ट्रेन से उतर कर प्लेटफार्म पर चलते हुए गला सूखने लगा तो वहीं दुकान से एक पानी की बोतल खरीद ली। फिर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में पहुंच कर अपने गले को पानी से तर किया और दुकानदार द्वारा लौटाए गए रुपयों को क्रम से लगा कर जेब में रखने लगा। तभी अचानक मेरा ध्यान एक दस रूपए के नोट पर गया तो उस पर सोनम गुप्ता बेवफा है लिखा पाया। ऐसा नोट मेरे पास दूसरी बार आया था। जब मुझे ऐसा पहला नोट मिला था तब पहली बार मेरा सामना सोनम गुप्ता की बेवफाई से हुआ था। हो सकता है कि ये शरारत किसी कथित प्रेमी की हो जो अपने एक तरफ़ा प्रेम को ठुकराए जाने का बदला सोनम गुप्ता नामक किसी मासूम लड़की से ले रहा हो। ऐसा भी हो सकता है कि किसी सोनम गुप्ता ने किसी मासूम छोकरे की प्रेम कहानी को बेवफाई की कटार से छील डाला हो। इसी उधेड़-बुन में डूबा हुआ था कि रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में लगे टेलीविज़न पर एक व्यक्ति रोते हुए दिखायी दिया। समाचार था कि उस बेचारे ने पाई-पाई जोड़कर अपनी पत्नी को पढ़ाया-लिखाया, लेकिन उस पढ़ाई-लिखाई का फल ये मिला कि उसकी पत्नी क्लास वन अफसर बन गयी और जब उस बेचारे का गर्व से सीना फुला कर जश्न मनाने का समय आया, तब उसे अपनी अफसर पत्नी की बेवफाई का मातम मनाना पड़ रहा है। हालाँकि ये पहला मामला नहीं है जब किसी पति ने अपनी पत्नी के लिए अपना सबकुछ लुटा दिया और बदले में पत्नी की बेवफाई ही नसीब हुई। ऐसे अनेक मामले समाज में समय-समय पर आते रहते हैं। हालाँकि बेवफाई का मैडल केवल स्त्रियां ही नहीं जीततीं, इस मामले में पुरुष भी उनके तगड़े प्रतिस्पर्द्धी हैं। गाँव में जाने कितनी पत्नियां इस आस में अपना जीवन काट देतीं हैं, कि पढ़-लिख कर महानगर में नौकरी करने गया उनका पति एक दिन आएगा और उनके सारे सपनों को साकार करेगा। लेकिन उन बेचारी पत्नियों के सपनों को अपने स्वार्थ की भट्टी में झोंक कर उनके पढ़े-लिखे पति महानगरों में अपनी दूसरी सुंदर-सलोनी पत्नियों के पल्लुओं में खोये हुए बेवफाई का नया अध्याय लिख रहे होते हैं। रेलवे स्टेशन से निकल कर मैंने घर जाने के लिए ऑटो रिक्शा पकड़ा। ऑटो रिक्शा में सफर करते हुए कुछ सोच कर मैंने उस नोट पर लिखे वक्तव्य सोनम गुप्ता बेवफा है को संशोधित कर सिर्फ सोनम गुप्ता ही बेवफा नहीं है लिख दिया और ऑटो रिक्शा से उतर कर उस दस रूपये के नोट को अन्य नोटों के साथ ऑटो रिक्शा वाले के हवाले कर दिया। मैं घर में घुस ही रहा था, कि तभी अचानक एक बड़ी सी कार मेरे बगल में आकर रुकी। उसमें से हमारी कॉलोनी में सब्जी की रेहड़ी लगाने वाला संतोष उतरा और उतर कर मुझसे राम-राम किया।
मैं उससे बोला - राम-राम संतोष, और सुनाओ कैसे हो?
संतोष ने बड़े ही संतोष के साथ उत्तर दिया - बाबू जी, राम जी की कृपा से बहुत अच्छे हैं।
अचानक मुझे शरारत सूझी और मैंने उससे पूछा - अरे भाई, तुम अपनी पत्नी को सिविल सर्विस की तैयारी करवा रहे थे। उसका कुछ परिणाम निकला?
संतोष के चेहरे पर अब संतोष के साथ मुस्कान भी आ गयी - हाँ बाबू जी, परिणाम बहुत शानदार निकला। श्रीमती जी, कलेक्टर बन गयीं हैं।
मैं प्रसन्न हो बोला - अरे वाह! ये तो बहुत अच्छा समाचार है। अच्छा ये बताओ कि अब तुम क्या कर रहे हो?
संतोष ने बताया - श्रीमती जी ने कलेक्टर बनने के बाद कपड़ों का एक शानदार शोरूम खुलवा दिया। और कभी सब्जी की रेहड़ी लगाने वाला ये संतोष आज एक अच्छा-खासा बिजनेसमैन बन चुका है।
इतने सारे नकारात्मक समाचारों के बीच इस सुखद समाचार को सुनकर मन प्रफुल्लित हो उठा। मैंने ये सोच कर पीछे मुड़कर ऑटो रिक्शा वाले को देखा कि उसको दिए दस रुपए के नोट पर लिखे बेवफाई के वक्तव्य को फिर से संशोधित किए जाने की आवश्यकता है। पर वह ऑटो वाला जा चुका था। मैंने संतोष को जलपान के लिए अपने घर में आमंत्रित किया, लेकिन उसने बताया उसके एक और कपड़ों के शोरूम का शहर के एक जाने-माने मॉल में उद्घाटन होना है। उसने किसी और दिन फुर्सत में आकर मिलने का वादा किया और राम-राम कर वहां से चला गया। घर के भीतर घुसते हुए अनायास जेब में हाथ गया तो वहां बीस रुपए का एक मुड़ा हुआ नोट मिला। उसे खोल कर देखा तो उसमें भी सोनम गुप्ता की बेवफाई उपस्थित मिली। मैंने घर में घुसकर अपना बैग रखा और बाकी काम छोड़कर बीस रुपए के उस नोट में लिखे बेवफाई के वक्तव्य को संशोधित करने में जुट गया।
लेखक: सुमित प्रताप सिंह
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