नन्हे कदम पड़ें जो घर में
खुशहाली आ जाती है
रौनक सी घर में रहती है
नव ऊर्जा इसमें समाती है
बालक का रोना-धोना भी
मन-मस्तिष्क को सुख देता है
छोटे-मोटे कष्टों को तो
ये सुख यूँ ही हर लेता है
हृदय में हिलोरें उठती हैं
खुशी से फूलती छाती है
बेफिक्री कर जाती है कट्टी
जिम्मेदारी गले आ मिलती है
भावी जीवन की योजनाओं में
तन-मन की चक्की पिलती है
स्वप्न देख उन्हें सच करने को
मन की भावनाएं इठलाती हैं
लेखक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
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