में भीतर ठिठक कर रुका उन्माद फिर से सिर उठा कर खड़ा हो गया। 

मियाँ दंगे लाल ने ये नज़ारा देखकर एक खूंखार ठहाका लगाया।

तभी गंगा-जमुनी तहजीब कोशिश करके उठी और बोली - अरे बेवकूफों, जिनके बहकावे में आकर तुम सभी अपना और अपने बच्चों का जीवन बर्बाद करने जा रहे हो कभी उनसे इस बारे में पूछा है, कि उनके खुद के बच्चे तो विदेश में पढ़-लिखकर अपना भविष्य बना रहे हैं और वे तुम सबको आपस में भिड़वा कर तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का भविष्य खराब करवाने जा रहे हैं।

गंगा-जमुनी तहजीब की बात पर जहां मजहबी ठेकेदार बगलें झांकने लगे, वहीं भीड़ के मन-मस्तिष्क में तन कर खड़ा हुआ उन्माद अचानक ढीला पड़ कर बैठ गया।

भाईचारे ने गंगा जमुनी तहजीब की बात को आगे बढ़ाया - हां हां इन धर्म के ठेकेदारों से कहो कि ये अपने बच्चों को विदेश से बुलाकर भीड़ का नेतृत्व करने को कहें।

ये सुनते ही दोनों ओर की भीड़ का उन्माद धाराशाही हो गया। ये देखकर मियाँ दंगे लाल भी अपने सिर पर पांव रखकर वहां से भाग लिए।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

चित्र गूगल से साभार

शनिवार, 26 अगस्त 2023

चंदा मामा बस एक टूर के


     चंदा मामा आँखें बंद किए हुए कुछ गुनगुना रहे थे, कि तभी उन्हें आभास हुआ, कि उनके दक्षिणी ध्रुव पर कोई धीमे से उतरा है। एक बार को तो उन्होंने विचार किया कि यह उनका भ्रम है, लेकिन तभी वंदे मातरम और जय हिंद की गूंजती ध्वनियों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि कोई न कोई तो उनसे मिलने आया है। उन्होंने फिर गुनगुनाना आरंभ कर दिया - लो आ गया दीवाना कोई, गाने को तराना हिंद का। 

चंद्रयान-3 ने चंदा मामा को अपना परिचय देते हुए कहा - चंदा मामा, मैं चंद्रयान-3 हूँ। मैं हिंदुस्तान से आया हूँ। 

चंदा मामा ने तंज कसा - कमाल है जिस देश में जाति, समुदाय और धर्म की राजनीति से ही लोगों को समय नहीं मिल पाता। दूसरे के महापुरुषों और योद्धाओं का अपरहण कर अपनी जाति का ठप्पा लगाने में व्यस्त रहने वाले देश को भला इतनी फुर्सत कैसे मिल गयी जो तुम्हें यहाँ भेज दिया। 

 चंद्रयान-3 ने हँसते हुए कहा - चंदा मामा, जिसकी जैसी प्रवृत्ति होगी, वह वैसा व्यवहार तो करेगा ही है। हिंदुस्तान में ऐसे धूर्त और मूर्ख लोगों के बजाय उन लोगों की संख्या अधिक है जिनकी प्रवृति है अपने देश के नाम और सम्मान को लगातार ऊंचा उठाने की कोशिश करते रहना। आज मेरा आपसे मिलना उसी कोशिश का ही सुखद परिणाम है।

चंदा मामा ये सुनकर खुश हो गए - ये तो बहुत अच्छी बात है। अच्छा ये बताओ भांजे कि हिंदुस्तान से मेरे लिए क्या उपहार लेकर आए हो?

चंद्रयान-3 ने अपनी जेब से राखी निकाली और चंदा मामा को सौंपते हुए कहा - चंदा मामा, आपके लिए उपहार तो देशवासियों ने ढेर सारे सौंपे थे, लेकिन इस राखी के प्रेम का भार इतना अधिक हो गया था कि उन सभी उपहारों को साथ न ला पाया।

चंदा मामा भावुक होते हुए बोले - इससे बड़ा और कीमती उपहार तो कोई हो भी नहीं सकता। अच्छा अब ये बताओ कि हिंदुस्तान में अभी भी मेरे लिए कविता या गीत गाते हैं कि नहीं?

ये पूछ कर उन्होंने चंदा मामा दूर के' कविता को गुनगुनाना आरंभ कर दिया।  

चंद्रयान-3 मुस्कुराते हुए बोला - चंदा मामा, इन दिनों हिंदुस्तान में कविता या गीत के बजाय ऑनलाइन नाचने का चलन चल पड़ा है। लोग अपनी बहू-बेटियों को सोशल मीडिया पर बेशर्मी से दिन-रात नचवा रहे हैं और खुद भी उनके साथ ठुमके लगा रहे हैं। लाज और मर्यादा को उन्होंने खूँटी पर टांग दिया है। हालाँकि आपके चाहने वाले अभी भी आपको कविताओं और गीतों में जीवित रखे हुए हैं। पर..।

चंदा मामा ने पूछा - पर क्या?

चंद्रयान-3 ने बताया - पर आपकी प्रिय कविता में थोड़ा सा बदलाव आ गया है।

चंदा मामा - कैसा बदलाव?

