बुधवार, 4 अगस्त 2021

कविता : मैं बहुत बहादुर हूँ

(ये कविता उन दिनों की है, जब मैं हॉस्पिटल में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा था।)

मुझे मरने से 

डर नहीं लगता

क्योंकि मैं बहुत बहादुर हूँ

पर जब भी लगता है कि

मैं मर भी सकता हूँ तो 

मुझे अपने जाने के

मतलब मरने के 

बाद की परिस्थितियां 

अचानक से ही 

दिखाई देने लगती हैं

जिसमें मैं अपने

बिलखते माँ-बाप को

बार-बार देखता हूँ

जिनके बुढ़ापे का 

मैं ही हूँ सहारा

जिनके सपनों और 

ढेर सारी आशाओं को

पूरा करने का किया है

मैंने उनसे वायदा

मेरे जाने के बाद

क्या होगा उन आशाओं

और सपनों का 

और क्या होगा

उनसे बार-बार किए

मेरे उन वायदों का 

कैसे जिएंगे 

मेरे बिना 

मेरी ऊँगली पकड़कर 

मुझे चलना सिखानेवाले 

सच कहूँ

यही सोचकर 

मैं अचानक डर जाता हूँ

और अगले ही पल

मैं जीवन के रण को 

जीतने के लिए

उठ खड़ा होता हूँ

क्योंकि मैं बहुत बहादुर हूँ

हूँ न?

रचना तिथि : 11 अगस्त, 2016

4 टिप्‍पणियां:

Dharmender Giri ने कहा…

Bahut badhiya bhai ji Aap Yun Hi likhte raho Achcha vah Sundar

Sumit Pratap Singh ने कहा…

हार्दिक आभार

Zee Talwara ने कहा…

वाह बहुत ही सूंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने। इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।  Zee Talwara

Sumit Pratap Singh ने कहा…

हार्दिक आभार

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