- भाई नफे!
- हाँ बोल भाई जिले!
- घर में तंगी चल रही है क्या?
- मैं कुछ समझा नहीं।
- अरे भाई सैलून में हेयर कटिंग करवाने वाला साथी जब सड़क पर यूँ खुलेआम अपने बाल कटवाये तो कुछ न कुछ बात तो होगी न।
- भाई पहली बार ऐसे बाल नहीं कटवाये। ये दूसरी बारी है।
- पर मँहगे सैलून को छोड़ कर सड़क पर क्यों बाल कटवाये?
- ताकि जिंदगी का टिकट न कटे।
- भाई तेरी बात समझ में न आयी। जरा खुलके बता।
- भाई भाँति-भाँति के जिहाद की सफलता के पश्चात अपने देश मे ब्लेड जिहाद का विधिवत शुभारंभ हो चुका है।
- ये ब्लेड जिहाद क्या बला है?
- आतंकियों के स्लीपर सेल के तौर पर काम कर रहे मुस्लिम नाई उस्तरे के ब्लेड पर दूषित रक्त लगाकर विधर्मियों की शेविंग और हेयर कटिंग करते हैं और उन्हें कोई न कोई गंभीर बीमारी सादर भेंट दे डालते हैं।
- अरे बाप रे! पर इससे बचा कैसे जाए?
- मेरी तरह खुलेआम किसी खुले सैलून में हेयर कटिंग करवा।
- इस बात का क्या सबूत है कि खुले सैलून में ब्लेड जिहाद से बचाव हो जाएगा।
- खुले सैलून को चलाने वाले अधिकतर गरीब हिन्दू नाई हैं। मँहगे सैलूनों में तो काफिरों के दम पर फलफूल रहे मोमिन ही मिलेंगे।
- मतलब कि तूने गरीब हिन्दू नाई की बोनी करवाई।
- हाँ भाई, पहले तो वह रुपये लेने से इंकार कर रहा था पर मैंने उसे जबरन दे ही दिए।
- भाई तू तो उसे उसका मेहनताना दे रहा था, फिर वह इंकार क्यों कर रहा था।
- असल में उसकी दुकान को साजिश के तहत हटाया जा रहा था। बीस साल से उसी जगह जमा बेचारा नाई अपनी रोजी-रोटी छिनने की सोचकर मायूस हो चुका था।
- फिर क्या हुआ?
- फिर नफे ने इलाके के इकलौते हिन्दू नाई की रोजी-रोटी को बचाने की ठानी और इस काम में साथ दिया इलाके की चौकी के राष्ट्रवादी चिट्ठा मुंशी सुनील सैनी ने।
- भाई सुनील सैनी को मेरी ओर से भी धन्यवाद देना। अब अपना हिन्दू नाई भाई खुश तो है न।
- हाँ खुश भी है और निश्चिंत भी।
- पर तू जरा बच के रहियो।
- किससे?
- आतंकियों के स्लीपर सेल और उनके हितेषी देश के कथित सेक्युलरों से, क्योंकि उनकी आहों की गर्मी से तू शायद बच न पाये।
- हा हा हा, भाई उनकी आहों की गर्मी से राष्ट्रवादियों की वाह-वाह की ठंडक अपनी रक्षा करेगी।
- हा हा हा, ये भी तूने खूब कही।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह
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