चंद्रयान-3 ने हँसते हुए बताया - कविता में अब चंदा मामा दूर के नहीं बल्कि बस एक टूर के हो गए हैं।

     ये सुनते ही चंदा मामा खिलखिला कर हँसने लगे। चंद्रयान-3 ने तिरंगा झंडा निकाल कर चंदा मामा के ऊपर फहरा दिया। ये देख मन ही मन जल रहे देश के दुश्मनों के सीनों को अंतरिक्ष से टूट कर गिरते धूमकेतुओं ने धरती के बजाय उन पर ही गिर कर उन्हें जला कर पूरी तरह खाक कर दिया।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

कार्टून गूगल से साभार 

शनिवार, 19 अगस्त 2023

हैडपंप का पाकिस्तान को खत


     पाकिस्तान में दूसरी बार गदर मचने के बाद बुरी तरह घायल हुए हैंडपंप ने अपनी सरकार को खत लिखा है। जिसमें उसने मांग की है कि अब उसे जमीन से पानी निकालने के काम से वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम के तहत रिटायर कर दिया जाए और उसके बेटे टोंटी वाले नल को मुल्क की खिदमत करने का मौका दिया जाए। उसने इसकी वजह बताते हुए कहा है कि वह खुद की जमीन उखाडू बेइज्जती से बहुत ज्यादा दुःखी हो चुका है। हर बार सरहद पार से कोई तारा सिंह आता है और उसका सितारा गर्दिश में डाल देता है। पाकिस्तान की फ़ौज और पुलिस देखती रह जाती है और वह उस हैडपंप को उखाड़ कर उसके जरिए उसके मुल्क के लोगों का बुरी तरह बैंड बजवा कर अपने बीबी-बच्चों के साथ वापिस अपने मुल्क़ को लौट जाता है।

     आखिरकार वह कब तक पड़ोसी मुल्क के उस खूंखार इंसान के हाथों खुद की, अपने मुल्क की और अपने मुल्क के लोगों की हर बार होने वाली बुरी हालत और बेइज्जती को बर्दाश्त करता रहेगा। उसने आगे समझाते हुए कहा है कि पिछली बार गदर में सिर्फ अपने मुल्क के लोग परेशान थे पर पड़ोसी मुल्क के लोगों ने खूब जमकर मजा लिया था। लेकिन इस बार तो पड़ोसी मुल्क भी हमारे साथ-साथ रो रहा है। दूसरे गदर में सकीना की ओवरएक्टिंग और हद से ज्यादा रोने-धोने ने उसके लोगों के दिलोदिमाग में सिनेमा से ऊब पैदा कर दी है। वे बेचारे तारा सिंह के गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने से अपने कान के परदे फटने की चिंता से बेहद घबराए हुए हैं। उस ओर के वीआरएस ले चुके हैंडपंपों ने दुत्कारते हुए पैगाम भेजा है, कि अपने देश से कहो कि बेशक अपने आकाओं से थोड़ी और भीख मांगनी पड़े पर अब अपने देश के हैंडपंपों को वीआरएस देकर विश्राम करने और टोंटी वाले नलों को काम पर लगाने का आदेश जारी कर दे वरना तीसरा गदर आएगा और तुम्हारे देश की बत्ती गुल करके चला जायेगा। बाकी कुछ बचेगा तो हमारे देशवासियों द्वारा दिया गया श्राप तुम्हारा तिया-पांचा कर देगा। तुम्हारे देश के हठ के कारण हमारे देशवासी तीसरी बार गदर देखने को विवश होंगे। कहीं ऐसा न हो कि पूरा भारत क्रोध में आकर तुम्हारे देश के सारे हैंडपंपों को उखाड़ कर तुम्हारा ढंग से बैंड बजा डाले। 

     बेचारे हैडपंप ने पाकिस्तान सरकार को आगे समझाते हुए लिखा है, कि उसे वीआरएस देने से मुल्क का आने वाला कल महफूज़ रहेगा और इस बहाने उसके बेटे टोंटी वाले नल को भी रोजगार मिल जायेगा, जिससे कि वह आवारागर्दी छोड़ कर अपने मुल्क़ की तरक्की और बेहतरी में कुछ न कुछ मदद कर पायेगा । इससे ये फायदा होगा कि तारा सिंह को जब पाकिस्तान के हैंडपंपों को वीआरएस दिए जाने का पता चलेगा, तो शायद वह हमसे भी तबाह और पिछड़े किसी और मुल्क में अपने हैडपंप उखाड़ने के शौक को पूरा करने के लिए चल पड़े और बॉलीवुड के जरिए पाकिस्तान की दुनिया भर में बार-बार, लगातार होने वाली बेइज्जती का सिलसिला खत्म हो जाए।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

कार्टून गूगल से साभार

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

मौजमस्ती दर्शन


     प्राचीन काल में चार्वाक नाम के एक ऋषि हुए थे। उन्होंने अपने चावार्क दर्शन में कहा है ‘यावद् जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋण कृत्वा, घृतं पीवेत्’। आधुनिक काल में हमें भी उनकी विचारधारा 'जब तक जिओ सुख से जिओ, उधार लो और घी पिओ।' को चरितार्थ करनेवाले कई ऋषियों की प्राप्ति हुई है। ऐसे ऋषि राजनीति में भी अपनी गहरी पैठ जमाये हुए हैं और देश के विभिन्न प्रदेशों की सत्ता में जमे हुए अपनी हर नाकामी के लिए दूसरों को दोषी सिद्ध करने के खेल में महारत हासिल कर चुके हैं। 

     जैसे कि हर विभाग में दो प्रकार के जीव होते हैं। इनमें पहले प्रकार के जीव अपने विभागीय कार्य को बड़े ही परिश्रम से करते हुए अपने काम से काम रखने के आदी होते हैं, वहीं दूसरे प्रकार के जीव कुछ भी करने के बजाय इधर-उधर उछल-कूद मचाते हुए बड़े अधिकारियों की चमचागीरी और उनके कान फूँककर ही अपने कार्यालय के अनमोल समय को व्यतीत करते हैं। अब न जाने विभाग के ये उछल-कूद मचाऊ कर्मचारी इन राजनीतिक ऋषिओं से प्रभावित हैं या फिर राजनीतिक ऋषि महाराज स्वयं इन कर्मचारियों से प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं।

