कवि लिक्खड़ लाल ने अचानक अपने सोशल मीडिया के बायोडाटा में स्वयं को राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि अपडेट कर दिया। उनके अंतराष्ट्रीय कवि के रूप में अपडेट होते ही उनके चेलों ने अपने गुरु की प्रशंसा के पुल बाँधते हुए सोशल मीडिया पर पोस्टों की बाढ़ ला दी। अब कवि लिक्खड़ लाल के चेले भी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय कवि बनने के दिवास्वप्न देखने लगे। कवि लिक्खड़ लाल का कविता की चेरी तुकबंदी के संग सफर दो-चार साल पहले ही शुरू हुआ था। उन्होंने तुकबंदी को ही कविता माना और स्वयं को तुकबंद के बजाय कवि। जहाँ उनकी आयु के साथी नौकरी पेशा होकर अपने बाल-बच्चों पढ़ा-लिखा कर सक्षम बनाने के लिए संघर्षरत थे, वहीं लिक्खड़ लाल ने मलूकदास कवि के अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।। नामक दोहे को गाँठ बाँध कर उसी का अनुसरण करने की भीष्म प्रतिज्ञा कर चुके थे। उनके बुजुर्ग माँ-बाप ने उन्हें अनगिनत बार गरियाया और उनकी पत्नी ने उन्हें सुबह-शाम, दिन-रात ताने दे-देकर समझाने की भरकश कोशिश की, लेकिन उनके कान पर जूं नहीं रेंगा। आखिरकार एक दिन थकहार कर उनकी पत्नी ने घर का चूल्हा ठंडा न होने के लिए प्राइवेट नौकरी पकड़ ली। अब बेचारी पत्नी घर और नौकरी की चक्की में दिन-रात पिसती रहती और कवि लिक्खड़ लाल तुकबंदियों के झूले में आनंद से झूला झूलते रहते। अपने आस-पास के लोगों को अपनी तुकबंदियों से धराशाही करने के बाद एक दिन उनका पदार्पण सोशल मीडिया पर हो गया। दरअसल उनके शहर में रहने वाले उनकी तुकबंदियों से दुखी जीवों ने अपने-अपने मस्तिष्क और कानों को उनकी तुकबंदियों के अत्याचार से बचाने के लिए एक दिन चंदा करके एक एंड्राइड फोन ख़रीदा और एक तकनीक बुध्दि से दक्ष युवा ने उस फोन का सदुपयोग कर कवि लिक्खड़ लाल का एक सोशल मीडिया अकाउंट बनाया और उन्हें सोशल मीडिया पर उनकी तुकबंदियों की पताका फहराने के लिए छोड़ दिया। सोशल मीडिया पर कुछ दिन अपनी तुकबंदियों के साथ चहलकदमी करने के बाद उन्होंने स्वयं को राष्ट्रीय कवि घोषित कर दिया। धीमे-धीमे कवि लिक्खड़ लाल को सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे लिक्खड़ों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिन्होंने बिना-बात के निरंतर लिखकर और अपने लिखे को नियमित रूप से पुस्तक के रूप में छपवा कर जाने कितने हरे-भरे पेड़ों की हत्या करने का पुण्य अर्जित किया था। उन लिक्खड़ों में कुछ कवि लिक्खड़ लाल के गुरु बने तो कुछ ने उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली। अब सभी लिक्खड़ मिलकर सोशल मीडिया पर कविता का नाम देकर तुकबंदियों को पेलते रहते, जिसे देखकर बेचारी कविता मन मसोसकर सुबकते हुए आँसू बहाती रहती। धीमे-धीमे कवि लिक्खड़ लाल ने विदेश में बसे लिक्खड़ों से संपर्क स्थापित कर लिया। कुछ वर्षों की ऑनलाइन चमचागीरी के फलस्वरूप एक दिन विदेश में बसे कवि महालिक्खड़ लाल के निमंत्रण पर कवि लिक्खड़ लाल ने वैश्विक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में विश्व भर के चुने हुए लिक्खड़ों के बीच अपनी तुकबंदियों को सुना-सुना कर सोशल मीडिया पर भूचाल ला दिया। इस ऑनलाइन काव्य गोष्ठी के बाद कवि लिक्खड़ लाल ने स्वयं को राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि के रूप में अपडेट कर दिया। उनके राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि होने की बात उनके पड़ोसी शहर में रहने वाले दूसरे लिक्खड़ कवि से बर्दाश्त न हुई और उसने लिक्खड़ लाल के अंतराष्ट्रीय कवि होने पर तंज कस दिया। उस तंज से कवि लिक्खड़ लाल ने तुकबंदी कर एक कथित कविता को रचा और पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि को टैग करके सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। कवि लिक्खड़ लाल के चेलों ने उस पोस्ट पर कमेंट के रूप में माँ-बहन के सम्मान को समर्पित एक से बढ़कर एक गालियों की लाइन लगा दी। अपने सुसंस्कृत चेलों के संस्कारपूर्ण कमेंटों पर लव रिएक्शन देते हुए कवि लिक्खड़ लाल गौरवान्वित होने लगे। तभी उन्हें स्वयं को किसी पोस्ट में टैग होने की नोटिफिकेशन मिली। जब टैग की गयी पोस्ट पर जाकर उन्होंने देखा तो उनके होश उड़ गए। वो पोस्ट उनके प्रतिद्वंदी लिक्खड़ कवि थी। उस पोस्ट में वह अपने पहलवान साथियों के साथ लाइव होकर कवि लिक्खड़ लाल का तिया-पाँचा करने की धमकी देते हुए उनके घर की ओर प्रस्थान कर चुका था। ये देखते ही कवि लिक्खड़ लाल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उन्होंने आनन्-फानन में अंतराष्ट्रीय कवि की पदवी को त्यागने की घोषणा करते हुए एक पत्र लिखा और उसे पडोसी शहर के लिक्खड़ कवि को क्षमा याचना के साथ टैग कर अपने सोशल मीडिया अकॉउंट पर पोस्ट कर दिया और अपने शहर से तड़ीपार हो गए। पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि ने कवि लिक्खड़ लाल के त्यागपत्र को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। आजकल पड़ोसी शहर का लिक्खड़ कवि अंतराष्ट्रीय कवि की पदवी धारण कर चुका है। कवि लिक्खड़ लाल के चेलों ने भी अपनी निष्ठा का मुख पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि की ओर मोड़ कर उसकी शिष्यता ग्रहण कर ली है। ये सब देखकर कवि लिक्खड़ लाल अपने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट पर बैठे-बैठे आँसू बहाते रहते हैं और उनकी तुकबंदियाँ उनकी फिरकी लेती रहती हैं।
लेखक: सुमित प्रताप सिंह
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