शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

व्यंग्य : राम नाम की शक्ति

-भाई नफे!
-हाँ बोल भाई जिले!
-आज तू क्या बुदबुदाने में लगा हुआ है?
-भाई मैं राम नाम का जाप कर रहा था।
-भाई आज तुझे राम का नाम का जाप करने की क्या सूझ पड़ी?
-राम नाम में बहुत शक्ति है भाई।
-अच्छा ऐसा क्या?
-हाँ भाई! राम नाम का प्रयोग करते हुए देश की शीर्ष सत्ता तक पहुँचा जा सकता है और राम नाम को गरियाते हुए देश की सत्ता को पलटा भी जा सकता है।  
-क्या वास्तव में ऐसा कुछ है?
-हाँ भाई बिलकुल ऐसा ही है। और तो और अगर किसी भी गलत कार्य को सही सिद्ध करना हो तो राम का नाम बड़ा ही काम आता है।
-वो कैसे भाई?
-एक महोदय हैं। काफी चर्चित व्यक्ति हैं। एक बार उनसे किसी ने कह दिया कि ब्राम्हण होकर माँसाहार करते हुए शर्म नहीं आती।
-अच्छा तो फिर उन्होंने क्या जवाब दिया?
-जवाब क्या देना था उन्होंने झट से राम का सहारा ले लिया।
-वो भला कैसे?
-वो ऐसे कि उन्होंने राम द्वारा सोने के हिरण को मारने की घटना का उल्लेख करते हुए उनका माँसाहार प्रेमी होना सिद्ध कर दिया और उसी घटना का उदारहण देते हुए स्वयं के माँसाहारी होने को सही साबित कर डाला।
-मतलब कि उन महोदय ने अपने उदर को माँसाहार से तुष्ट करने के लिए राम नाम की बैसाखी का सहारा लिया।
-और नहीं तो क्या। वैसे भाई तुझे नहीं लगता कि लोग शाकाहारी या माँसाहारी चाहे जैसा भी भोजन करें लेकिन उसको सही साबित करने के लिए लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।
-भाई बात तो तेरी ठीक है पर क्या करें अपने देश में बहुसंख्यक अपने धर्म के पक्ष में चूँ भी कर दें तो उनको सांप्रदायिक होने का तमगा देने के लिए कुछ लोग हमेशा तैयार बैठे रहते हैं।  
-पर दूसरा पक्ष देखें तो राम के नाम से इन लोगों को इतना प्रेम है कि वो राम का नाम मुँह में और बगल में छुरी रखकर अपना काम सिद्ध करते हुए औरों का काम-तमाम करने को तत्पर रहते हैं।   
-इसका मतलब कि राम का नाम बस दिखावे के लिए ही बचा है।
-ये मैंने कब कहा?
-तो फिर तेरे कहने का मतलब क्या है?
-भाई माना कि राम के कपूत राम नाम का अपने स्वार्थों के लिए मानमर्दन कर रहे हैं लेकिन ये सब होने के बावजूद भी राम नाम की महत्ता अब भी मौजूद है।
-भाई क्या सचमुच में ऐसा है?
-हाँ भाई बिलकुल ऐसा ही है। राम के पूत अभी भी अपने राम और उनके आदर्शों को अपने-अपने दिलों में बसाए हुए समाज की बेहतरी के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।
-भाई अब तो मेरा दिल भी कर रहा है कि मैं भी तेरे साथ बैठकर राम नाम का जाप करूँ।
-ठीक है पर पहले अपने बगल की छुरी तो निकालकर बाहर फैंक दे।
-हा हा हा भाई हम राम के पूतों में से हैं न कि कपूतों में से। इसलिए हमें बगल में छुरी रखने की न तो इच्छा रहती है और न ही कोई जरुरत।  
-
तो फिर दिल से बोल राम-राम।
-
राम-राम, जय श्री राम।


लेखक : सुमित प्रताप सिंह


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