     इन राजनीतिक ऋषियों ने ऋषि चावार्क के सुविधावादी विचारों से प्रेरणा लेकर कलियुग में 'मौजमस्ती दर्शन' का सृजन कर लिया है। वैसे तो आधुनिक पीढ़ी पर अक्सर ये आरोप लगाया जाता है, कि वो अपनी प्राचीन परंपराओं से कटती जा रही है, लेकिन आधुनिक युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि राजनीतिक ऋषियों ने अपनी इस प्राचीन चार्वाकी परंपरा का मान रखते हुए उपरोक्त दर्शन के माध्यम से इस अद्भुत प्राचीन संस्कार को जीवन प्रदान किया है। हो सकता है कि आनेवाले समय वे अपने इस दर्शन का थीम सॉन्ग 'मस्तराम मस्ती में, आग लगे बस्ती में' को ही बना लें।

     बहरहाल ये सभी राजनीतिक ऋषि सत्ता का सदुपयोग करते हुए ‘मौजमस्ती दर्शन’ को चरितार्थ करते हुए हजारों की मदिरा एक दिन में ही डकार जाते हैं। बेशक चाहे इनके प्रतिनिधि क्षेत्र में बच्चियाँ भूख से बिलबिला कर अपने प्राण त्याग दें पर ये राजनीतिक ऋषि छप्पन भोग लगाना और उन भोगों को बिना डकार लिए हजम कर जाना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। इनका मानना है कि छोटी-मोटी बातों अथवा घटनाओं से ‘मौजमस्ती दर्शन, पर बिलकुल भी आँच नहीं आनी चाहिए। ऋषि चार्वाक भी स्वर्ग में अपने साथियों से उधार लेकर घृतपान करते हुए वहाँ से अपने कलियुगी शिष्यों और उनके अद्भुत कार्यों को देखकर धन्य होते हुए मंद-मंद मुस्कुराते रहते हैं।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

शनिवार, 29 जुलाई 2023

अंतराष्ट्रीय कवि का त्यागपत्र


     वि लिक्खड़ लाल ने अचानक अपने सोशल मीडिया के बायोडाटा में स्वयं को राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि अपडेट कर दिया। उनके अंतराष्ट्रीय कवि के रूप में अपडेट होते ही उनके चेलों ने अपने गुरु की प्रशंसा के पुल बाँधते हुए सोशल मीडिया पर पोस्टों की बाढ़ ला दी। अब कवि लिक्खड़ लाल के चेले भी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय कवि बनने के दिवास्वप्न देखने लगे। कवि लिक्खड़ लाल का कविता की चेरी तुकबंदी के संग सफर दो-चार साल पहले ही शुरू हुआ था। उन्होंने तुकबंदी को ही कविता माना और स्वयं को तुकबंद के बजाय कवि। जहाँ उनकी आयु के साथी नौकरी पेशा होकर अपने बाल-बच्चों पढ़ा-लिखा कर सक्षम बनाने के लिए संघर्षरत थे, वहीं लिक्खड़ लाल ने मलूकदास कवि के अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।। नामक दोहे को गाँठ बाँध कर उसी का अनुसरण करने की भीष्म प्रतिज्ञा कर चुके थे। उनके बुजुर्ग माँ-बाप ने उन्हें अनगिनत बार गरियाया और उनकी पत्नी ने उन्हें सुबह-शाम, दिन-रात ताने दे-देकर समझाने की भरकश कोशिश की, लेकिन उनके कान पर जूं नहीं रेंगा। आखिरकार एक दिन थकहार कर उनकी पत्नी ने घर का चूल्हा ठंडा न होने के लिए प्राइवेट नौकरी पकड़ ली। अब बेचारी पत्नी घर और नौकरी की चक्की में दिन-रात पिसती रहती और कवि लिक्खड़ लाल तुकबंदियों के झूले में आनंद से झूला झूलते रहते। अपने आस-पास के लोगों को अपनी तुकबंदियों से धराशाही करने के बाद एक दिन उनका पदार्पण सोशल मीडिया पर हो गया। दरअसल उनके शहर में रहने वाले उनकी तुकबंदियों से दुखी जीवों ने अपने-अपने मस्तिष्क और कानों को उनकी तुकबंदियों के अत्याचार से बचाने के लिए एक दिन चंदा करके एक एंड्राइड फोन ख़रीदा और एक तकनीक बुध्दि से दक्ष युवा ने उस फोन का सदुपयोग कर कवि लिक्खड़ लाल का एक सोशल मीडिया अकाउंट बनाया और उन्हें सोशल मीडिया पर उनकी तुकबंदियों की पताका फहराने के लिए छोड़ दिया। सोशल मीडिया पर कुछ दिन अपनी तुकबंदियों के साथ चहलकदमी करने के बाद उन्होंने स्वयं को राष्ट्रीय कवि घोषित कर दिया। धीमे-धीमे कवि लिक्खड़ लाल को सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे लिक्खड़ों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिन्होंने बिना-बात के निरंतर लिखकर और अपने लिखे को नियमित रूप से पुस्तक के रूप में छपवा कर जाने कितने हरे-भरे पेड़ों की हत्या करने का पुण्य अर्जित किया था। उन लिक्खड़ों में कुछ कवि लिक्खड़ लाल के गुरु बने तो कुछ ने उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली। अब सभी लिक्खड़ मिलकर सोशल मीडिया पर कविता का नाम देकर तुकबंदियों को पेलते रहते, जिसे देखकर बेचारी कविता मन मसोसकर सुबकते हुए आँसू बहाती रहती। धीमे-धीमे कवि लिक्खड़ लाल ने विदेश में बसे लिक्खड़ों से संपर्क स्थापित कर लिया। कुछ वर्षों की ऑनलाइन चमचागीरी के फलस्वरूप एक दिन विदेश में बसे कवि महालिक्खड़ लाल के निमंत्रण पर कवि लिक्खड़ लाल ने वैश्विक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में विश्व भर के चुने हुए लिक्खड़ों के बीच अपनी तुकबंदियों को सुना-सुना कर सोशल मीडिया पर भूचाल ला दिया। इस ऑनलाइन काव्य गोष्ठी के बाद कवि लिक्खड़ लाल ने स्वयं को राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि के रूप में अपडेट कर दिया। उनके राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि होने की बात उनके पड़ोसी शहर में रहने वाले दूसरे लिक्खड़ कवि से बर्दाश्त न हुई और उसने लिक्खड़ लाल के अंतराष्ट्रीय कवि होने पर तंज कस दिया। उस तंज से कवि लिक्खड़ लाल ने तुकबंदी कर एक कथित कविता को रचा और पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि को टैग करके सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। कवि लिक्खड़ लाल के चेलों ने उस पोस्ट पर कमेंट के रूप में माँ-बहन के सम्मान को समर्पित एक से बढ़कर एक गालियों की लाइन लगा दी। अपने सुसंस्कृत चेलों के संस्कारपूर्ण कमेंटों पर लव रिएक्शन देते हुए कवि लिक्खड़ लाल गौरवान्वित होने लगे। तभी उन्हें स्वयं को किसी पोस्ट में टैग होने की नोटिफिकेशन मिली। जब टैग की गयी पोस्ट पर जाकर उन्होंने देखा तो उनके होश उड़ गए। वो पोस्ट उनके प्रतिद्वंदी लिक्खड़ कवि थी। उस पोस्ट में वह अपने पहलवान साथियों के साथ लाइव होकर कवि लिक्खड़ लाल का तिया-पाँचा करने की धमकी देते हुए उनके घर की ओर प्रस्थान कर चुका था। ये देखते ही कवि लिक्खड़ लाल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उन्होंने आनन्-फानन में अंतराष्ट्रीय कवि की पदवी को त्यागने की घोषणा करते हुए एक पत्र लिखा और उसे पडोसी शहर के लिक्खड़ कवि को क्षमा याचना के साथ टैग कर अपने सोशल मीडिया अकॉउंट पर पोस्ट कर दिया और अपने शहर से तड़ीपार हो गए। पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि ने कवि लिक्खड़ लाल के त्यागपत्र को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। आजकल पड़ोसी शहर का लिक्खड़ कवि अंतराष्ट्रीय कवि की पदवी धारण कर चुका है। कवि लिक्खड़ लाल के चेलों ने भी अपनी निष्ठा का मुख पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि की ओर मोड़ कर उसकी शिष्यता ग्रहण कर ली है। ये सब देखकर कवि लिक्खड़ लाल अपने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट पर बैठे-बैठे आँसू बहाते रहते हैं और उनकी तुकबंदियाँ उनकी फिरकी लेती रहती हैं।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 23 जुलाई 2023

