सोमवार, 26 अगस्त 2019

कविता - नन्हा फरिश्ता


मेरे घर में आया है 
एक नन्हा-मुन्ना फरिश्ता
उसके मासूम चेहरे से 
बस प्यार ही प्यार टपकता

पूरे घर में घूमा करता 
खूब वो धूम मचा के 
उससे रखना पड़ता है
घर का सामान बचा के
मंद-मंद मुस्कुरा के वो 
जब प्यार से देखा करता
तो उसके खिले चेहरे पर
दिल जाकर ये अटकता 

मायूसी को कर दिया विदा
अब खुशी ही घर में हँसती है
उस नन्हे-मुन्ने फरिश्ते में
जान सभी की बसती है
जब पापा-पापा कहके 
वो सीने से आ चिपटता
तो पापा के दिल में फिर
स्नेह का भँवर उमड़ता।

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