जीवन की वास्तविकता को दर्शाते हुए ‘जैसे थे’ उपन्यास अपनी सजीवता और स्वाभाविकता को दुनिया की सत्यता के साथ पिरोये रखता है। यह किसी भी उपन्यास का वांछनीय तत्व होता है, जिसके बिना न तो उपन्यास की कथावस्तु का निर्माण हो सकता है और न ही चरित्रों का उद्घाटन। ‘जैसे थे’ को पढ़कर लगता है कि यह सारी घटना हमारे ही आस-पास कहीं घटित हो रही है I व्यंग्यात्मक रूप में लिखी गयी व्यस्तपुरा की कहानी हमारे जीवन की व्यस्तता की व्याख्या करती हुई असाधारण तरीके से पात्रों के सुख-दुःख को वर्णित करती है।
कड़क सिंह से लेकर चांदनी चौक के चंदू सभी पात्र पाठकों को बांधे रखने में सफल हैं। गाँव के सामान्य जीवन और शहर की भाग-दौड़ को सहजता से प्रस्तुत किया गया है, वहीं वैलेंटाइन जैसे शब्द को व्यंग्यात्मक प्रेम कहानी के रूप में चरितार्थ कर उसकी महत्ता को बताया गया है। धर्म के नाम पर लूट मचाने वाले पुजारी और खादिम की मानसिकता को बताते हुए उनकी सच्चाई सबके सामने लाने का बेहतरीन प्रयास समाज को चेतना प्रदान करने में समर्थ है।
अतएव व्यंगात्मक उपन्यास ‘जैसे थे’ समसामयिक समस्याओं और तत्संबंधी निवारण की ओर केन्द्रित है। नदी के प्रवाह की तरह कहानी आगे बढ़ती रहती है। लेखन में मारक क्षमता तभी आती है जब आपने अपने लिखे को स्वयं जिया हो या महसूस किया हो। इस उपन्यास में कुछ ठहराव है, कुछ रहस्य है तो मानवीय परिवेश एवं लोक जीवन की नई परिभाषाएं भी हैं, जो पाठकों की जिज्ञासा को बनाये रखती है। आवश्यकतानुसार शब्दों व बोलियों का सटीक चयन आत्मीयता बनाये रखते हुए समाज के कड़वे सत्य को सामने लाते हैं I वास्तव में उपन्यास की रचना किसी निश्चित उद्देश्य के लिए की जाती है जिसमें लेखक सुमित प्रताप सिंह सफल रहे हैं।
उदाहरणार्थ उपन्यास का एक अंश- ‘अब बारी चौथे कर्मचारी की थी। अरे महाराज ! संसार की रीत है इस हाथ दें और उस हाथ लें। अब अधिकारी व्यवसायी और नेता अथवा उनके सगे सम्बन्धी हमारा ध्यान रखते हैं तो बदले में हम उनका ध्यान रखते हैं। उनके द्वारा दी गयी सहायता या सेवा के बदले हम उनके लिए कवि सम्मेलनों में भागीदारी की व्यवस्था करते हैं, उनकी उल्टी-सीधी रचनाओं को भी श्रेष्ठ साबित कर उनकी पुस्तकों का प्रकाशन करवाते हैं और समय-समय पर उनके सम्मान में उनके ऊपर केन्द्रित कार्यक्रमों का आयोजन भी करवाते हैं।
इस प्रकार प्रस्तुत उपन्यास ‘जैसे थे’ सकारात्मक रचनाधर्मिता को जीवन प्रदान करती हुई लेखनी है I लेखक सुमित प्रताप सिंह को समाज को अपनी वास्तविकता का आईना दिखाने हेतु कोटिशः बधाई। उम्मीद है कि सुमित प्रताप सिंह का साहित्यिक शुद्धि यज्ञ यूूँ ही निरंतर प्रदीप्त रहेगा।
समीक्षक - सुषमा सिंह, स्वतंत्र पत्रकार एवं ब्लॉगर
2 टिप्पणियां:
Very nice and fine with all the best regards to you
Thanks a lot...
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