पबजी वाला प्यार


      मय के साथ-साथ प्यार करने के अंदाज ने भी काफी प्रगति कर ली है। अब पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमते हुए प्यार का इजहार करने वाला दौर नहीं रहा और न ही अब अपने प्यार को जताने के लिए सालों-साल तक अपने प्रेमी या प्रेमिका के गली-मोहल्ले या कूचे में भटकते रहने का समय रहा। अब तो पबजी वाले प्यार का ज़माना आ गया है। पबजी पर ऑनलाइन खेल खेलते हुए कब खेल-खेल में प्यार हो जाए पता ही नहीं चल पाता है। प्यार भी ऐसा होता है कि उसकी बाधा बनने वाली देश की सीमाएं भी तोड़ दी जाती हैं। हालांकि पुराने वाले प्यार की तरह पबजी वाला प्यार भी जाति, धर्म या समुदाय को स्वीकार नहीं करता, लेकिन इस नए-नवेले प्यार के रुप ने प्यार के लिए हर उल्टा-सीधा उपाय आजमाने की नीति अपनाई है। इश्क़ और जंग में सब जायज़ है मुहावरे को सही मायने में चरितार्थ इस पबजी वाले प्यार ने ही किया है।
     कई साल पहले एक फिल्म आई थी जिसमें नायक अपनी प्रेमिका को वापिस अपने देश में लाने के लिए पड़ोसी देश में जाकर प्यार के दुश्मनों से भिड़ जाता है और यहां तक कि गुस्से में उनका हैंडपंप तक उखाड़ डालता है। इधर मामला दूसरे टाइप का है। पबजी वाले प्यार में किसी से भिड़ने के बजाय खेल-खेल में बड़ा लंबा खेल खेलते हुए ऑफलाइन प्रेमी को दुलत्ती जड़कर और उसका सबकुछ बेचकर ऑनलाइन प्रेमी से प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए रफूचक्कर हो प्रेमिका द्वारा पड़ोसी देश में अपने प्रेमी के यहां पहुंचने का शातिर खेल खेला जाता है। इस शातिर खेल को देखकर पड़ोसी देश का मीडिया और जन परेशान नहीं होते, बल्कि इसमें अपना गौरव और जीत का अनुभव करते हैं। मजे की बात ये है कि कुछ साल पहले जिस देश में पबजी खेल को प्रतिबंधित कर दिया गया था, उस देश में पबजी वाला प्यार कुलांचें भर रहा है। 
    देश का मीडिया अपने टीआरपी वाले प्यार में डूबकर मदहोश हो पबजी वाले प्यार की गाथा सुबह-शाम, दिन-रात सुना-सुना कर देश की जनता का भेजा खाली कर डालता है। सोशल मीडिया पर लिखाड़ू वीर पबजी वाले प्यार के पक्ष-विपक्ष में धड़ाधड़ लेख लिखकर सोशल मीडिया की कमर तोड़ने के लिए कमर कस लेते हैं। कोई इस पबजी वाले प्यार को देश की जीत मानता है तो कोई धर्म या समुदाय की। इस जीत के उत्सव में पूरा देश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से डूब जाता है। इस बीच इस देश की सीमा एक पल को पबजी वाले प्यार की प्रेमिका की धूर्तता और चतुराई की सीमा को देखती है और दूसरे पल को देशवासियों की मूर्खता की सीमा को।

