पुलिस का नाम लेते ही आमतौर पर लोगों के मन में किसी भ्रष्ट, कामचोर या क्रूर व्यक्ति की छवि उभरती है; कोई ऐसा व्यक्ति, जिससे गुंडे-बदमाश तो साँठगाँठ कर लेते हैं और आम आदमी घबराता है, लेकिन सब उंगलियां बराबर नहीं होतीं। अपवाद हर जगह होते हैं और सुमित प्रताप सिंह ऐसे ही एक अपवाद हैं। अपवाद इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उन्होंने यह साबित कर दिखाया है कि पुलिस की रूखी, ऊबाऊ, बेरंग नौकरी करने के बावजूद भी कोई व्यक्ति उत्कृष्ट व्यंग्यकार और कुशल कवि भी हो सकता है। वर्दी वाले कठोर चेहरे के पीछे कोई कोमल हृदय वाला संवेदनशील कवि भी छिपा हो सकता है। बन्दूक चलाने वाले शक्तिशाली हाथ उतनी ही कुशलता से कलम भी चला सकते हैं और अपराधियों को रुलाने वाले लोग अपने व्यंग्य की गुदगुदी से पाठकों को हंसाकर लोटपोट भी कर सकते हैं। ऐसे दो विपरीत ध्रुवों के बीच कुशलता से सन्तुलन बना सकने वाले और दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से सफल हो सकने वाले लोग बहुत विरले ही होते हैं, इसीलिए सुमित को मैंने अपवाद कहा था।
ये विचार मेरे मन में इसलिए आए क्योंकि आज मैंने उनका व्यंग्य संग्रह 'ये दिल सेल्फ़ियाना' पढ़ा। इस पुस्तक का नाम जितना रोचक है और उस पर श्याम जगोता का बनाया हुआ मुखपृष्ठ जितना आकर्षक है, इस पुस्तक की विषय-वस्तु और सामग्री भी उतनी ही अनूठी है।
पुस्तक के प्रस्तावना में ही सुमित ने 'सेल्फ़ी रोग' के लक्षण, कारण, प्रभाव और लाभ गिनवाए हैं। उन्होंने यह भी स्वीकारा है कि इस सेल्फ़ी रोग की 'दुष्प्रेरणा' से ही उन्हें इस व्यंग्य संग्रह को ऐसा नाम देने की बुद्धि सूझी।
लेकिन यह संग्रह केवल सेल्फ़ी की महिमा बताने तक सीमित नहीं है। इसमें चुगलखोरी का वर्णन भी है, महान चित्रकार पिकासो को टक्कर देने वाले गुटखेबाजों की प्रशंसा भी है, मच्छर तंत्र की चुनौतियां भी हैं और खर्राटों वाली रेलयात्रा का वृत्तांत भी है। ऐसे विभिन्न विषयों को बड़ी कुशलता से समेटने वाले और समाज की निष्क्रियता, लापरवाही और दुर्गुणों पर करारी चोट करने वाले कुल 37 व्यंग्य लेख इसमें हैं, जो पाठक को कभी गुदगुदाते हैं, कभी अचानक कुछ याद दिलाते हैं, तो कभी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी कर देते हैं। मुझे लगता है कि हर संवेदनशील और जागरूक व्यक्ति को इस पुस्तक में कुछ न कुछ अवश्य मिलेगा।
युवा लेखक, व्यंग्यकार और कवि सुमित की अनेक पुस्तकें, काव्य संग्रह और व्यंग्य रचनाएँ अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी पुस्तकों का अनेक भारतीय भाषाओं में और अंग्रेज़ी में भी अनुवाद हो चुका है। अपनी विशिष्ट उपलब्धियों के लिए उन्हें अब तक अनेक विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है और उनका लेखन-कार्य अभी भी अनवरत जारी है। अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी वे अक्सर अपने विचार व्यक्त करते हैं, और वे कई सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं।
पुलिस की तनावपूर्ण और कठिन नौकरी के बावजूद भी सुमित अपने लेखन और काव्य रचना के लिए सतत समय निकाल पाते हैं, यह वाकई अद्भुत और प्रशंसनीय है।
उनके भावी लेखन और सफलताओं के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!
पुस्तक : ये दिल सेल्फ़ियाना
लेखक : सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
प्रकाशक : सी.पी. हाउस, दिल्ली - 110081
मूल्य : 160 रुपए पृष्ठ : 127
समीक्षक : सुमंत विद्वान्स, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका
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