रविवार, 16 जुलाई 2023

अंतर्वस्त्र की व्यथा


     न दिनों पतियों का अंतर्वस्त्र कच्छा भयभीत व व्यथित है। उसका भयभीत व व्यथित होना उचित है। अभी हाल ही में एक प्रगतिशील नारी ने शब्दों की बुरी तरह धुनाई कर एक कथित कविता बना कर उसे रील प्रेमी नवनृत्यांगनाओं के बीच सोशल मीडिया पर मटकने के लिए छोड़ दिया। अब वह कथित कविता विवश हो सोशल मीडिया पर मटक रही है और लाइक-डिसलाइक व अच्छी-बुरी प्रतिक्रियाओं को विवश हो गटक रही है। भयभीत व व्यथित कच्छा उसकी ऐसी स्थिति देखकर पसीना-पसीना हो रखा है। उसे इस बात का भय है कि इस कविता से कहीं ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो जाए कि उसका आस्तित्व ही समाप्त हो जाए। कच्छा जहाँ एक ओर भयभीत है वहीं पतियों से अप्रसन्न भी है। उसकी अप्रसन्नता इस बात से है कि पतियों ने स्वयं की इच्छाओं को तिलांजलि देकर परिवार की इच्छाओं और आवश्यकताओं को सर्वोपरि रखा। स्वयं का कच्छा निरंतर घिस-घिस कर अदृश्य होने की ओर अग्रसर रहा, किन्तु उसकी चिंता छोड़ अपने बाल-बच्चों और पत्नियों के अंतर्वस्त्रों व बहिर्वस्त्रों में कोई कमी न होने दी। कलियुग ने पूरे विश्व के हृदय में परिवर्तन कर दिया, किन्तु इस पति नामक जीव के हृदय ने जाने क्यों सौगंध खा रखी है, कि भैया हम न बदलने वाले। हम तो हर युग में जैसे थे की स्थिति में ही रहेंगे। पतियों की इस जैसे थे की स्थिति से कच्छे का तन-मन सुलग उठता है। कच्छे ने अपना आस्तित्व बचाने के लिए पतियों का माइंड वाश करने का प्रयास किया था, कि पति तो बहुत व्यस्त प्राणी होता है और वह जितना समय अपना कच्छा धोने में व्यय करेगा उतने समय में तो वह अपने परिवार की आवश्यकता की किसी न किसी वस्तु की व्यवस्था कर लेगा। हालाँकि ये कच्छे की अपने-आपको बचाने की एक चाल भर थी। वास्तव में कच्छे को धोते समय पति लोग अनावश्यक बल का प्रयोग करते थे, जिसके परिणामस्वरुप उसकी पसलियाँ क्षत-विक्षत हो जाती थीं। इसके अतिरिक्त पति महोदय कच्छे को धोते समय वाशिंग पाउडर और साबुन की इतनी तगड़ी डोज दे देते थे, कि कच्छे का अंग-प्रत्यंग वाशिंग पाउडर और साबुन से भर उठता था। चाहे जितना भी पानी में उसे निकालो पर वाशिंग पाउडर और साबुन के अंश उसमें जमे रहते थे। जिसका परिणाम ये मिलता था कि कच्छे के शरीर में बुरी तरह खुजली उठती थी और कच्छे को खुजली की थोड़ी मात्रा पतियों को भी समर्पित करनी पड़ती थी। फलस्वरूप पति बेचारे दिन-रात कच्छे द्वारा घेरे गए अंग को खुजाते रहते और अपने निर्दयी नाखूनों से कच्छे में छोटे-मोटे छेदों की अभिवृद्धि कर देते थे। वे छोटे-मोटे छेद ही आगे चलकर बड़े छेदों का रूप धरकर कच्छे के आस्तित्व को समाप्त कर डालते। कच्छे द्वारा माइंड वाश किए जाने के पश्चात् उसे धोने का भार पत्नियों पर आ गया। अब कच्छा अत्यंत प्रसन्न था। पत्नियां अपने नर्म व कोमल हाथों से और उचित मात्रा में वाशिंग पाउडर व साबुन का प्रयोग कर कच्छे को धोने लगीं। अब न तो उसकी पसलियां दुखती थीं और न ही उसका सामना खुजली से होता था। कुल मिला कर उसका अच्छा-खासा जीवन चल रहा था, किन्तु उसके ऊपर बनी कथित कविता ने उसके आस्तित्व को अचानक संकट में डाल दिया। अब कच्छा शांत हो उस कविता से समाज में उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है। देखें कि पत्नियों के नर्म व कोमल हाथों से उसके आस्तित्व की रक्षा हो पाती है या फिर उसके भाग्य में पतियों के हाथों पटक-पटक कर और खुजलाते हुए समाप्त होना ही लिखा है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 9 जुलाई 2023

बेवफाई के वक्तव्य का संशोधन

     ट्रेन से उतर कर प्लेटफार्म पर चलते हुए गला सूखने लगा तो वहीं दुकान से एक पानी की बोतल खरीद ली। फिर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में  पहुंच कर अपने गले को पानी से तर किया और दुकानदार द्वारा लौटाए गए रुपयों को क्रम से लगा कर जेब में रखने लगा। तभी अचानक मेरा ध्यान एक दस रूपए के नोट पर गया तो उस पर सोनम गुप्ता बेवफा है लिखा पाया। ऐसा नोट मेरे पास दूसरी बार आया था। जब मुझे ऐसा पहला नोट मिला था तब पहली बार मेरा सामना सोनम गुप्ता की बेवफाई से हुआ था। हो सकता है कि ये शरारत किसी  कथित प्रेमी की हो जो अपने एक तरफ़ा प्रेम को  ठुकराए जाने का बदला सोनम गुप्ता नामक किसी मासूम लड़की से ले रहा हो। ऐसा भी हो सकता है कि किसी सोनम गुप्ता ने किसी मासूम छोकरे की प्रेम कहानी को बेवफाई की कटार से छील डाला हो। इसी उधेड़-बुन में डूबा हुआ था कि रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में लगे टेलीविज़न पर एक व्यक्ति रोते हुए दिखायी दिया। समाचार था कि उस बेचारे ने पाई-पाई जोड़कर अपनी पत्नी को पढ़ाया-लिखाया, लेकिन उस पढ़ाई-लिखाई का फल ये मिला कि उसकी पत्नी क्लास वन अफसर बन गयी और जब उस बेचारे का गर्व से सीना फुला कर जश्न मनाने का समय आया, तब उसे अपनी अफसर पत्नी की बेवफाई का मातम मनाना पड़ रहा है। हालाँकि ये पहला मामला नहीं है जब किसी पति ने अपनी पत्नी के लिए अपना सबकुछ लुटा दिया और बदले में पत्नी की बेवफाई ही नसीब हुई। ऐसे अनेक मामले समाज में समय-समय पर आते रहते हैं। हालाँकि बेवफाई का मैडल केवल स्त्रियां ही नहीं जीततीं, इस मामले में पुरुष भी उनके तगड़े प्रतिस्पर्द्धी हैं। गाँव में जाने कितनी पत्नियां इस आस में अपना जीवन काट देतीं हैं, कि पढ़-लिख कर महानगर में नौकरी करने गया उनका पति एक दिन आएगा और उनके सारे सपनों को साकार करेगा। लेकिन उन बेचारी पत्नियों के सपनों को अपने स्वार्थ की भट्टी में झोंक कर उनके पढ़े-लिखे पति महानगरों में अपनी दूसरी सुंदर-सलोनी पत्नियों के पल्लुओं में खोये हुए बेवफाई का नया अध्याय लिख रहे होते हैं। रेलवे स्टेशन से निकल कर मैंने घर जाने के लिए ऑटो रिक्शा पकड़ा। ऑटो रिक्शा में सफर करते हुए कुछ सोच कर मैंने उस नोट पर लिखे वक्तव्य सोनम गुप्ता बेवफा है को संशोधित कर सिर्फ सोनम गुप्ता ही बेवफा नहीं है लिख दिया और ऑटो रिक्शा से उतर कर उस दस रूपये के नोट को अन्य नोटों के साथ ऑटो रिक्शा वाले के हवाले कर दिया। मैं घर में घुस ही रहा था, कि तभी अचानक एक बड़ी सी कार मेरे बगल में आकर रुकी। उसमें से हमारी कॉलोनी में सब्जी की रेहड़ी लगाने वाला संतोष उतरा और उतर कर मुझसे राम-राम किया। 

मैं उससे बोला - राम-राम संतोष, और सुनाओ कैसे हो?

संतोष ने बड़े ही संतोष के साथ उत्तर दिया - बाबू जी, राम जी की कृपा से बहुत अच्छे हैं।

अचानक मुझे शरारत सूझी और मैंने उससे पूछा - अरे भाई, तुम अपनी पत्नी को सिविल सर्विस की तैयारी करवा रहे थे। उसका कुछ परिणाम निकला?

संतोष के चेहरे पर अब संतोष के साथ मुस्कान भी आ गयी - हाँ बाबू जी, परिणाम बहुत शानदार निकला। श्रीमती जी, कलेक्टर बन गयीं हैं।

मैं प्रसन्न हो बोला - अरे वाह! ये तो बहुत अच्छा समाचार है। अच्छा ये बताओ कि अब तुम क्या कर रहे हो?

संतोष ने बताया - श्रीमती जी ने कलेक्टर बनने के बाद कपड़ों का एक शानदार शोरूम खुलवा दिया। और कभी सब्जी की  रेहड़ी लगाने वाला ये संतोष आज एक अच्छा-खासा बिजनेसमैन बन चुका है।

इतने सारे नकारात्मक समाचारों के बीच इस सुखद समाचार को सुनकर मन प्रफुल्लित हो उठा। मैंने ये सोच कर पीछे मुड़कर ऑटो रिक्शा वाले को देखा कि उसको दिए दस रुपए के नोट पर लिखे बेवफाई के वक्तव्य को फिर से संशोधित किए जाने की आवश्यकता है। पर वह ऑटो वाला जा चुका था। मैंने संतोष को  जलपान के लिए अपने घर में आमंत्रित किया, लेकिन उसने बताया उसके एक और कपड़ों के शोरूम का शहर के एक जाने-माने मॉल में उद्घाटन होना है। उसने किसी और दिन फुर्सत में आकर मिलने का वादा किया और राम-राम कर वहां से चला गया। घर के भीतर घुसते हुए अनायास जेब में हाथ गया तो वहां बीस रुपए का एक  मुड़ा हुआ नोट मिला। उसे खोल कर देखा तो उसमें भी सोनम गुप्ता की बेवफाई उपस्थित मिली। मैंने घर में घुसकर अपना बैग रखा और बाकी काम छोड़कर बीस रुपए के उस नोट में लिखे बेवफाई के वक्तव्य को संशोधित करने में जुट गया।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

शुक्रवार, 30 जून 2023

टमाटर महाराज की चिंता


     राजसभा सजी हुई थी। सिंहासन पर टमाटर महाराज अभिमान में चूर हो विराजमान थे। नगरवधू मंहगाई उनके चरणों की दासी बनी हुई उनकी सेवा में रत थी। सारी सब्जियां व फल बारी-बारी से टमाटर महाराज को प्रणाम कर राजसभा में स्थित आसनों पर उदास मन के साथ बैठ चुके थे। दालें अपने-अपने मुखों पर प्रसन्नता का झूठा आवरण चढ़ाए नृत्य करते हुए टमाटर महाराज का मनोरंजन कर रहीं थीं। प्याज देव से अदेव की श्रेणी में पहुंच टमाटर महाराज की भुजाओं को गीले नयनों संग धीमे-धीमे दबाने में व्यस्त थे। कालाबाजारियों के लिए टमाटर महाराज के निकट विशेष आसनों की व्यवस्था की गई थी। आम जनता को द्वारपाल बैगनों ने मुख्य द्वार पर ही रोक लिया था। आम जनता विवश हो दूर से ही टमाटर महाराज को देख कर दिवा स्वप्न में डूबी हुई लार टपका रही थी। तभी टमाटर महाराज ने सीसीटीवी ऑपरेटर भिंडी को आदेश दिया कि सीसीटीवी फुटेज देखकर हाल ही में सत्ता से पदच्युत हुए पेट्रोल महाराज की वर्तमान स्थिति का पता लगाया जाए। भिंडी त्वरित कार्यवाई कर पेट्रोल महाराज की वर्तमान स्थिति का पता लगा कर टमाटर महाराज के सम्मुख प्रस्तुत हुई।

टमाटर महाराज - कहो भिंडी क्या समाचार लाई हो?

भिंडी - महाराज, पेट्रोल के वर्तमान स्थिति प्याज की भांति बहुत खराब है।

प्याज के साथ दरबार में बैठे बाकी सभाजनों ने चौंक कर भिंडी को देखा। कभी प्याज को परमप्रिय महाराज से संबोधित करने वाली भिंडी के इस रूप को देखकर सभी ने उसे मन ही मन प्रणाम किया। बेचारे प्याज ने धीमे से सांस छोड़ते आह भरी और फिर से अपने कार्य में जुट गया।

तभी सेनापति कद्दू ने पेट्रोल को बंदी बनाकर राजसभा में प्रस्तुत किया।

सेनापति कद्दू - महाराज, ये दुष्ट डीजल और गैस के साथ आपको सिंहासन से हटाने का षड्यंत्र रच रहा था।

टमाटर महाराज ने पेट्रोल से पूछा - क्या ये सच है?

बेचारा पेट्रोल, टमाटर महाराज से दृष्टि नहीं मिला पा रहा था।

टमाटर महाराज - तू और तेरे साथी चाहे जितने भी प्रयत्न कर लें, किन्तु मुझे इस सिंहासन से नहीं डिगा पायेंगे।

इतना कहकर टमाटर महाराज ने जोर-जोर से हंसना आरंभ कर दिया।

टमाटर महाराज की हंसी में अनमने मन से राजसभा के बाकी सभाजनों ने भी साथ दिया।

तभी आकाशवाणी हुई - मूर्ख टमाटर, इस जग में कुछ भी चिरस्थाई नही है। जिस सिंहासन पर बैठ कर तू अभिमानित हो रहा है एक दिन उसी से औंधे मुंह नीचे गिरेगा।

टमाटर महाराज उस आकाशवाणी को सुनकर सकपका गए। फिर संभलकर उन्होने कड़क स्वर में राजसभा में पूछा - किसी ने कुछ सुना?

राजसभा में सभी ने एक स्वर में उत्तर दिया- नहीं महाराज!

टमाटर महाराज ने अनुभव किया कि सभी राजसभा जन मंद-मंद मुस्कुरा रहें हैं। तभी प्याज ने उत्साहित हो टमाटर महाराज की भुजाओं को और जोर-जोर से दबाने की प्रक्रिया अपनायी तथा दालों ने और अधिक आनंदित हो नृत्य करना आरंभ कर दिया। सभी ने कनखियों से देखा कि टमाटर महाराज के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं और वहां से अचानक पसीने की पतली धार बहने लगी।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

शुक्रवार, 16 जून 2023

अंग्रेजी का टैस्ट


   अंग्रेजी भाषा का हमारे देश में बहुत महत्त्व है। ये महत्त्व कुछ वैसा ही जैसा प्राचीन काल में संस्कृत और मध्यकाल में फारसी का था। एक कहावत भी तो है ‘हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या।’ हालाँकि आधुनिक समय में ये कहावत सिर्फ कहने को ही रह गयी है, क्योंकि अब हर कथित पढ़ा-लिखा फारसी नहीं, बल्कि अंग्रेजी का ज्ञान लेना अधिक उचित समझता है। हम भारतीयों में निरंतर जागरूकता आ रही है और हम पुरानी पहचान का सफाया करने में जुटे हुए हैं, सो हो सकता है कि किसी दिन हम उपरोक्त कहावत में से फारसी को संशोधित कर उसके स्थान पर अंग्रेजी को ससम्मान बिठा दें। बहरहाल अंग्रेजी से अपना मिलन कक्षा पांचवीं में हुआ था। अपन ग्राउंड फ्लोर के सरकारी फ्लैट के बाहर खड़े हुए थे कि ऊपर के किसी फ्लोर से एक पुस्तक नीचे आकर गिरी। पुस्तक प्रेमी होने के कारण अपन ने उसे उठाया और उसकी धूल झाड़कर उसके पन्ने पलटते हुए उसकी जाँच-पड़ताल करने लगे। पुस्तक अंग्रेजी का बेसिक ज्ञान सिखाने वाली थी। अपन ने उसका अध्ययन करके कुछ दिनों में अंग्रेजी में नाम लिखने सीख लिए। फिर एक अंग्रेजी बोलना सिखाने वाली पुस्तक मिल गयी। अपन ने उसके भी रट्टे मारने शुरू कर दिए। सरकारी स्कूल में अपने दोस्तों के बीच अंग्रेजी के दो-चार रटे हुए शब्दों की बदौलत अपन पढ़े-लिखे छात्रों की श्रेणी में आने लगे।

कुछ दिन बाद अपन का परिवार संग गाँव में जाना हुआ। एक दिन अपन गाँव के बच्चों संग एक खेत की मेंढ पर पर बैठे हुए थे। अपन को चारों ओर से गाँव के बच्चों ने घेर रखा था। 

तभी एक बच्चा बोला, "काय भैया, तुम तो सहर में पढ़त हौगे। तौ तुम्हें अंग्रेजी तो आतई हुइए।" 

अपन ने कहा, "हाँ थोड़ी बहुत आती है।" ये इसलिए कहना पड़ा क्योंकि अगर अपन मना करते तो गाँव के बच्चे अपन का मजाक उड़ाते। उनके अनुसार शहर में पढ़ते हो तो अंग्रेजी तो आनी ही चाहिए। 

तभी एक दूसरा बच्चा आगे आया और बोला, "तुम्हें अंग्रेजी आत है तो हमाए एक सवाल को जबाब देओ?" 

अपन ने गंभीर हो कहा, "पूछो!" 

बच्चे ने अकड़कर पूछा, "वाट डू यू वांट?" 

अपन ने झट से अपने राम जी को याद किया और आँखें बंद कर उस पुस्तक के पन्नों को टटोलने लगे जिनका रट्टा मार-मार कर अपन अपनी क्लास के दोस्तों पर अंग्रेजी के शब्दों को फैंकते रहते थे। अपने राम जी ने अपनी मदद की और उस अंग्रेजी बोलना सिखानेवाली पुस्तक का वो पन्ना आँखों के सामने आ गया जिसमें गाँव के बच्चे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर लिखा हुआ था। अपन ने झट से आँखें खोलीं और इठलाते हुए उत्तर दिया, "आई वांट ए गिलास ऑफ़ वाटर।" 

ये सुनकर वहाँ मौजूद सारे बच्चे एक साथ खुश होते हुए बोले,"अरे, जाको तौ अंग्रेजी आत है।" 

और इस तरह इस सरकारी स्कूल के छात्र की इज्जत बाल-बाल बच गई।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

विसंगतियों को सोटा लगाते हलीम आईना

 


     राजस्थान के कोटा शहर के हलीमा आईना पिछले चार दशकों से लेखन कर्म में जुटे हुए हैं। अब तक इनके तीन व्यंग्य कविता संग्रह क्रमशः 'हंसो भी, हंसाओ भी', 'हंसो मत हंसो' एवं 'आईना बोलता है' प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी रचनाएं देश-विदेश के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा अब तक ये कई पुरस्कार व सम्मानों से अपनी झोली को भर चुके हैं। सदैव की भांति हलीम आईना अपने एक हाथ में व्यंग्य कविता का सोटा और दूसरे हाथ में आईना लिए चहलकदमी करते हुए समाज में फैली हुईं विसंगतियों को पहले तो कस कर सोटा लगाते हैं फिर उसके बाद उनके विद्रूप चेहरे को आईना दिखाने का कार्य करते है। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

हलीम आईना - देखिए सुमितजी! मैं कविता लेखन को रोग नहीं मानता, यह तो ईश्वर प्रदत्त अति संवेदनशील मनोस्थिति से उपजता है जो दिल की आवाज बनकर लोगों के दिलों में उतर जाता है तथा मनोरंजन के साथ मार्गदर्शन भी करता है। यदि आप व्यंग्य की भाषा में इसे रोग माने तो मुझे ये रोग आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही लग गया था। हमारे हिन्दी के गुरूजी कहानियाँ लिखते थे तथा हमें अपनी कहानियों के समाचारपत्रो में प्रकाशित होने तथा आकाशवाणी में प्रसारित होने के विषय में समय-समय पर सूचित किया करते थे। इसके साथ ही साथ हमारे कोटा शहर के दहशरे मेले में जब मैं काका हाथरसी, हुल्लड़ मुरादाबादी, शैल चतुर्वेदी व मणिक वर्मा जैसे हास्य व्यंग्य कवियों को सुनता था तो मेरे मन में आता था कि यार ऐसा तो अपन भी लिख सकते हैं। यही सोचकर पहले कुछ कहानियाँ लिखीं फिर सोचा कि किसी एक विधा में ही अपनी पहचान बनानी चाहिए और फिर मैने हास्य व्यंग्य कविता को चुना। मेरी पहली रचना राष्ट्रदूत (साप्ताहिक ) में छपी उसके बाद विभिन्न मंचों पर मेरे काव्य पाठ का सिलसिला भी शुरू हो गया।

लेखन से आप पर कौन -सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

हलीम आईना - सुमित भाई! कविता लेखन से मुझ पर अच्छा ही प्रभाव पड़ा है। बुराईयों से बचे रहने के संस्कार तो सूफ़ी परिवार में जन्म लेने से जन्मजात थे ही, लेखन ने मुझे एक अच्छा पाठक भी बना दिया। मैं निरंतर अच्छा से अच्छा पढ़ने लगा। ईश्वर की कृपा से समय सीमा में काम करने, शुद्ध लेखन और सामाजिक सरोकार से जुड़े लेखन की तमीज मुझमें धीरे-धीरे विकसित होती चली गयी।

क्या आपको लगता है लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

हलीम आईना - सुमितजी! जिस कवि या लेखक की कथनी और करनी में अन्तर न हो और मानवता का हित उसके लेखन का उद्देश्य हो तो उसका लेखन निश्चित रूप से समाज में बदलाव लाने का काम करता है। सूफ़ी और संत कवियों ने यह काम किया भी है। इस बात का इतिहास गवाह है। आज भी कुछ लोग हैं जो इस कार्य में जुटे हुए हैं।

आपकी सबसे प्रिय रचना कौनसी है और क्यों?

हलीम आईना - मूलत : मैं हास्य व्यंग्य कवि हूँ या नहीं यह तो आप सब जानते ही होंगे। कवि या लेखक को अपनी हर रचना प्रिय होती है फिर भी आप पूछते हैं तो बता देता हूँ कि 'माँ ' पर लिखा मेरा एक दोहा है जिसे मैंने अपनी माँ के स्वर्गवास के बाद लिखा था मुझे सर्वाधिक प्रिय है -

माँ है मन्दिर का कलश, मस्जिद की मीनार।

ममता माँ का धर्म है, और इबादत प्यार।।

आप अपने लेखन से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

हलीम आईना - सुमितजी! प्रश्न बहुत अच्छा है। मैं अल्प दृष्टि का नाचीज कवि बस इतना सा कहना चाहता हूँ कि कविता विश्व समुदाय को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। हम भी इसे जोड़ने का ही काम करें। विश्व में प्रेम, शान्ति, सद्भावना, समता, भाईचारा कायम करें। हर हाल में जीवन की चुनौतियों से डटकर मुकाबला करते रहें। सारे गमों को भूल कर हँसते, मुस्कुराते रहें और आनन्द की नदी में डुबकी लगाते रहें।

साक्षात्कारकर्ता - सुमित प्रताप सिंह 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...